व्हील चेयर पर बैठी मनोरमा देवी सुई में धागा लगाने की बार बार कोशिश कर रही थी पर उनकी बूढी आँखे उनका साथ नही दे रही थी.पास बैठी बबली जो कल ही ससुराल से आई थी ने कहा लाओ माँ मैं सुई में धागा लगा दूँ “तुमसे नहीं होगा” यह सुन मनोरमा देवी मुस्कुराने लगीं पर साथ साथ उनके चेहरे पर एक अजीब सा दर्द झलकने लगा था….
“तुम से न होगा” कभी यह एक वाक्य “मनोरमा देवी” के कानो में हरदम यूँ गूंजती रहती मानो कोई उनके कानों के पास जोर जोर से “थप्पड़” मार रहा हो…..
कुछ भी तो नहीं कहती थी वह आकाश से,कभी कोई शिकायत भी नहीं की…हर समय उसके तानों के दंश को हँसकर झेल जाती थी.पर अब तो पति आकाश के साथ- साथ बेटा “बबलू” भी बात बात पर उन्हें चिढाने लगा था,रहने दो माँ “तुमसे यह न होगा” तुम कुछ नहीं जानती..
बबलु -बबली उनके दो प्यारे प्यारे बच्चें,आकाश के सारे तानों,सारे उल्हानों को मनोरमा देवी इन दोनों को देखकर भूल जाती थीं…
पर आज मनोरमा देवी के आँखों में आँसूओं का सैलाब था.
उनकी जरा सी गलती पर पति के साथ साथ उसके बेटे बबलू ने भी भरी भीड़ मे उनका मजाक उड़ाया था.गलती भी क्या…?
उन्होंने आज़ पति आकाश़ के मित्र जो उनके घर से थोड़ी दूर पर ही रहते थे…के पदोन्नति के उपलक्ष्य में आयोजित पार्टी में चम्मच के बजाय प्लेट में लिया खाना हाथ से खाने लगी थीं काँटे -चम्मच से खाने की आदत जो नहीं थी उनकी,पर पति आकाश को यह अच्छा नहीं लग रहा था,उसने बिना सोचे समझे सभी के सामने मनोरमा देवी पर गुस्सा करने लगा.तुम हमेशा “जाहिल और गँवार” ही रहोगी तुमसे कुछ नहीं होगा,कुछ नहीं आता तुम्हें अनपढ कहीं की. तुम्हारे माता पिता ने कुछ नही सिखाया है क्या..?
तभी पास बैठा बेटा बबलू भी बोलने लगा.. रहने दो पापा माँ से कुछ नहीं होगा इसे कुछ आता जाता नहीं है.मनोरमा देवी सहमी सी किसी अपराधी की तरह नजरे झुकाए खड़ी थीं.
उनके आँखों से मानो गंगा-यमुना बहने लगी सभी मेहमान मनोरमा के तरफ ही देख रहें थें.बड़ी बेटी बबली को भी पापा और भाई के द्वारा माँ का अपमान अच्छा नहीं लगा था.
मनोरमा चुपचाप खाने का प्लेट वहीं छोड़कर घर लौट आई और बरामदे मे पड़े व्हील चेयर पर लड़खड़ाकर बैठने लगी…
पीछे पीछे भागकर आई बेटी ने रोती माँ को सहारा दिया.मनोरमा देवी बेटी के गले लग रोयी जा रही थीं,आज उनके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थें,बबली माँ को हिम्मत दे रही थी पर बबली के नन्ही नन्ही आँखों में एक प्रतिज्ञा थी जो उसने अभी अभी ली थी अपनी माँ के लिए. उसने अपनी माँ को मनाया और चोरी छिपे अपनी माँ को पढाने लगी,मनोरमा देवी ने भी ठान लिया था कि उन्हें बदलना है..और और आज उनकी बेटी की मेहनत और उनकी खुद की तपस्या का फल… शिक्षक बहाली मे उनका सकारात्मक परिणाम के रूप में सामने था.आज एक अनपढ जाहिल अपनी लगन और मेहनत से शिक्षिका कि नौकरी ज्वाइन करने जा रही थी….
एक ओर जहाँ बेटी के आँखों मे खुशी के आँसू थे,उसके चेहरे पर अपनी माँ के जीत की चमक थी..तो दूसरी ओर पति आकाश के आँखों में शर्मिंदगी, बेटा बबलू शर्म से नजरें झुकाए खड़ा था..दोनो के दिल दिमाग मे एक सन्नाटा गूंज रहा था मानो आज किसी ने काफी करीब से उनके गाल पर जोड़ से “थप्पड़” मारा हो..और मनोरमा निकल पड़ी थी एक नए “आकाश” की ओर..एक नयी शुरूआत की ओर…।।।।
विनोद सिन्हा “सुदामा”