ज़िन्दगी की तल्ख हकीक़त – मधु झा

तलाक,, शब्द सुनकर रेहाना अवाक रह गयी,,वो सोचने लगी ,क्या ये वही दानिश है जिसे उससे बेइंतहा मोहब्बत थी,,जो मेरे बग़ैर ज़िन्दगी का तसव्वुर भी नहीं कर सकता था और जिसने पूरी ज़िन्दगी साथ निभाने का वादा किया था,,।

“मैं तुमसे मोहब्बत अब भी करती हूँ मगर अपनी खुद्दारी छोड़कर तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। तुम्हारा गुस्से में आकर कुछ भी कह देना, बात-बात में झगड़ा अब नहीं सह सकती ,, इस तरह की ज़िन्दगी से बेहतर है हम दूरियाँ बना लें,, अब बस,,

अब और नहीं,,कभी नहीं,,।

अब दुबारा हम कभी नहीं मिलेंगे,,।”

रेहाना ने भी गुस्से में आकर दानिश का मुँह तोड़ जवाब दिया और पैर पटकती हुई बेडरूम की तरफ बढ़ गयी।

मैं ऐसे शख़्स के साथ अब हर्गिज नहीं रह सकती जो मुश्किलों की जड़ें बनता जा रहा था, मै उससे जितना प्यार करती हूँ , उतना ही ख़ुद से भी करती हूँ,, मैं अपनी ख़ुद की भी इज्ज़त करती हूँ,,।

और उसके साथ रहकर रोज-रोज की ज़िल्लत नहीं सह सकती थी।

ये सोचते हुये अपना सूटकेस पैक कर घर से निकल गयी। क्या नहीं किया दानिश के लिए,,। अपने परिवार से बगावत कर डाला,, अपना जाॅब छोड़ उसके बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिये रात-दिन एक कर दिया ।पैसे की क़िल्लत सही, परिवार का खर्च चलाने के लिए आस-पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया । 

कितना सपोर्ट  किया मैने और ये,,,,!!!!

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सोचते हुए रेहाना घर से निकल गयी। उसे हैरत इस बात की भी हुई कि दानिश ने एक बार भी उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की,,जैसे वो इस बात का इंतज़ार ही कर रहा था। इस बात से वो और भी ग़मगीन थी।

मगर अब अब क्या करे,,कहाँ जाये,,??

ये सवाल बार-बार उठ रहा था उसके दिल में।

हालांकि उसका भरा-पूरा परिवार था,, अम्मी-अब्बू दो छोटे भाई,,मगर उसने उन लोगों के खिलाफ़ जाकर अपनी मर्ज़ी से दानिश के साथ निकाह किया था,,।

दानिश था तो उसी की बिरादरी का मगर रेहाना के स्टेटस से कमतर था। रेहाना के अम्मी-अब्बू अपनी रिश्तेदारी में ही उसका निकाह करना चाहते थे मगर रेहाना दानिश से मोहब्बत करती थी और उसके अलावा किसी और से निकाह करने का ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी।

मगर अब वो क्या करे,,इस वक्त कहाँ जाये,,जोश में झगड़ा करके घर से निकल तो गयी मगर अब समझ नही आ रहा था कि कहाँ जाये। फिर इस वक्त उसे अपनी एक दोस्त समीरा की याद आयी और उसके घर जाने को सोचा। उसने दरवाजा खटखटाया तो समीरा ने दरवाजा खोला तो उसे इस वक्त देख कर चौंक गयी,।

रेहाना ने सब बताया । समीरा ने उसे हौंसला बंधाया और फिलहाल रात बहुत हो जाने के कारण आराम करने को कहकर इस पर सुबह बात करने को कहा। 

मगर रेहाना की आँखों में नींद कहाँ थी,,




वो मुसलसल दानिश के साथ हुए वाकया और आगे की ज़िन्दगी को लेकर परेशान रही, रोती रही,,। उसे ज़रा भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि दानिश इस क़दर बदल जायेगा। दानिश बहुत ही हैंडसम, समझदार व डिसेंट नेचर का था, उसकी डिसेंसी देखकर ही तो रेहाना को उससे मोहब्बत हुई थी, और उस पर वो गाता  भी बहुत अच्छा था,,पहले ही दिन उसकी आवाज की दीवानी हो गयी थी। वो दानिश और आज के दानिश में कितना फ़र्क था।

रात भर ठीक से नींद पूरी न होने के कारण लाजिमी है सुबह देर से आँख खुली।

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समीरा ने उसे चाय पकड़ाते हुए आगे के प्लान के बारे में पूछा। उसने गुस्से में कहा– “अब मैं वापस उसके पास नहीं जा सकती।” तो समीरा ने सलाह दी कि कुछ भी फैसला करने से पहले एक बार अपनी अम्मी से जरूर बात करे, मगर रेहाना पशोपेश में पड़ गयी क्योंकि उसने उन लोगों के खिलाफ़ जाकर शादी की थी और सभी इस फैसले से नाराज़ थे,,फ़िर भी समीरा के कहने पर उसने अपनी अम्मी को फोन मिलाया । रेहाना की बात सुनकर उसकी अम्मी ने बहुत बुरा-भला कहा,, अब्बू मिलना तो दूर , उससे बात तक नहीं करना चाहते थे और अम्मी के हाथ से फोन लेकर  साफ-साफ कह दिया — “अब तुमसे हमारा कोई रिश्ता-नाता नहीं,, तुम्हें जो करना है, करो। पूरी बिरादरी में मेरी नाक कटा दी, ऐसी लड़की जिसने माता-पिता की बात नहीं मानी और अपनी पसंद से शादी की और अब शादी निभा नहीं पायी, अब अलग होकर तो और भी सब उन पर हसेंगे।” ये कहकर फोन पटक दिया। 

अब रेहाना मायूस हो गयी और रोते हुए समीरा से एक-दो दिन अपने यहाँ रहने देने की गुज़ारिश करने लगी,, दो-चार दिन में कोई काम मिल जाने पर दूसरी जगह शिफ़्ट हो जायेगी। ये सुन समीरा ने कहा–” दोस्त हूँ तेरी ,,इसमें कहना-पूछना क्या,,जब तक चाहे आराम से रह सकती है ,,। अभी काम नहीं आऊँगी तो लानत है ऐसी दोस्ती पर।”

 ये सुन रेहाना ने राहत की सांस ली,,। समीरा के आफ़िस चले जाने के बाद रेहाना ने एक कप चाय बनायी और अपने लैपटॉप पर जाब के लिए देख रही थी कि उसी समय उसके मोबाइल पर उसकी अम्मी का फोन आ गया,, रेहाना हैरान थी कि अब्बू की नाराज़गी के बाद भी अम्मी ने कैसे फोन किया,,खैर,, उसने फोन रिसीव किया ।




अस्सलामू अलैकुम अम्मी,,कहते ही रेहाना का गला रूंध गया,, मुझे माफ़ कर दीजिए अम्मी,,।

अम्मी की आँखें भी नम हो गयी और रोते हुए कहने लगी–” तुम्हारे अब्बू अभी घर पर नहीं है, इसलिए अभी फोन किया है और उन्हें बताना भी मत वरना नाराज़ हो जायेंगे ।” फ़िर उसे समझाने लगी —  “अपना घर अपना ही होता है बेटा,, शादी के बाद कितनी भी सुख-सविधायें दूसरी जगह मिले मगर अपने घर के जैसा सुख कहीं नहीं,, और फिर तुमने तो उससे मोहब्बत की है , क्या उससे दूर होकर ख़ुश रह पाओगी तुम,,उसके बिना अकेले रह पाओगी तुम,,,,??” 

“मगर अम्मी शादी के बाद वो बदल गया है।” रेहाना ने बात काटते हुए कहा,।

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“जब दो लोगों को एक-दूसरे से प्यार होता है और इसे लेकर जब वे सीरियस होते हैं तो शादी के बारे में सोचते ही हैं,,। मगर शादीशुदा ज़िन्दगी किन चुनौतियों के साथ आये ,इसका तो अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता है और ज़िन्दगी में तो उतार-चढ़ाव आते ही हैं,कभी ख़ुशी कभी ग़म तो होते ही हैं,, इसी का नाम तो ज़िन्दगी है बेटा,,। अच्छे और बुरे दोनों वक्त में साथ निभाना ही असल में प्यार होता है,, अभी वक्त ही कितना हुआ तुम दोनों को साथ रहते हुए,, छोटे-मोटे झगड़े तो आपस में होते ही रहते,, इसके कारण कोई अपना घर छोड़कर जाता है क्या,,।

कुछ वक्त दो दानिश को ,,वो दिल का बुरा नहीं है,,अपने बिज़नेस को सेटल करने में उलझा रहता है,, वो भी तुमसे बहुत प्यार करता है, तुम्हें वो सब सुख-सुविधायें,

ऐशो-आराम देना चाहता है जो तुम उसके लिए छोड़कर गयी हो,,।”

          “अहम और इगो से आगे बढ़ने के लिए मर्दों को ज़्यादा टाइम लगता है,,।

माना घर-गृहस्थी पति-पत्नी दोनों के बराबरी हिस्सेदारी से चलती है,,मगर फ़िर भी घर को घर बनाने में औरत का ही अहम हिस्सा होता है।” कहते हुए 




रेहाना की अम्मी ने आगे कहा–” एक औरत कभी अपना प्यार नहीं भूल पाती,,।

सबसे ज़रूरी बात कि जो गलती मैने की, उसे तुम न दोहराओ बेटा,,।” 

“अम्मी ये क्या कह रही हैं,,।” रेहाना अपनी अम्मी की बात सुनकर हैरान रह गयी। “हाँ बेटा”– इतना कहते ही वो रो पड़ी।

रेहाना थोड़ी देर सोचती रही , फ़िर फौरन ही उसने दानिश को फोन लगाया। दानिश ने भी कहा–” मुझे माफ़ कर दो, तुम्हें गुस्से में जाने क्या-क्या कह दिया। मैं अकेला नहीं जी सकता , मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ।”

 #मासिक_कहानी_प्रतियोगिता_अप्रैल 

मधु झा,,

स्वरचित,,

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