खुशी की किरण –   रीता खरे

 “आज फिर पूनम की रात, वही पूर्ण चांद, जिसने अपनी चांदनी से सारा जहां  दुधिया  रंग में रंग दिया है, कितनी सुन्दर लगती है, फिर .. फिर क्यों? इस इतनी उज्जवल रात ने मेरे मन को इतना मलिन कर दिया, क्यों यह पूनम की रात मेरे जिंदगी में अपने हिस्से की थोड़ी सी किरणें नहीं बिखेर पायी!” सोचते हुये उसकी आखों में वह पूनम की रात एक अमावस्या की रात बन काली नागिन सी उसे डसने लगी।

      काश वह उसके मोह जाल में न फंसती, उस की अमीरी और झूठे प्यार में डूब उस पूनम की रात को समर्पण की रात में न बदलती तो आज यह  जीवन, उसे न जीना पड़ता ।

        बाबूजी ने एक ही नजर में रवि को देखकर कह दिया था, बेटा,” यह लड़का तुम्हारे लायक नहीं है , तुम अभी अपनी पढ़ाई करो, ये सब चक्कर छोड़ो, अपने भविष्य की सोचो , अपनी जिंदगी बर्बाद मत करो।

    पर उस पर तो प्यार का भूत सवार था, वह उससे छुप छुप कर मिलती, और जब उससे अपने प्यार के बीज को अंकुरित होने की बात बतायी, तो उसने मंदिर

मे जाकर उसकी मांग में सिन्दूर भर दिया, और प्यार से कुछ दिन बिताने के बाद एक रात न जाने कहां गायब हो गया, बहुत ढूंढ़ा पर कुछ पता न चला।

      बाबूजी के दरवाजे तो पहले ही बंद हो गये थे, और उस स्थिति में बेटी का जन्म , कैसे पालती उसे

जहां खुद ही पेट भरने के लिये मुहताज थी, ट्युसन कर , थोड़े पैसे आते उससे बेटी के दूध दवा का प्रबंध कर लेती, खुद दो दो दिन भूखी रहती !

      ज्यादा पढ़ी लिखी न होने के बावजूद भी उसे एक स्कूल में मकान मालिक ने नौकरी दिलवा दी । धीरे धीरे समय ने करवट ली, और उस ने अपनी पूर्णिमा कोअपने पैरों पर खड़ा होने  के लिये उच्च शिक्षा दिलायी ।

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आज  फिर वही पूनम की रात कुछ मन को शीतलता पहुंचा रही थी, वह छत पर अकेली बैठी चांद को निहार रही थी, पर उसमें उसे रवि कहीं नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि उसके दिल पर तो केवल पूर्णिमा के भविष्य ने ही कब्जा कर लिया था ।

      ” मां, मां कहां हो? देखिये आपसे कोई मिलने आया है। नीचे आइये।” पूर्णिमा की आवाज से उसकी तन्द्रा टूट गई।

        सामने स्कूल के मालिक  पाण्डे जी को देख चौंक गई,

” आप”

” आप परेशान न हो, मैं कुछ शिकायत लेकर नहीं आया, बस अपने बेटे के लिये आपकी पूर्णिमा को मांगने आये हैं, और अपने डाक्टर बेटे मानव को सामने खड़ा कर दिया।

उसने कनखियों से पूर्णिमा के चेहरे पर फैलती हुई लाली को देखा।

” इन्हें आर्शीवाद दीजिये, कि इनकी राह में खुशियां ही खुशियां हों। यह सुन

उसकी खुशी का ठिकाना न रहा ।

   उसे विश्वास हो गया था कि इस पूनम की रात का चांद उसकी बेटी पर सदा अपनी चांदनी फैलायेगा, वह उसकी तरह एक एक किरण को नहीं तरसेगी, क्योंकि उसके ऊपर एक मां और एक पिता दोनों का आर्शीवाद है, और मां बाप का आर्शीवाद कभी अछूता नहीं रहता ।

   रीता खरे

स्वलिखित

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