अंत भला तो सब भला – सरला मेहता भाग (1)

विभा मध्यमवर्गीय परिवार की सर्वगुण संपन्न बेटी है। प्रारम्भ से ही प्रतिभाशाली रही विभा ने इस वर्ष बी ए की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। पिता गुप्ता जी सेवानिवृत्ति के पूर्व उसके हाथ पीले करना चाहते हैं। ताकि छोटी बेटी श्रेया को भी शिक्षित कर  सके। संयोग से उन्हें अच्छी हैसियत वाले एक परिचित मिल जाते हैं।उनका इकलौता बेटा वैभव कलेक्टर कार्यालय में लेखापाल है।

  खाते पीते घर में बेटी का रिश्ता तय होने से गुप्ता जी फूले नहीं समाते। विभा पापा से कहती है, ” लेकिन मुझे तो प्रोफेसर बन कर अपनी बहन को डॉक्टर  बनाना है। मैं नहीं बन सकी लेकिन अपनी बहना की इच्छा अवश्य पूरी करूँगी। “

पिता डाँटते हुए कहते हैं, ” बिटिया ! यह सब शादी के बाद भी कर सकती हो। तुम्हारे ससुर हर बात के लिए तैयार हैं। देखो  बिना दहेज के अच्छा रिश्ता किस्मत से ही मिलता है। “

” पापा ! लगता है माँ की आखरी इच्छा भी आप भूल गए। “

गुप्ता जी अपने गिरते स्वास्थ्य का हवाला देकर   विभा को जैसे तैसे शादी के लिए मना लेते हैं। विवाह की सारी रस्में सादगी से शांतिपूर्वक निपट जाती है। तमाम हिदायतें श्रेया को देकर विभा अपने ससुराल आ जाती है।


     आरम्भ में सब कुछ विभा के अनुसार होता है। वह यदा कदा अपने घर आकर पूरे माह का इंतजाम कर देती है। पापा की दवाई, राशन व अन्य चीजें व्यवस्थित करती रहती है। बहन की पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं हो इसका पूरा ध्यान रखती है।

पतिदेव व ससुर जी पूरा सहयोग देते हैं। लेकिन सासू जी चाहे माटी की हो, अपना सासपना जता ही देती है। ऊपर से रमा भुआ जब भी आती पट्टी पढ़ाकर ही जाती, ” अरे  भाभी ! आप ख़ुद ही बहू को बिगाड़ रही हो। हाथ से निकल जाए तो मुझसे ना कहियो। “

बस फ़िर क्या सासू जी अपनी बीमारी का रोना लेकर सिर बाँध लेट जाती, ” विभा ! कहीं भी जाना हो तो घर का सब काम निपटा कर जाना। और हाँ, अपनी पति का भी ख़्याल रखा करो। मर्दों को बिगड़ते देर नहीं लगती। “

विभा को पति के तेवर का अहसास भी धीरे धीरे होने लगता है। हालाँकि एम ए की तैयारी कर रही पत्नी और साली जी के लिए जरूरी किताबें वैभव अवश्य जुटा देता है। किंतु वह अपना रविवार नवब्याहता के साथ कहीं बाहर जाकर बिताना चाहता है। अब विभा के समक्ष दो पाटन के बीच पिसने के सिवा कोई चारा नहीं था।

पहले घर के काम निपटाओ फिर पढ़ाई करो, ऐसा सासू जी का आदेश है। बीमार पिता की तीमारदारी के पहले सास ससुर की सेवा करो।

इन सबके बावजूद विभा एम ए के इम्तिहान में अव्वल आती है। अब बस पी एच डी करना है।

       वह अभी माँ बनना भी नहीं चाहती है। किन्तु होनी को कौन टाल सकता है। एक प्यारी सी बेटी की माँ बन जाती है। इस पर भी उलाहना यह कि माँ पर गई है, तभी तो बेटी हुई।

बेटी के आने से वैभव की टोकाटाकी बढ़ जाती है, ” अरे ! मायरा रो क्यों रही है। देखो भई, बच्ची का ध्यान माँ को रखना ही पड़ता है। ऐसा करो श्रेया को मदद के लिए बुलालो। “


विभा के पी एच डी की इच्छा जताने पर पति का फरमान जारी हो जाता है, ” देखो यह सब थोड़ा रुककर भी किया जा सकता है।, पहले मायरा को ज़रा बड़ी हो जाने दो। ” वैभव का पिता ह्रदय हावी हो जाता है।

विभा असमंजस में कुछ सोच नहीं पाती है। आखिर हर पहलू पर विचार करके वह निर्णय ले ही लेती है। रात में ही अपना सामान पैक कर लेती है। दौरे पर गए पति की राह देखे बगैर वह बेटी को लिए पिता के घर चल देती है। वह सोचती है, ” आखिर क्यूँ, कब तक झेलेगी यह प्रताड़ना ? मुझे अपनी माँ को दिया वचन किसी भी हालत में पूरा करना ही है। ” 

वह ससुर जी के नाम एक चिट्ठी रख देती है।उसे याद है कि कल पी एच डी का फ़ार्म भरने की आखरी तारीख है ।

अविरत,,,भाग 2

बेटी के यूँ अचानक आने पर पिता हैरान हो जाते हैं, ” विभा ! तुम्हें यूँ अपना घर छोड़कर नहीं आना था। वैभव का निर्णय भी सही है। मायरा  अभी छोटी है। तुमने बहन का करियर बनाने का सोचा है। किन्तु तुम्हारे इस तरह ससुराल छोड़ने से कैसे होगा उसका विवाह ? “

” लेकिन पापा मुझे माँ से किया वादा भी निभाना है। ” विभा अपना पक्ष रखती है।

विभा सबकुछ भूलकर अपने पी एच डी करने के जुनून में जुट जाती है। हर काम में टके तो लगते ही हैं। वह दिन में ट्यूशन करती है। श्रेया एम बी बी एस पास करने के लिए जीतोड़ मेहनत करती है।

विभा के समक्ष कई समस्याएँ मुँह बांए खड़ी है…श्रेया की कोचिंग, बेटी का पालन और ख़ुद की पढ़ाई। किन्तु उसे स्वयं पर पूरा भरोसा है।

     मायरा भी अब समझने लगी है। वैभव छुट्टी वाले दिन बेटी से मिलने अवश्य आते हैं। उसे पार्क व झू जाना बहुत पसंद है। मम्मा के पास समय कहाँ ? पापा के नहीं आने पर उसके बालसुलभ  सवालों का विभा के पास कोई जवाब नहीं रहता।

” मम्मा ! सब बच्चों के मम्मा पापा साथ रहते हैं। मेरे पापा बस कभी कभी  आते हैं। हम सब एक साथ क्यूँ  नहीं रहते ? “

विभा के पास उसका मन बहलाने के सिवा और कोई चारा नहीं, ” बेबी ! नाना जी की तबियत ठीक हो जाए और …। “

     मायरा बीच में बात काटते हुए चहकती है, ” और मासी डॉ बन जाए। उनको एक डॉक्टर दूल्हा भी मिल जाए, है न मम्मा। “


उसी समय वैभव आ जाता है। दरवाज़े पर पर्दे की ओट से वह, माँ बेटी का वार्तालाप सुनकर कहता है, ” चलो एक खुशखबर तो मैं लाया हूँ। मायरा की मासी मेडिकल टेस्ट में पास हो गई है। “

विभा कहती है, ” और मुझे भी डॉ की उपाधि मिल गई है। “

पहली बार माँ पापा को अच्छे से बात करते देख मायरा खुशी से पागल हो  किचन की ओर दौड़ लगाती है।

” लीजिए अभी इसी से मुँह मीठा कीजिए। लेकिन आज शाम की पार्टी मैं आप दोनों और मासी के साथ मनाऊँगी हाँ। ” चॉकलेट थमाते हुए मायरा हँसते हुए कहती है। “

वैभव को भी पत्नी व बेटी के बगैर रहना अखरता है। उसे याद आते हैं वो दिन जब विभा ने नए परिवार को अपना लिया था। पूरा घर व्यवस्थित रहता था। अब तो रोज पहनने के कपड़े भी ढूंढने पड़ते हैं। कभी प्रेस नहीं तो कभी बटन टूटे हुए। मौजे, रुमाल, घड़ी, फाइल आदि के कोई ठिकाने नहीं। ऊपर से कामवाली बाई के हाथ का बेस्वाद खाना।

बूढ़े माता पिता की सेवा टहल भी ठीक से नहीं हो पाती है। लेकिन खुलकर कोई चर्चा नहीं करता कि चलो विभा से बात करें।

विभा आज बहुत खुश है कि श्रेया को सरकारी मेडिकल कालेज में दाखिला मिल गया है। वह सोचती है… जरूर वैभव ने भागा दौड़ी की होगी और फ़ीस भी उसी ने जमा की होगी। अब बस उसे नौकरी मिल जाए। वह वापस ससुराल भी जाना चाहती है। लेकिन कहे कैसे वैभव से ?

मायरा, मम्मा औऱ मासी के साथ पार्टी के लिए तैयार बैठी है। बस पापा के आने की देर है। विभा भी सोचती है कि आज वह अपने दिल की बातें वैभव से करेगी। तभी वैभव का फोन आता है कि माँ को दिल का दौरा पड़ने से वह अस्पताल में है।

विभा तुरन्त माँजी के पास अस्पताल पहुँच जाती है। पूरी लगन से उसे माँ की तीमारदारी करते देख वैभव निश्चिंत होकर डॉ से मशविरा करने चला जाता है।

घर में ससुर जी अकेले हैं अतः विभा अपनी बहन को फ़ोन करती है, ” तुम मायरा को लेकर घर पहुँचो। पापा जी के खाने व चाय वगैरह का ध्यान रखना। “

माँजी थोड़ा होश आते ही

विभा की ओर देखती है मानो पूछ रही हो कि मायरा कहाँ है। विभा उनका माथा सहलाते हुए कहती है, ” वो घर पर अपने दादा जी के साथ है। श्रेया भी वहीं है, आप चिंता मत करिए। “

आय सी यू में प्रवेश करता वैभव यह सुनकर सोचता है, ” अंत भला तो सब भला।

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