पुरानी हवेली – आरती झा आद्या 

तेरी इस सुन्दरता का राज क्या है.. सीमा ने शिवानी से पूछा। 

आज शिवानी ने लेक्चरर बनने की खुशी में घर पर ही पहली बार सहेलियों के लिए दावत रखा था। 

इसकी तो पुरानी हवेली भी अपनी पुख्ता अंदाज में खड़ी है। तेरी सास, तेरी सास की सास कैसे संभालती है तू इन्हें… शिवानी की सहेली रीना ने पूछा। 

तभी घर का घरेलू सहायक लखन चाय के साथ तली हुई पापड़ दे गया।

ये सब बात बाद में.. पहले चाय तो ले.. शिवानी चाय की प्याली उठाते हुए सबको देते हुए कहती है। 

तू स्कर्ट डाल लेती है क्या.. तेरी पुरानी हवेली कुछ कहती नहीं है क्या। यहाँ तो भाई बहुत मुश्किल से जीन्स के ऊपर कुर्ती डालने की अनुमति मिली मुझे… दिव्या कहती है। 

इसने भी जबरदस्ती ही डाला होगा स्कर्ट… इतनी पुरानी सोच वाले कहाँ समझ पाते हैं हमारी बातें.. रीना कहती है। 

इन सभी चर्चाओं के बीच लखन खाने पीने की तरह की चीजें दे जा रहा था और सब बातें करते हुए खाने का स्वाद भी ले रही थी। 

तुझे तो उठने की भी जरूरत नहीं पड़ रही। तेरा नौकर तो बहुत समझदार लगता है… सीमा ने कहा। 

नौकर नहीं है ये। हमारे घर का सदस्य होने के साथ साथ सहायक है। इनके बिना तो घर चले भी नहीं है। दादी माँ तो बेटे सा ही प्यार करती हैं इनसे.. शिवानी मुस्कुराते हुए कहती है। 

ये कह ना पुरानी हवेली ने सब कुछ अपनी मुट्ठी में ले रखा है। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

धोखा – कुमुद चतुर्वेदी




तुम लोग भी ना क्या क्या बात लेकर बैठ गई हो। हम लोग यहाँ शिवानी की सफ़लता का जश्न मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं.. बहुत देर से चुप बैठी सबकी बातें सुनती सुमन ने कहा। 

दीदी लंच लगा दिया है.. आप लोग आ जाइए.. लखन आकर सूचित करता है।

तरह तरह के नये पुराने पकवान खाने की टेबल की शोभा बढ़ा रहे थे।

तेरी सास और सास की सास कुढ़ गई होंगी ना तेरी सफलता से.. रीना की आवाज में ईर्ष्या का पुट भी था।

सच कहूँ तो बिना परिवार के सहयोग के ये सब नहीं हो सकता था। इतनी बड़ा परिवार देखकर तो मुझे भी लगा था कि गए मेरे सपने पानी में। अपनी सारी ख्वाहिशों की तिलांजलि देनी होगी। लेकिन घर के सभी सदस्यों के सहयोग ने मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचा दिया.. शिवानी खाना खाते हुए कहती है।

भाई तू मीडिया को इंटरव्यू नहीं दे रही ,जो बेसिर पैर की बातें कर रही है। हमारे सामने तू अपने मन की बोल सकती है.. जैसे हम तो जानते ही नहीं हैं कि ससुराल क्या होता है.. रीना बुरा सा मुँह बनाती हुई कहती है।

थोड़ी गलती तो हमारी भी होती है रीना.. ससुराल जाते ही हम सुघड़ बहू बनने की कोशिश में.. वाह वाही के चक्कर में खुद को.. खुद के सपनों को भूल जाती हैं। कभी घर के लोगों से खुद के बारे में नहीं बताते हैं। जैसे हमें सपना नहीं आएगा कि किसको क्या पसंद है। उसी तरह उन्हें भी सपना नहीं आएगा कि हमें क्या पसंद है। जब सबको हमारी आदत हो जाती है तो हम खिन्नता प्रकट करने लगते हैं। हाँ अगर खुल कर बात करने के बाद भी लोग ना समझे तो हम अपने लिए बेशक खड़े हो सकते हैं.. शिवानी अपनी सोच सबके समक्ष रखती है। 




पर देख हम इतनी देर से आए हुए हैं और तेरी सास एक बार भी बाहर नहीं आई.. सीमा ने कहा। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बहू, बहू रहे और बेटी, बेटी तो ही अच्छा  –  संगीता अग्रवाल 

हाँ.. क्यूँकि मुझे तुम लोग के साथ समय बिताने का अवसर मिले इसीलिए मेरी सासु माँ ने कहा कि जब तुम लोग जाने लगो तब उन्हें बुला लूँ.. शिवानी मुस्कुराते हुए कहती है। 

खाना तो बहुत जायकेदार है लखन भैया.. शिवानी प्रसन्न चित्त हो कहती है। 

खाना तो सचमुच गजब के स्वाद का है.. शिवानी की सहेलियाँ एक साथ कहती हैं। 

लखन भैया कॉफी बना कर दादी माँ के कमरे में ले आइएगा.. बोलती हुई शिवानी सहेलियों के साथ बैठक में आ जाती है। 

अब बोलो मिलोगी पुरानी हवेली से.. मुस्कुराती हुई शिवानी पूछती है। 

जरूर.. मिलवा तो सही.. सुमन कहती है। 

शिवानी सबको लेकर दादी माँ के कमरे में पहुंचती है तो वहाँ शिवानी की सास और दादी माँ शतरंज लिए बैठी गहरी सोच में डूबी थी। 

माँ दादी माँ.. ये सब आप दोनों से मिलना चाहती थी.. इसीलिए मैं कमरे में ही ले आई… शिवानी कहती है। 

बहुत अच्छा किया बेटा.. बैठो तुम सब भी.. दादी माँ कहती हैं और सासु माँ शतरंज समेटने लगती हैं। 




शतरंज देख सभी सहेलियाँ एक दूसरे को ऐसे देखती हैं मानो कुछ अजूबा देख लिया हो जिसे दादी माँ भाँप जाती हैं। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

एक धोखा ऐसा भी..!! – प्रियंका मुदगिल

क्या हुआ बच्चों.. कुछ पूछना चाहती हो.. दादी माँ ने कहा। 

वो आप दोनों शतरंज खेल रही थी.. रीना कह ही रही थी कि 

जबकि सास बहू में तो पटती नहीं है… बोल कर दादी माँ जोर का ठहाका लगाती है। 

बेटा हम तीन पीढ़ी की औरतें इस घर में हैं.. मैं, मेरी बहू और मेरी बहू की बहू शिवानी। ऐसा नहीं था कि हमारे सपने नहीं होते थे.. होते थे.. जो पूरे नहीं होते थे और जिसकी कुंठा हम अक्सर अपनी बहू पर निकाल देते हैं। मैंने भी वही किया..जबकि बड़े होने के नाते हमें बड़प्पन दिखाना चाहिए। जब शिवानी आई तो उसने हमें बताया कि ये गलत है। अगर हम कुंठा निकालने के बजाए एक दूसरे के सपनों को उड़ान देने की कोशिश करें तो हमें जो आंतरिक खुशी मिलेगी वो अनमोल होगी और परिवार की एकता बनी रहेगी। मेरी हमेशा से इच्छा थी कि मैं शतरंज सीखूँ.. जो कि शिवानी ने सिखाया। मेरी बहू की हमेशा से इच्छा थी कि वो सलवार कमीज डाले.. अपने वर्चस्व के कारण मैंने डालने नहीं दिया। यही छोटी छोटी इच्छाएँ होती हैं हमारी.. जो कि हमने अब एक दूसरे की आँखों से देखना सीख लिया और ये पुरानी हवेली भी अब तुम लोगों के साथ कदम ताल करने के लिए तैयार बैठी है… बोल कर दादी के चेहरे चमक आ जाती है। 




और सखियों परिवार की ऐसी खुशी में छुपी है मेरी सुन्दरता का राज.. बोल कर शिवानी दादी के गले में हाथ डाल झूल जाती है। 

#परिवार

आरती झा आद्या 

दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!