परिवार की अहमियत। – रश्मि सिंह

सपना-सुनिए आपकी समर वेकेशन कब होगी।

सुदीप-मई के अंत में।

सपना- अबकी बार छुट्टियों में मसूरी घूमने चलें।

सुदीप (सपना का पति)- ठीक है पापा से बात करता हूँ कि उनकी छुट्टियाँ कब से है।

सपना-क्यों अबकी बार फिर सब साथ में चलेंगे।

सुदीप-और क्या मम्मी पापा और प्रदीप (सुदीप का भाई) के बिना क्या मज़ा आएगा।

सपना-इस बार फिर नहीं। शादी के दो सालों में कभी हम अकेले घूमने गए है। हनीमून पर भी पूरी टोली साथ गई थी। मैंने स्कर्ट, जीन्स टॉप सब ख़रीदा था पर कुछ भी पहन नहीं पाई। मेरी दोस्त प्रीति कहती तो है तुम जब भी जाती हो पूरा राम दरबार क्यों लेकर जाती हो।

सुदीप (सपना का पति)-हनीमून में पूरा परिवार ज़रूर साथ गया था पर हमे काफ़ी समय मिला था साथ बिताने का, और तुम्हारी दोस्त वो क्या जाने #परिवार की अहमियत, जो शादी से पहले ही एकाकी परिवार के सपने देखती है। परिवार का महत्व उनसे पूछो जो अनाथ है।




सपना- परिवार का महत्व मुझे भी पता है, पर पति-पत्नी को कुछ लम्हे अकेले भी तो गुज़ारने चाहिए।

ये सब बातें कमरे के बाहर खड़ी सावित्री (सपना की सास) सुन लेती है और सोचती है कि बात तो सही है बहू की। अभी नयी नयी शादी है एक साल में ही बच्चा हो गया, कही घूमने भी नहीं जा पायी और गई भी तो पूरा परिवार साथ गया। आज इनसे बात करती हूँ दोनों को कही घूमने भेजती हूँ।

सावित्री (सपना की सास)-सुनिए, सोच रही थी बच्चों को कही घूमने भेज दूँ, सपना और सुदीप अकेले कही घूमने नहीं गये है।

आलोक (सपना के ससुर)- पर शिवी तो अभी 11 महीने की है, दोनों कैसे सम्भाल पायेंगे।

सावित्री (सपना की सास)-सपना और सुदीप बच्चें नहीं है सम्भाल लेंगे, और अकेले नहीं जाएँगे तो सीखेंगे कैसे, कब तक हम साथ चलेंगे।

आलोक (सपना के ससुर)-मेरा तो मन बिल्कुल नहीं है पर तुम भेजना चाहती हो तो रोकूँगा नहीं।

सावित्री जी सपना और सुदीप से बात करती है और मसूरी के लिये टिकट बुक हो जाती है। दो दिन बाद की रवानगी है सपना तैयारी में लगी है पर मन में एक अजीब सा डर है।

दो दिन बाद सपना और सुदीप मसूरी पहुँचते है।

सपना- सबसे पहले बढ़िया सा होटल लीजिए। बेटी परेशान हो गई है इतना ठंडा मौसम है। बहुत ढूँढने पर एक होटल मिलता है, पर वहाँ अधिकतर जवान लड़के लड़कियाँ ही आ रहे थे कोई भी फ़ैमिली वाला नहीं था, उसे कुछ संदेह हो रहा था पर रात के 11:30 बजे छोटी बच्ची को लेकर जाये भी तो कहाँ। मजबूरन वहाँ रात बितानी थी।




अगले दिन सपना ने सुदीप को दूसरा होटल ढूँढने कहा।होटल मिल गया, अब दोनों नहा धोकर बेटी को लेकर घूमने निकले, पर ठंड की वजह से सपना को पल पल बस बिटिया के स्वास्थ्य की चिंता हो रही थी। थोड़ा घूमने फिरने के बाद दोनों ख़ाना खाने बैठे, उसी बीच बेटी ने पॉटी कर दी, पर सपना को तो पॉटी साफ़ करना बिल्कुल पसंद नहीं था, इसी कारण उसकी सासु माँ ही हमेशा पॉटी साफ़ करती थी।

अब सपना को रोना आ रहा था किसी तरह उसने पॉटी साफ़ की। ख़ाना खाकर दोनों रूम पर पहुँचे। बेटी को तेज बुख़ार था, उसके कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। घर में बताना भी ठीक नहीं लग रहा था क्योंकि सब सोचेंगे दो दिन भी ध्यान नहीं रख पायी।

सुदीप-बच्चे की दवाई लायी हो।

सपना-याद था पर लास्ट टाइम रखना भूल गई।

सुदीप-देखा सपना, परिवार के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है, हम उनके बिना कुछ नहीं है। आज मम्मी पापा भी साथ होते तो बेटी की चिंता तुम्हें करनी ही नहीं पड़ती और हम तुम अच्छे से घूम भी लेते। याद है उस बार जब हम आये थे, कोई टेंशन नहीं थी, होटल भी पापा ने बढ़िया सा ढूँढ दिया था, ख़ाना की व्यवस्था भी मम्मी पापा करते थे। यहाँ तक ज़रूरतमंद सामान भी मम्मी ने ही पैक किया था। हमे मच्छर ना लगे इसके लिए मच्छरदानी तक रखी थी माँ ने।

सपना-हाँ सुदीप। तुम बिल्कुल ठीक थे, परिवार के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। और रही बात मेरे शौक़ और प्राइवेसी की, तो मम्मी पापा ने मुझे कभी कपड़ों को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है, और हमे अकेले समय बिताने का भी बहुत अवसर दिये थे। सुदीप मैं हमेशा से एकाकी परिवार में रही हूँ तो संयुक्त परिवार की ख़ूबसूरती से अनजान थी। पर मुझे अब अपनी गलती का एहसास हो गया है कि परिवार के बिना स्वर्ग भी नरक के समान है।




मसूरी से लौटते ही सपना ने सावित्री जी से कहा-माँ अब कही जाएँगे तो साथ में। अकेले जाने में कोई मज़ा नहीं आया।

सावित्री जी ने जिस उद्देश्य से सपना और सुदीप को अकेले भेजा था वो सार्थक हो गया था।

आदरणीय पाठकों,

आजकल सब एकाकी जीवन जीना पसंद करते है, सबको प्राइवेसी चाहिए, पर जो आनंद परिवार के साथ है वो कही नहीं। परिवार है तो बड़े से बड़ा दुख, संकट का आसानी से निवारण किया जा सकता है। आप अपने बड़ों के अनुभवों से जीवन जीने की कला सीख सकते है।  परिवार ही तो बच्चे की प्रथम पाठशाला बनता है, दादी की लोरी और कहानियों के बिना बचपन दौड़ है। परिवार साथ है तो किसी बाहरी की हिम्मत नहीं हो सकती कि आपको कोई हानि पहुँचाए, पर एक कुशल परिवार के लिए सभी सदस्यों की भागीदारी, समर्पण, त्याग और प्यार की माँग है, जिसका आजकल अभाव देखा जा रहा है, लेकिन अगर आने वाली पीढ़ी इन सभी गुणों से अपने आपको परिपक्व कर लें तो आज भी 18-20 सदस्यों वाले परिवार अस्तित्व में आ सकते है🙏🏻

आशा करती हूँ आप सबको आपके परिवार की इस सदस्या की ये रचना पसंद आयी होगी, तो इस रचना पर अपनी टिप्पणी अंकित करना ना भूले।

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

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