ये क्या मोहिनी ,तुम मेरी ये विस्की की बोतल क्यूँ लेकर बैठी हो ?? पागल हो गयी हो क्या ?? ये क्या हाल बना रखा हैँ ,नमकीन ,सोडा ,पानी लेकर ऐसे आराम से बैठी हो,जैसे कोई काम ही ना हो ! विनित आग बबूला होते हुए बोला !
यार विनित ,तुम तो रोज लेकर बैठते हो ! मैने सोचा क्यूँ ना मैं भी लगा लूँ दो पेग ! मोहिनी हँसते हुए बोली !
विनित -यार मोहिनी ,वो तो मुझे इतना काम होता हैँ ! ऑफिस की टेंशन ,घर की टेंशन ,इसलिये बस खुद को थोड़ा रिलैंक्स करने के लिए पी लेता हूँ ! वैसे भी आदमी तो पी सकते हैँ ! पर औरत ऐसा कभी नहीं कर सकती !
कहाँ लिखा हैँ विनित कि आदमी शराब पी सकता हैँ पर औरत नहीं ! मुझे भी तो बहुत टेंशन रहती हैँ ! सास ससुर के इतने काम ,घर के काम ,बच्चों का होमवर्क ,सुबह से लेकर शाम तक चकरघिन्नी सी घूम जाती हूँ ! इसलिये मैं भी थोड़ा रिलैक्स हो लूँ ! आओ ,जॉइन मी ! बहुत मज़ा आयेगा ,जब मिल बैठेंगे तीन यार ,,आप, मैं और ये प्यारी सी विस्की ! सच में विनित ,बहुत मजेदार होती हैँ ये शराब ! पहली बार पता चला !! लग रहा हैँ मुझे भी कि नमकीन ,सोडा और हाथ में जाम हो ,बस ऐसे ही ज़िन्दगी चलती रहे ! विनित का हाथ खींच मोहिनी ने उसे सोफे पर बैठा दिया !
तुम्हारा दिमाग सच में खराब हो गया हैँ भाग्यवान ! अब इस घर को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता ! इस घर की लक्ष्मी ही जब ऐसे कर्म करें तो घर का नाश होना तय हैँ !
मोहिनी – जब तुम शराब पीकर मुझ पर बेल्ट से मारते ज़ाते हो तब तो नहीं कहते मुझे लक्ष्मी ! तब इस घर का विनाश नहीं होता ! बस नशा ऊतरते ही माफी मांग लेते हो ! और मैं बेवकूफ बच्चों और घर की खातिर तुम्हे माफ कर देती हूँ ! पर अब नहीं , बहुत अन्याय सह लिया ! अब तुम अपनी ज़िन्दगी ज़ियों ,मैं अपनी !
इस कहानी को भी पढ़ें:
अब और नहीं -सुधा शर्मा
विनित -ओह ,तो तुम मुझसे बदला ले रही हो ! मुझे माफ कर दो ! अब नहीं लगाऊँगा हाथ ना शराब को और ना तुम्हे ! कितनी बार तुमने कहा मत पियों ! पर हर बार मन नहीं मानता था ! नशा चीज ही ऐसी हैँ ! पर तुम्हारे इस रुप ने सारा नशा छूमंतर कर दिया !
शराब को तो ठीक हैँ हाथ मत लगाओ ,पर मुझे हाथ ना लगाना ,ये तो शराशर नाइंसाफी हैँ ! इतना कहके मोहिनी शरमा गयी !
तभी पीछे से सासू माँ जो इतनी देर से सारा ड्रामा देख रही थी ! बाहर आयी !
मज़ा आ गया बहू ,तूने तो बहुत अच्छी एकटींग की ! मैने तो थोड़ा ही बताया था ! क्यूँ रे ,अकल ठिकाने आयी य़ा नहीं ! बड़ा आया मेरी बहू को परेशान करने वाला !
क्या ,,आप हैँ इस नाटक की डायरेक्टर ! सब मिलकर मुझे बूद्धू बना रहे थे ! पर माँ सच में आपके इस नाटक ने मेरी आँखें खोल दी ! सच कहते हैँ ! एक औरत चाहे तो कुछ भी कर सकती हैँ !
मुझे माफ कर दो आप दोनों !
जा जा पगले ,अब बहू को कहीं घुमा ला ! कल से टेंशन में थी कि इनके सामने कैसे कर पाऊंगी नाटक ! अब इसे रिलैक्स कर दे ,नहीं तो और भी तरीके हैँ टेंशन दूर करने के ! पता है ना तुझे !
अरे नहीं नहीं ,चलो जल्दी मोहिनी तैयार हो जाओ !
विनित की बात पर सब खिलखिलाकर हंस दिये !
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा