आज सुबह फोन उठाया तो पता चला आज गौरैया दिवस है। ठीक वैसे ही महिला दिवस आने पर कुछ दिन पहले फोन उठाने पर ही पता चला था कि आज महिला दिवस है।
कुछ दिन पहले मेरा दिवस निकला अब तेरा दिवस मनाया जा रहा है।
ठीक ही तो है। मुझे भी तो बचपन से यही कहा गया बेटियां तो चिड़िया जैसी होती हैं ।जब तक दाना पानी है तब तक रहेंगी और उड़ जाएंगी,,,,,
मुझे हमेशा बाबुल के आंगन की चिड़िया बताया गया
मुझसे घर में रौनक रहती थी,,,,,,,,
तू भी तो हम सभी के आंगन की रौनक थी,,, तेरी चहकने से सुबह होने का एहसास होता था,,,,,,,
और पूरा घर जाग जाता था,,,,,,
लेकिन आंगन की जगह हर होल ने ले ली है और बालकनी बन गई हैं।
क्या इसीलिए तू हमारे घरों में नहीं आती,,,,,
हमने हॉल और बालकनी खोल रखे हैं।
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इंतजार करती हूं तू आए और बच्चे फोन को छोड़कर तुझे देखे जैसे मैं देखती थी अपना बचपन एक बार मैं फिर से जीना चाहती हूं।
तुझसे अच्छा आज तक कोई खिलौना नहीं बना,,,,,
क्योंकि तुझे याद करने पर हर बूढ़ा आदमी भी चाहे वह महिला हो या पुरुष अपने बचपन की यादें तेरे साथ जीने लगता है।
मैंने तेरे साथ बहुत खेला तुझे पकड़ने का बहुत प्रयास करती थी लेकिन तू तो बहुत तेज थी सहेज पकड़ में नहीं आती थी,,, एक बर्तन में रंग को घोल कर रखते थे
बड़े लोगों की सहायता से डलिया से चिड़िया को कैसे पकड़ा जाता है ।और हम छुप जाते थे जैसे ही तू डलिया के अंदर दाना लेने आती थी हम तुझे बंद कर लेते थे,,,
इरादा तुझे मारने का तो बिल्कुल भी नहीं होता था बस तुझे अपनी चिड़िया बनाना चाहते थे कि जब तू आए तो तेरे रंग लगा होगा हम चिल्लाकर सभी को बताएंगे मेरी चिड़िया है। और हम रंग करके तुझे छोड़ देते थे,,,, तेरे आने का दोबारा से इंतजार करते थे कि तू वही वाली है।
गर्मियों की छुट्टियां कैसे कट जाती थी हमें पता ही नहीं चलता था तेरे साथ खेल कर,,, और हमारे बड़े भी हमारे खेल में शामिल हो जाते थे,,,,,
जब अम्मा पूजा करती थी तो भगवान को चावल का भोग लगाती,,,, इनमें से कुछ चावल तेरे लिए फेंक देती
तू अपने हिस्से का दाना लेकर फुर्र से उड़ जाती,,,,
जब चाची चाचा के घर में नया मेहमान आने वाला होता तब अम्मा तुझे चावल फेक थी और हमसे कहती देखना पहले चिड़िया दाना लेकर उड़ती है या चिरौटा दाना लेकर उड़ता है।
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अगर चिरौटा उड़ता है तो बेटा,,,,, चिड़िया उड़ती तो बेटी,,,,
हम बच्चे सोच में पड़ जाती इस चिड़िया को कैसे पता की चाची के पेट में मेरा भाई है या बहन,,,,,, खैर जो भी होगा बहुत खुश हो जाते,,,,,,
जब बाबा चौकी पर खाना खाते तू फुदक फुदक के उनके पास पहुंच जाती बाबा रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करते और तेरी तरफ फेंक देते,,,,, तू सभी के घर की एक महत्वपूर्ण सदस्य थी,,,,
तेरे बच्चे हमारे घरों में घोंसले से गिर जाते जो बिना पंख के होते उनकी चलती हुई सांसे आज भी मुझे याद है सोचते इस बच्चे को कैसे बचाएं और उसको देख देख कर भावुक होते जाते,,,,
अपनी अम्मा यानी दादी से बहुत सारे बेतुके सवाल पूछा डालते,,,,,,
तेरे छोटे बच्चे छोटे-छोटे पंख के साथ उड़ान भरने वाले ही होते कि तभी शिकारी कौआ तेरे बच्चों पर हमला कर देता हम बच्चे उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ते,,,,,
जब तुम्हें हम हाथों से छूने की कोशिश करते तो बड़ी डांट पड़ती चिड़िया अपने बच्चों को छोड़ देगी
मन तो करता छूने का लेकिन घर में कोई भी छूने ना देता
तेरी भी कहानी मेरी तरह हो गई है,,, मेरे लिए कहा गया,,,,,, बेटी पढ़ाओ,,, बेटी बचाओ,,,
तेरे के लिए कहा गया,,, गौरैया बचाओ,,,,, पढ़ाना इसलिए नहीं कहा क्योंकि तू तो पहले से ही बहुत होशियार है।,,,, किसी के हाथ ना आती,,,,,,,
अब हमारे नए घर बन गए हैं हमसे जो गलतियां हुई उनको छोड़,,,,,, अपने पक्के घरों में तेरे लिए प्लाई का अच्छा सा घर बना दिया है जिस पर लिखा है गौरैया बचाओ,,,,,, तुम अब उसमें बिना गिला शिकवा करें अपना घोंसला बनाती हो और अपने परिवार को बढ़ाती हो,,,,यह देख कर मेरा बेटा वहीं बैठ कर खाना खाता है और तुझे देखकर बड़ा खुश हो जाता है।
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अब हम अपनी छतों पर पानी भी रखते हैं और तेरे लिएअच्छा सा घर भी बनाते हैं।
क्योंकि अब हम जान चुके हैं कि तुझसे अच्छा खिलौना मेरे बच्चों के लिए दुनिया में नहीं है।
तू ही तो हमें अपनी चहकर जगाती हो कि सुबह हो गई
और तू यह भी हमें सिखाती है कि अपने बच्चों को परवरिश कैसे करनी चाहिए क्योंकि तू अपने बच्चों को बहुत अच्छे से पालती है खिलाती पिलाती है।
और उन्हें उड़ान भरने का हुनर सिखाती है। ना कि हमारी तरह अपने बच्चों की बैसाखी बनती हैं।
दिनभर परिश्रम कैसे किया जाता है तुझसे अच्छा भला कौन से सिखा सकता है। क्योंकि तू हमारे साथ ही तो रहती हो
शाम होने पर अपने घोंसले में लौट जाने का संदेश देती है।
जितनी मेरे होने से घर में रौनक होती है।
उतनी ही तेरे होने से घर में रौनक होती है।
क्योंकि मुझे भी तो तेरी तरह गौरैया ही कहा गया है।
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आज यहां तो कल वहां,,,,,
अब वापस आ जा अपनों से कोई नाराज नहीं होता,,,,
तेरे घर में ना होने से घर सुना है। बच्चे अब तेरी कहानी सुनते हैं हमारे मुंह से अब तेरे साथ खेलना चाहते हैं मेरी तरह,,,,,,,
हम सब तेरे इंतजार में हैं क्योंकि तेरे होने से घर में रौनक होती है। मेरी प्यारी गौरिया,,,,,,, तू आएगी ना,,,,,,,?
औरैया दिवस पर अपने घर में एक गौरैया परिवार को जगह जरूर दे सभी के घर चेहक उठेंगे,,,
मंजू तिवारी गुड़गांव
प्रतियोगिता हेतु
पांचवा जन्मोत्सव बेटियां
प्रथम कहानी
मौलिक व स्व लिखित