मां..! आपको तो पता ही है, 20 दिनों बाद तन्वी की बहन सानवी की शादी है, तन्वी का तो कोई भाई है नहीं… इसलिए मैं सोच रहा था कि, मैं तन्वी के साथ ही 1 हफ्ते पहले चला जाऊं, इससे उनको काफी मदद मिल जाएगी…
विशाल ने अपनी मां आशा जी से कहा…
आशा जी: क्यों भई…? दामाद है तू उस घर का, बेटा नहीं… जो इतना खटेगा… तू तो बस कोट पैंट में अपने रौब में वहां जाएगा…. आखिर बड़े दामाद की भी कोई शान होती है…
विशाल: पर मां..! तन्वी भी तो इस घर की बेटी नहीं है, बहू है… फिर उससे तो आप घर के हर काम करवाती है… उल्टा उसका यह सब फर्ज है, यह भी कहती है…
आशा जी: बेटा..! बहू की बात अलग होती है और दामाद की बात अलग… एक बहू अपने फर्ज की वजह से ही अपने ससुराल में जगह बनाती है… और दामाद..? उसे कौन सा अपने ससुराल में रहना है…? तो क्या जो दो-चार दिन के लिए वह अपने ससुराल जाए, उस पर वह काम करें..?
विशाल: पर मां…? तो क्या तन्वी यहां रहती है…इसलिए उसका कर्ज चुकाना पड़ता हैं..?
आशा जी: बस.. बस… और ज्यादा बहस मत कर… यह रीति रिवाज सदियों से चली आ रही है… इसे मैंने नहीं बनाया… तो तू अब इसे बदल भी नहीं सकता और मैं तो कहती हूं… बदलना भी क्यों है..? इसमें बुराई ही क्या है..?
विशाल और कुछ नहीं कहता, पर वह तन्वी की बहन की शादी में पूरी मदद करता है….
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फिर समय बीतता गया और अब विशाल की बहन मोहिनी की शादी का समय आ गया…. शादी के सारे काम तन्वी भाग भाग कर रही थी… भागा दौड़ी ज्यादा होने की वजह से वह बेहोश होकर गिर जाती है… उसे इतनी कमजोरी हो रही थी, कि उससे उठा भी नहीं जा रहा था… ऐसे में विशाल और आशा जी परेशान होने लगे… शादी सर पर है और घर की बहू बीमार…
सभी परेशान बैठे थे कि, तभी सानवी अपना बैग लेकर अंदर आती है…
विशाल: अरे सान्वी तुम…?
सान्वी: क्यों जीजू…? भूल गए मैं भी शादी में आमंत्रित हूं…
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विशाल: हां वह तो पता है… पर अभी शादी में 1 हफ्ते देर है… इसीलिए पूछा..
सान्वी: जानती हूं… पर दीदी तो बीमार है ना… तो उसने ही मुझे यहां पर आकर शादी की अधूरी तैयारियों को पूरा करने के लिए कहा…
विशाल: पर तुम्हारे परिवार वाले मान गए..?
सान्वी: माने क्या जीजू..? रमन तो मुझे यहां छोड़ने ही आए हैं… वह बाहर गाड़ी पार्क कर रहे हैं…. इतने मे रमन भी अंदर आ गया और कहने लगा… अब जब सानवी यहां आ गई है, आप लोग परेशान मत होइए… मोहिनी की शादी में कोई अड़चन नहीं आएगी….
विशाल: थैंक्स रमन…!
वहां खड़े सभी बातें कर रहे होते हैं के तभी आशा जी तन्वी के कमरे में जाकर कहती है… माफ कर देना बहु…? तूने इस घर के लिए हमेशा बेटी बनकर सोचा और मैंने हमेशा तुझे बहु ही माना… बहु का फर्ज याद तो रहा मुझे, पर मुझे अपना फर्ज याद नहीं रहा… बहु अपने ससुराल आती है तो इस उम्मीद से कि उसको दूसरा परिवार मिलेगा… पर बेचारी बहु के औधे से उठकर कभी बेटी बन ही नहीं पाती… पर सच तो यह है कि, बहू ना हो तो ससुराल कभी बस ही नहीं पाएगा…
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तन्वी: मम्मी जी…! बहु की तबीयत की वजह से, जो नई बहु बनने जा रही हैंं… उसे भूल मत जाइएगा…. वरना मोहिनी कहेगी, भाभी ने मेरा इतना खास दिन बिगाड़ दिया….
कितन सच हैं ना दोस्तो..?
सारा ज़माना केवल जानता हैं, एक बहु के फर्जो को गिनाना
पर कौन बताए, इस ज़माने को..? के यह सारे फर्ज तो एक बहु को पड़ता हैं, कर्ज की तरह चुकाना…
धन्यवाद
#बहु
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
रोनिता कुंडू