मार्गदर्शक – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

डा0 श्यामसुन्दर जी एक डिग्री कालेज के प्रधानाध्यापक हैं। वह अपने विद्यालय में हर साल एक जिला स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन करते हैं जिसमें वह कई प्रकार के खेलकूद व प्रतिभाओं को आमन्त्रित कर प्रतियोगिता कराते हैं। इस बार भी जब सत्र समाप्ति के समय कार्यक्रम की तैयारियाॅं शुरू हुई तो मुख्य अतिथि किसे बनाया जाये, इस बिन्दु पर बात अटक गयी। श्यामसुन्दर जी की इच्छा थी कि इस बार किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्य अतिथि बनाया जाये जो भले ही किसी बड़े पद पर पदस्थ न हो लेकिन उसके कार्य समाज के लिये मार्गदर्शक हों। श्यामसुन्दर जी ने अपने पूरे स्टाफ के सामने अपना प्रस्ताव रखा। सभी लोगों ने अपनी तरफ से कई लोगों के नाम सुझाये, कोई समाज सेवी था, तो कोई पत्रकार, कोई कलाकार था तो कोई लेखक। नामों के प्रस्ताव के दौर में एक नाम आया सच्चिदानन्द जी का, जिस पर हर कोई सहमत हो गया।

       सच्चिदानन्द जी शहर के जाने माने पशु प्रेमी थे। उनके घर में जाने कितने आवारा कुत्तों और गायों को शरण मिली थी। शहर में कोई गाय या कुत्ता यदि बीमार होता या चोटहिल होता तो सच्चिदानन्द जी उसका पूरा उपचार अपने धन से करवाते थे और उसे अपने घर पर ही रख कर सेवा सत्कार करते थे। मूलतः उनके बाप दादा रजवाड़े खानदान से थे लेकिन अब रजवाड़ा तो रहा नहीं और न ही उतने नौकर चाकर लेकिन जमीन तो थी ही। इसलिये जानवरों को रखने में कोई असुविधा नहीं होती थी। 

       डा0 श्यामसुन्दर जी ने यह निश्चय किया कि इस बार सच्चिदानन्द जी को ही मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जायेगा ताकि बच्चों को पशुओं के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक किया जा सके और करूणा भाव से भी अवगत कराया जा सके। यही सोंच कर वह सच्चिदानन्द जी के घर की ओर चल पड़े। सच्चिदानन्द जी के घर पहुंचने पर श्यामसुन्दर जी ने देखा कि घर के बाहर एक बड़े से मैदान में बीस पच्चीस देशी कुत्तों के रहने की व्यवस्था की गयी है, कई सारे गाय और बैल भी उसी मैदान में एक शेड के नीचे रह रहे हैं। यह देखकर उन्हे आश्चर्य हुआ कि उनके द्वारा गाय के साथ साथ बैलों और साड़ों को भी पाला जा रहा था और उनकी सेवा के लिये नौकर भी रखा हुआ था। श्यामसुन्दर जी को अपने फैसले पर कोई ऐतराज नहीं हुआ और उन्होने सच्चिदानन्द जी को अपने आने का प्रयोजन बताकर उन्हे मुख्य अतिथि बनने का आग्रह किया। सच्चिदानन्द जी ने भी उनका आग्रह स्वीकार कर लिया। जलपान के बाद जब श्यामसुन्दर जी ने विदा ली तो सच्चिदानन्द जी भी उनके साथ साथ अपने मुख्य द्वार तक आ गये। 




      जैसे ही सच्चिदानन्द जी ने अपना दरवाजा खोला तो उनके दरवाजे पर लगे नीम के पेड़ की छांव में एक गरीब दम्पत्ति अपने बच्चों के साथ खाना खा रहा था। श्यामसुन्दर जी यह दृश्य देखकर गदगद हो उठे कि कितना अच्छा और संस्कारी माहौल है यहां जो पशु के साथ साथ गरीब इन्सान भी आराम से अपना भोजन कर सकता है लेकिन तभी श्यामसुन्दर जी सच्चिदानन्द जी की कर्कश आवाज सुनकर चैंक गये। सच्चिदानन्द जी उस दम्पत्ति को अभद्र गालियाँ  देते हुये अपमानित कर रहे थे कि कैसे उस गरीब दम्पत्ति ने उनके दरवाजे पर बैठने और खाना खाने की हिम्मत की और उनके घर की शोभा बिगाड़ दी। श्यामसुन्दर जी उनका चेहरा देख रहे थे जो कुछ देर पहले करूणा से भरा लग रहा था और अचानक उनका मुखौटा उतरकर गिर गया। वह गरीब दम्पत्ति माफी मांगते हुये अपना आधा अधूरा खाना लपेटकर वहाँ से भाग खडा हुआ और सच्चिदानन्द जी लगातार बड़बड़ाते हुये अपनी आत्मा को संतुष्ट कर रहे थे लेकिन अब श्यामसुन्दर जी को अपने फैसले पर बहुत अफसोस हो रहा था और उन्होने ने तुरन्त अपने फैसले को बदलते हुये सच्चिदानन्द जी से कहा ’’मुझे अफसोस है कि अब आप मेरे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के लिये अपेक्षित योग्यता को खो चुके हैं। अब आपको हमारे कार्यक्रम में आने की कोई जरूरत नहीं है।’’ सच्चिदानन्द जी का चेहरा एकदम से फक्क पड़ गया, अपमान और अचम्भा उनके चेहरे पर साफ दिखायी दे रहा था,” क्या मतलब, अभी तो आपने मुझे आमन्त्रित किया था।’’ 

” हाॅं किया था, क्योंकि मैं यहाॅं आपको समाज के मार्गदर्शक के रूप में सम्मानित करने आया था लेकिन आपने तो करूणा में भी भेदभाव कर दिया। मैं समाज को ऐसा मार्गदर्शक नहीं दे सकता जिसे अभी खुद करूणा, दया और उपकार के बारे में सही और विस्तारपूर्ण मार्गदर्शन की आवश्यकता हो।’’ सच्चिदानन्द जी का चेहरा अपमान से तमतमा रहा था लेकिन श्यामसुन्दर जी अपना फैसला सुनाकर तब तक अपने रास्ते की ओर चल चुके थे….एक सच्चे मार्गदर्शक की तलाश में।

मौलिक 

स्वरचित 

#भेदभाव 

अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

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