संयुक्त परिवार – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

सुमि की शादी जब रोहित से हुई तो वह बहुत खुश थी ।रोहित एक अंतराष्ट्रीय कम्पनी में अच्छे पद पर था ।  बड़ा शहर ,अच्छा पैकेज , सभी सुख सुविधाओं से भरा घर और भी बहुत कुछ जिसके उसने सपने देखे थे ।

शादी के  कुछ दिन बाद रोहित जब नौकरी पर जाने लगा तो सुमि को पता चला कि वो तो रोहित के साथ जा ही नही रही ।

“रोहित क्या मैं तुम्हारे साथ नही चल रही ?”

“नही सुमि ,माँ का कहना है कुछ दिन तुम परिवार के साथ रहो ताकि घर के तौर तरीके ,रीति रिवाजों को समझ लो ।”

“अरे ,रीति रिवाजों को क्या समझना ?कोई व्रत त्योहार आएगा तो वीडियो काल करके पूछ लूंगी न ।और फिर गूगल बाबा तो है ही न ।”

सुमि के तर्क वितर्कों के आगे सबने घुटने टेक दिये और सुमि को भी रोहित के साथ भेज दिया गया ।

नया शहर ,नया घर और सबसे बड़ी बात पूर्ण आजादी पाकर सुमि के तो पैर ही जमीन पर नही पड़ रहे थे ।”अपनी मर्जी मुताबिक जीवन ।वाह!  क्या बात है ।”

तीन महीने बीते थे कि सुमि को पता चला कि उसके घर खुशखबरी आने वाली है ।डॉक्टर ने पूरी तरह आराम करने की सलाह दी ।

“सुमि ,मैं चाहता हूं अब कुछ महीने तुम माँ के पास रहो ताकि तुम्हारी औऱ बच्चे की देखभाल अच्छे से हो जाए।”

“अरे नहीँ ,मुझे इसकी आवश्यकता नही लग रही ।दिन भर के लिए एक आया रख लेंगे और रात में तो तुम हो ही ।”ससुराल में रहने के नाम से ही जैसे सुमि को सांप सूंघ गया था।

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“जैसा तुम ठीक समझो ।” रोहित जानता था सुमि से बहस करने का कोई लाभ नही ।

माँ ने भी कई बार बेटे बहु के पास आने की इच्छा जाहिर की पर हर बार सुमि ने कोई न कोई बहाना करके बात टाल दी ।वो नही चाहती थी कि सास के उसके पास आकर रहने से उसकी स्वतंत्रता में कोई बाधा आये ।

सब कुछ ठीक चल रहा था ।कि एक दिन ….

 रोहित आफिस जा चुका था ।काम वाली को आने में देर हो गयी ।सुमि को जोर से भूख लगी थी  उसने सोचा उठकर कुछ खा ले ।बिस्तर से नीचे पैर रखा ही था कि न जाने पैर कैसे मुड़ गया और वो वहीं गिर गयी ।रोहित को खबर मिली तो वो भागा भागा आया ।

“सुमि ,मुझे लगता है अब या तो घर से किसी को बुला लेना चाहिए या तुम वहां चली जाओ ।”

“ठीक है ,जैसा तुम उचित समझो।”

सुमि को भी अब ये एहसास हो गया था कि अब उसका घर पर अकेले रहना सुरक्षित नही था ।

दो दिन बाद ही छोटी जेठानी आकर उनके पास रहने लगी ।

समय बीता… सुमि ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया ।




सब कुछ अच्छे से चल रहा था कि अचानक कोरोना ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिये ।

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बहुतों की रोजी रोटी पर असर पड़ा ।रोहित भी उनमें से एक था ।

कुछ दिन तो उन्होंने घर से बात छुपाई ।पर कहते हैं न कि ऐसी बातें कुछ ज्यादा तेजी से फैलती हैं ।रोहित के नौकरी जाने की खबर उसके घर वालों को भी लगी ।

तुरन्त पापा का फोन आया ।

“रोहित बेटा ,बिल्कुल परेशान मत होना ।तेरा परिवार तेरे साथ है । तुम लोग यहाँ आ जाओ “

“नही पापा ,आप परेशान मत होइए ।कुछ दिन की बात है फिर सब ठीक हो जाएगा ।”रोहित ने कहा ।

“अरे बेटा ,बड़े शहर के इतने खर्चे कैसे संभालोगे ?” माँ ने चिंतित स्वर में कहा ।

“हम संभाल लेंगे माँ, आप परेशान न हों।” 

मगर …कोरोना  लम्बा चला ।जमा पूंजी का घड़ा  बूंद बूंद टपकते टपकते अब खाली होने लगा था ।

“रोहित मुझे लगता है तुम लोगों को घर आ जाना चाहिए ।इतना संकोच किस बात का कर रहे हो ।”फिर एक दिन बड़े भैया  ने कहा ।




हार कर रोहित और सुमि ने घर  जाने का निर्णय कर ही लिया ।

घर पहुंचकर  जब मानसिक ,आर्थिक सम्बल मिला तो सुमि को अपनी गलती का एहसास हो ही गया ।

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“कितनी गलत थी वो जो संयुक्त परिवार को  एक बंधन समझ रही थी ।जब जब उसपर संकट आया उसके परिवार ने उसका हर मोड़ पर साथ दिया ।”

“अगर कहीं वो एकाकी परिवार में ब्याही जाती तो ?”

और फिर सुमि ने अपना फैसला सुना दिया …

“रोहित मैं सोच रही थी अब हंमे अपनी आजीविका का साधन अपने परिवार में रहकर ही ढूँढना चाहिये ।”

सुमि की बात सुनकर रोहित ने चैन की सांस ली ।शायद मन ही मन वो भी ऐसा ही कुछ चाह रहा था ।

#परिवार 

रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

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