दरवाजे पर शहनाई बज रही थी, कल्पना जी फूलों से नई बहू की अगवानी (स्वागत)कर रही है, वो सबसे पहले अपनी नई बहू सपना को दादी सास के पास ले जाती हैं, जैसे ही नई बहू सपना ने दादी सास के चरण स्पर्श किए, दादी जी ने आशीर्वाद के साथ साथ नसीहत और सलाहों की झड़ी लगा दी, कहा बहू रोज बड़ों के और अपने सास ससुर के चरण स्पर्श करना, ये तुम्हारा फर्ज है।
कुछ दिन बाद जब सपना के पापा मम्मी उसके ससुराल आये तो शैलेन्द्र (सपना के पति) ने आगे बढ़कर अपने सास-ससुर (सपना के मम्मी पापा)के पैर छुए तो दादी जी को शायद अच्छा नहीं लगा,उस समय तो उन्होंने कुछ नहीं कहा पर उनके जाते ही शैलेन्द्र से बोली क्यूं रे तुझे क्या जरूरत थी उनके पैर छूने की , वैसे भी मान (दामाद) से कौन पैर छुलवाता है?
शैलेन्द्र ने भी कहा क्यूं दादी क्या हमें ये नहीं सिखाया जाता कि अपनों से बड़ों के पैर छूने चाहिए और ये तो दोगला (दो तरह का) व्यवहार क्यों, बहू के लिए और, और बेटे के लिए और!जब सपना मेरे मम्मी पापा और आपको,घर में सभी को इज्जत और सम्मान दे सकती है तो मैं क्यूं नहीं उसके मम्मी पापा को वो सम्मान दे सकता?
इस पर दादी बोली तू बहुत भोला है, ये तो समाज के नियम और सोच है कि दामाद भगवान समान होता है और भगवान से भी कोई क्या पैर छूलवाता है?
इस पर शैलेंद्र की मां कल्पना जी, जिन्होंने शायद अपनी पूरी जिंदगी दादी के उसूलों और नियमों में काट दी मन में निश्चय करते हुए कि जो मेरे साथ हुआ वो अपनी बहू के साथ ना होने देगीं आखिर वो भी किसी की बेटी है , वे बोलीं सही ही तो कहता है शैलेन्द्र मां जी, जब बहू बेटी बन सकती है तो दामाद बेटा क्यूं नहीं बन सकता? बस अब इसी सोच को तो हमें बदलना होगा।
सपना खड़ी अपने भाग्य को सराह रही थीं और ससुराल को लेकर उसका सारा डर जाता रहा क्योंकि उसे इतनी समझदार मां समान सास और सभी की इज्जत और सम्मान करने वाला पति जो मिला था।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश