आओ सैर का ले लें मज़ा – डा. नरेंद्र शुक्ल

एक दिन विवाह के लिये लड़की वाले हमारे घर आये । साथ में लड़की भी थी । इस से पहले मैं लड़की की ओर देखता । मेरे साथ बैठी दादी जी बोलीं – ‘हाय – हाय क्या ज़माना आ गया है । अब लड़कियां भी वा देखने चल पड़ी हैं । घोर कलयुग है । मैंने उन्हें समझाया कि दादी जी यह कलयुग नहीं वैज्ञानिक युग है । यहॉं सब चलता है । रिसर्च के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है ।

खैर लड़की वालों ने आते ही पूछा – ‘लड़का कहॉं है ? ‘

पिता जी ने मेरी ओर इशारा करते हुये कहा – ‘ यही है हमार टिंकू । पी. एच. डी . पास है। ‘

पी. एच. डी . का नाम सुनकर लड़की के पिता ने मुंह घुमा लिया – तभी तो बेरोजगार हो । अगर हम कोशिश नहीं करेंगे तो पी. एच. डी . ही रहोगे ।

लड़की बोली – ‘यू ओल्ड फैलो । मैं तुमसे शादी नहीं करूंगी । उसे अपना प्रेमी याद आने लगा ।

पिता जी से बोली – ‘ इनसे शादी काने से तो अच्छा तो मैं ‘सुसाइड ‘ करना बेहतर समझूंगी । ‘

उसे इस फिल्मी डायलाग को सुनकर मैं मुस्कराया । मैंने सफाई दी – ‘ मैं अधेड़ नहीं हूं । अभी तो मैंने तीस बसंत भी पूरे नहीं किये । आप मेरे बालों पर न जाइये । ये धूप में सफेद हुये हैं । ‘

उसकी मां बोली – ‘ और पेट । ‘

पिता जी बोले – ‘ हम खानदानी हैं । अच्छा खाते हैं । फिर कुछ सोचकर बोले – अच्छा पीते भी हैं । पेट तो निकलेगा ही । ‘

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ं लड़की वाले मुझे खाते-पीते घर का मानने को तैयार नहीं हुये और चले गये ।

पिता जी ने कहा – ‘बेटा टिंकू , तेरे हाथ में वह लकीर ही नहीं जिससे पता चले कि तेरा इस जन्म में कभी विवाह होगा । कितनी बार कहा है कि मेरे साथ सैर पर चला कर । शयद वहीं कोई तेरा इंतज़ार कर रहा हो । पर तू चले तो ….. । ‘

पिता जी के प्रवचनों को सुनकर मैंने सुबह की सैर का फैंसला कर लिया । मेरे पास कोई दूसरा आप्शन भी नहीं था ।

अगले दिन सुबह होते ही मैं अपने घर से कुछ दूर स्थित पार्क की ओर चला ही था कि सड़क के दोनो ओर बैठे दस – बारह कुत्ते मेरे और लपके । मैं जान बचाकर सरपट पार्क की ओर भागा । सामने , नुक्कड़ वाली गली के पास रहने वाले शर्मा जी बेंत घुमाते चले आ रहे थे । कुत्ते दूसरी ओर भाग गये। मैं पार्क के बीच उगी घास पर चलने लगा । सामने से दो लड़कियां आ रहीं थी । मैं उनके पीछे हो लिया । शायद यही मेरे गले में माला डाल दें ।

एक लड़की दूसरी से कह रही थी – ‘यार , वह अमरबीर है न ! ‘

दूसरी बोली – ‘कौन ? ‘

पहली बोली – ‘ वही , जो तेरी क्लास में पढ़ता है । ‘




‘घुंघराले बालों वाला । – दूसरी बोली ।

‘हां यार । मेरी उससे फ्रेंडशिप करवा दे न । ‘

‘अच्छा ठीक है । पर , प्रामिस कर कि तू मेरे रोहित को छोड़ देगी । दूसरी ने अपना दायां हाथ आगे बढ़ाते हुये कहा । ‘

‘डन । पक्का प्रामिस । पहली बोली । ‘

‘ तो ठीक है । कल हिस्ट्री की क्लास के बाद कै्रटीन में मिलना । दानों हाथ मिला कर दूसरी ओर हो लेती हैं । ‘

मैं अपना चांस गुल होकर आगे हो लेता हूं ।

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सामने से दो लड़के चले आ रहे है ।

एक कहता है – ‘यार गगन , कल पार्टी में मज़ा आ गया ।‘

दूसरा कहता है – हां यार शरणदीन । कमाल की पार्टी थी । पर , तूने एक बात नोट की ?‘

‘क्या ? गगन ने चौंकते हुये कहा । ‘

‘‘वह कली जींस वाली कैसे तुझे लाइन दे रही थी । ‘




‘छोड़़ यार । सब निशा की फ्रैंड हैं । एक से बढ़कर एक पियक्कड़ । सब धुत्त थीं । वे आगे निकल गये । ‘

मैं थोडी़ देर के लिये पार्क में बने चबूतरे पर बैठ गया । मेरे ठीक सामने दो औरतें बैठी थीं । उनकी मदभरी बातें मेरे कानों में रस घोलने लगीं – ‘कांता , वह चुडैल आजकल मेरे पति पर डोरे डाल रही है । ‘

‘कौन शांता ? ‘ साथ बैठी दूसरी औरत ने पूछा । ‘

‘वही जो बलंड कटट है । नीली आंखों वाली ।

‘अच्छा वह डायन । वह तो पूरी राक्षसनी है । मेरे पति को खाने की कोशिश कर रही थी । परसों , मैंने वह जली – कटी सुनाई कि वह अब सारी जिंदगी मेरे घर की ओ मुंह नहीं करेगी । कांता ने हाथ नचाते हुये कहा । ‘

‘हाउ आर यू शांता । दूर से एक औरत ने आवाज़ लगाई । ‘

‘कांता ने शांता के कान में फुसफुसाते हुये कहा – आ गई मुंहजली । ‘

आवाज़ लगाने वाली औरत पास आकर खड़ी हो गई । उसके हाथ में मोबाइल है । बोली – ‘ यू नो , मेरे ‘इनको ‘ इनकी कंपनी वाले विदेश भेज रहे हैं । मैं भी जाउंगी इनके साथ सरकारी खर्चे पर । ये कह रहे थे कि ‘मदर इन ला‘ की ‘बाय पास सर्जरी ‘ का बिल बना लेंगे । अच्छा चलती हूं । सी. यू दृ । यू नो सारी तैेयारी करनी है । वह चल देती है । ‘ शांता और कांता भी चल देती हैं ।




‘और बताओ मुकंदीलाल । शेयर बाज़ार के क्या हाल हैं । दो व्यक्ति आकर उसी जगह आ बैठते हैं जहां कुछ देर पहले शांता और कांता बैठी थीं । ‘

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‘में तो डूब गया भाई भरोसे लाल । अब क्या बताउं । शेयर मार्किट की जानकारी तो थी नहीं । एक मित्र के कहने पर धोखधड़ी प्राइवेट लिमिटेड ‘ कंपनी के दो सो शेयर 35 रूपये में ले लिये । शाम को ही रेट 40 रूपये प्रति शेयर हो गया । ‘

‘ यह तो बड़ी खुशी की बात है । और तुम रो रहे हो । दूसरे व्यक्ति ने कहा । ‘

भरोसे लाल ने कहा – रोउं नही ंतो क्या करू‘ । मित्र ने कहा था कि तीन दि न से पहले तुम शेयर बेच नहीं सकते । और , तीन दिन में शेयर गिर कर 10 रूपये हो गया । वह रो पड़े । ‘

‘और सुनो भैया भरोसे लाल , बाद में एक अन्य मित्र से पता चला कि शेयर कभी भी बेचे जा सकते हैं । कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं । ‘

दोनो चबूतरे से उठकर चल देते हैं ।

‘हुण चलिया कोई नहीं जांदा भगवंत कौरे । 65 पार कर चुके आं । हुण घर वालियां नू साडी फिक्र कोई नहीं । नूंह कहि री सी तुसी बचियां नाल न खेडिया करो । बच्चे फेल हो जाणगे । ‘ उसी चबूतरे पर दो बूढ़ी औरतें आ कर बैठ जाती हैं ।

‘मेरा भी चही हाल है दलवंत कौर । पुत्तर ते नूंह दोंवें मैंनूं वद्ध आश्रम विच छडन दी गल कर रहे सी । ‘

भगवंत कौर दोनो हाथ उपर कर के अपने पति से कहती है – ‘ तुसह देख लो पुत्तर मंगण दा नतीजा । ‘ दोनों उठकर , रोती हुई चल देती हैं ।

मैं सोचने लगता हूं कि वास्तव में सैर के मज़े ही मज़े हैं । इससे एक ओर ‘जी. के. इम्प्रूव होती है तो दूसरी ओर , निरंतर गिरते हुए सामाजिक मूल्यों व संस्कारो की ताज़ी हवा भी ‘फ्री‘ मिलती है।

डा. नरेंद्र शुक्ल

1 thought on “आओ सैर का ले लें मज़ा – डा. नरेंद्र शुक्ल”

  1. बहुत ही बढ़िया समाज को चित्रित करती हुई लेखनी।
    लेखक को साधुवाद

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