“जिंदगी एक जंग है” – कविता भड़ाना

“शांति ओ शांति अरे भाग्यवान कहां हो?…मोहनलाल जी बहुत खुशी खुशी मिठाई का डब्बा हाथ में लिए बाहर से ही आवाज लगाते हुए घर में दाखिल हुए”…

अजी क्या हुआ क्यों इतना चहक रहे हो, शांति जी रसोई घर से पसीना पोंछते हुए निकली…बस शांति अब तुम्हे और खटने की जरूरत नहीं है, जिस उम्र में तुम्हे आराम और तीर्थ करने चाहिए उस उम्र में भी तुम्हे रात दिन काम करते देख मेरा दिल रो उठता है… मोहनलाल जी ने शांति जी के हाथों को थामकर प्रेम से कहा… अजी अपने घर का ही तो काम करती हूं और इस उम्र में शरीर जितना चले उतना ही बढ़िया है… अच्छा मेरी छोड़ो ये बताओ ये मिठाई कहा से लाए हो और पैसे कहा से आए आपके पास..

तभी उनकी बहु अपने 6 साल के बेटे का हाथ थाम अंदर आई बोली माजी मुन्ना के लिए दूध और मेरे लिए चाय बना दो और कहकर अपने कमरे में चली गई .. 

शांति जी खोखली मुस्कुराहट से अपने पति की ओर देखकर बोली, आप के लिए भी चाय बना लाती हूं और कहकर रसोईघर में चली आई..

मोहनलाल जी भी अपनी पत्नी का साथ देने के लिए जैसे ही रसोई में घुसे वैसे ही दूध का पतीला हाथ में लिय शांति जी से टकरा गए और सारा दूध जमीन पर फैल गया, आवाज सुनकर बहु कमरे से बाहर आई और दूध का पतीला जमीन पर गिरा देख आग बगुला हो गई…

“हाथ टूट गए क्या आपके जो सारा दूध गिरा दिया, एक काम भी ढंग से नहीं होता ,सारा दिन घर में पड़े दोनो बुड्ढे बुढ़िया मुफ्त की रोटी ही तोड़ते रहते हो मेरा तो जीना ही मुश्किल कर रक्खा है दोनो ने, ऐसा बोलकर तुरंत ही दूसरे शहर में नौकरी कर रहे अपने पति को फोन लगाया और स्पीकर पर  करके  नमक मिर्च लगाकर दोनो की बुराई करने लगी ,

दोनों अपराधी की भांति चेहरे झुकाए आंखों में आसूं लिए खड़े रहे और सोचते रहे की बेटा उनके पक्ष में कुछ तो बोलेगा पर कानों में गर्म सीसे की तरह बेटे के शब्द उतरते चले गए…. “क्या मां पिताजी ये बेचारी इतना काम करती है, मेरी गैर मौजूदगी में घर संभालती है, आप दोनो की सेवा करती है और आप को एक कप चाय ना बनानी पड़ जाए उसके लिए दूध ही गिरा देती हो, शोभा देता है क्या आपको ये सब…

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आज मोहनलाल जी चुप ना रह सके और फोन पर ही चिल्ला कर बोले नालायक, खबरदार जो एक शब्द और बोला, अरे बेटा 2 लीटर दूध के लिए तु हमे पूरी बात जानें बिना ही इतना सुना रहा है ना तो सुन ये तेरी बीवी पूरा दिन बाहर निकाल कर शाम को आती है,

तु तो तीज त्यौहार में ही आता है तो ये उस समय ऐसे दिखाती है की हमारी कितनी सेवा और सम्मान करती हो पर सच तो ये है कि वो सब तो दिखावा होता है, तेरी मां ही घर का सारा काम करती है और मेरी अहमियत तो बहु की नजरों में कबाड़ से अधिक नहीं है, दवाई गोली से लेकर रोटी,  दूध चाय भी हम अपनी जरूरत के हिसाब से नही ले सकते…

“तो आपने आज तक कुछ कहा क्यों नहीं, बेटा बोला”…

सिर्फ तेरा घर बचाने के लिए और समाज में जो इज्जत है वो बनी रहे बस इसलिए चुप रह जाते थे हम, और जानता है कल तेरी मां का मिठाई खाने का बहुत मन था क्योंकि कल हमारी 50वी सालगिरह थी, मैने बहु से सौ रुपए मांगे  इसने पैसे तो दिए नहीं उपर से इतनी जली कटी सुनाई की तुझे क्या बताऊं कहकर मोहनलाल जी रो पड़े… 

बहु भी अपनी करतूतों का भंडाफोड़ होते देख मगरमच्छ के आंसु बहाने लगी की ये सच नहीं है…बेटे ने कहा में दो दिन बाद आता हूं फिर बात करेंगे…. 

“उसकी जरूरत नहीं है मैने आज अपने लिए एक बंगले में गार्ड की नौकरी ढूंढ ली है रहने को कमरा भी वही मिल गया है और वही से मिले एडवांस पैसों से ही आज में तेरी मां के लिए मिठाई लाया हूं…

शरीर बूढ़ा है पर आत्मसम्मान से अब और समझौता नहीं कर सकते … बेटा फोन पर निशब्द हो चुका था और बहु मन ही मन सोच रही थी की अब घर का काम कैसे होगा 

इधर जीवन संध्या बेला में ये स्वाभिमानी जोड़ा निकल चुका था अपना दूसरा आशियाना बसाने….

स्वरचित, काल्पनिक

#जन्मोत्सव

चौथी रचना

कविता भड़ाना

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