इज्जत – उमा वर्मा

सुबह  सुबह मुहल्ले में चर्चा हो  रही थी ।वह जो कोने वाली मंदिर है न, उसमें एक लड़की आई है जिस पर माँ  आती हैं ।वह जो कुछ कहती है सब सच होता है ।सभी माँगने वाले की मुराद पूरी हो जाती है ।मुझे इन बातों पर जरा भी विश्वास नहीं था ।फिर भी सोचा चलकर देखना चाहिए ।अगले दिन जल्दी अपने काम खत्म करके तैयार हो गई ।बहु ने पूछा तो बहाना बना दिया ” सहेली से मिलने जा रही हूँ ” क्या पता बहू को लगेगा कि यह लोग गलत थोड़ी ना कहेंगे ।

हालांकि बहू भी इन बातों को नहीं मानती थी ।सुबह सुबह कोई नहीं पहुँचा था ।मै सीधे मंदिर के भीतर कमरे में चली गई थी ।” कुसुम तुम? यहाँ?” मेरे प्रश्नों से वह हड़बड़ा गई ।वह मेरी बचपन की सहेली कुसुम थी।मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह यहाँ, इस तरह मिलेगी ।हमारा बचपन एक ही मुहल्ले में गुजरा था ।एक साथ स्कूल जाना हुआ ।फिर वह अचानक गायब हो गई ।

और आज यहाँ?  उसने दरवाजे को बंद कर दिया और एक अंधेरे गलियारे से होती हुई बाहर आ गयी ।” अब हमे कोई नहीं देख पायेगा ” ” हाँ पर,यह तो बताओ तुम यहाँ कैसे? और अचानक स्कूल से गायब हो गई? मुझे पूरी बात बताओ ।” उसने कहना शुरू किया– दीदी, मै दस साल की थी जब आपके साथ स्कूल में थी।जिंदगी में जैसा बचपन होना चाहिए, सबकुछ वैसा ही था ।

बिंदास, बेफिक्र ।एक दिन गाँव से मेरे दूर के चाचा आये।वे बहुत अच्छे, हँसमुख, मिलनसार थे।पापा मम्मी ने खूब सवागत सत्कार किया ।रात को सब लोग घूमने गए ।सिनेमा और बाहर खाना हुआ ।लौटना हुआ तो सब थके हुए थे ।जल्दी सोने चले गए ।मेरे दुख का शुरूआत यहाँ से ही हो गया ।रात के एक बजे होंगे ।मेरे बिस्तर पर मेरे वही चाचा थे उनहोंने मेरे मुंह को हाथ से दबा रखा था ।मै चिल्लाना चाहती थी पर आवाज़ ही नहीं निकली।फिर मेरे साथ अनर्थ हो गया ।




मैं लाज और डर से अपने माता पिता को नहीं बोल पायी।मै बेबस अपने में  घुटती रही ।चाचा के रूप में वह दरिन्दा अगले दिन चला गया ।मेरे घर वालों के लिए वह देवता था ।हर बार लगता, बता देना चाहिए  लेकिन मन का डर रोक देता।समय बीतने लगा ।आपके पापा की बदली दूसरे जगह हो गई ।आप रहती तो किसी तरह मन का बोझ हल्का हो जाता ।

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तर्पण – किरण केशरे

फिर पन्द्रह साल की हुई तो शादी रचा दी गई ।ससुराल में सबकुछ ठीक ही लगा था कि एक दिन पति टूर पर निकल गये ।कहा ” छोटा भाई है उसका खयाल रखना ।” वह अभी पढ़ाई कर रहा था ।मै उसके खाने पीने और सुख सुविधा का खयाल रखती थी ।वह भी पीछे पीछे लगा रहता ।एक दिन कुछ मेहमान आये हुए थे ।सबकी आवभगत करते मै थक कर चूर हो गई थी ।रात में उनलोगों के जाने के बाद मै भी जल्दी सो गयी।

फिर आधी रात को मेरा वही देवर मेरे बिस्तर पर था ।मै कुछ बोल पाती इसके पहले उसने मेरा मुँह दबा दिया ।कहा ” किसी को कहोगी तो कोई विश्वास नहीं करेगा ” तुम मुझे शुरू से बहुत पसंद थी।चाह तो मै रहा था, पर भाई ने तुम्हे पसंद कर लिया ।क्या फर्क पड़ता है दोनों रहेंगे ।” छीः छीः मै कहाँ फंस गयी? यही सोचकर मैं रोते-बिलखते रहती ।

लगा अपने माता पिता को बता देना चाहिए ।लेकिन वही डर  हावी हो गया ।सब मुझे ही दोष देंगे ।एक दिन हिम्मत करके सास को बताया तो वह मुझे ही गलत ठहरा देती थी ।पति टूर से लौट आए ।रोते बिलखते उनको बताया तो वह मुझे ही गालियाँ देने लगे।मेरा जीवन नरक बन गया था ।दिन रात ईश्वर को कोसने लगती, यह कैसा जीवन मुझे दिया है प्रभु? अब तो उठा लो।अब सहा नहीं जाता ।यही अंत नहीं था ।शादी के तीन साल हो गए ।




अब बच्चे न होने की गाली सुनाई पड़ने लगी ।सास कहती ” बेटे का दूसरा ब्याह कर देगें ।यह तो एक वारिस नहीं दे सकती तो इसका रहना बेकार है ” कुछ तो करना ही पड़ेगा ।फिर कुछ दिन और बीत गया ।मै न मर रही थी न जी रही थी ।न जाने किस जन्म की सजा भुगतनी पड़ी थी ।और एक काली रात मेरे जीवन को अंधेरा कर गया जब पति अपनी माँ को लेकर उनके मायके पहुंचाने गये थे ।देवर भी किसी दोस्त की शादी में चला गया था

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ससुर को खाना खिलाया और सोने चली गई थी मै।ससुर जी कोल्ड ड्रिंक की बोतल लेकर आये थे उठा कर बोले ” बहुत अच्छा माजा लाएं हैं तुम भी पी लो” मैंने भी पी ली।मुझे माजा बहुत पसंद था ।जल्दी ही मुझे नींद आ गयी ।और फिर आधी रात को ससुर जी मेरे साथ थे।फिर वही सब झेलती रही ।ससुर जी चले गए अपने बिस्तर पर ।मेरा बदन टूट रहा था ।

सुबह के तीन बजे थे।मन में एक निश्चय किया ” मुझे पांचाली नहीं बनना है ” इस नर्क से अभी मुक्त होना है मुझे ।और मै बिना पीछे देखे तुरंत निकल गयी।एक आटो मिल गया ।मै दस किलोमीटर दूर अपनी मौसी के घर पहुँची ।उनको अपनी कहानी सुनाई ।शादी के बाद माता पिता ने पूछताछ ही छोड़ दिया था ।वे बस बेटे के लिए जी रहे थे ।मौसी ने सहारा दिया ।

वह भी बहुत गरीबी में जी रही थी ।मौसा जी नहीं थे और बाल बच्चे हुए ही नहीं ।किसी तरह गुजर बसर कर रही थी दूसरे के घर में चौंका बर्तन करके ।मेरा बोझ कहाँ से उठाती फिर भी सहारा तो दिया ही ।मौसी ने समझाया कि आज से मंदिर ही तुम्हारा बसेरा है ।यह दुनिया तुम को जीने नहीं देगी ।तुम जैसा मै कहती हूँ, वैसा ही करो ।फिर देखो लोग तुम्हारे पाँव पूजेंगे।

मेरी इज्जत तो तार तार हो ही गई थी ।अब जीवन जीने का यही एक रास्ता बचा था ।बस मै देवी बन गई ।संजोग से किसी की मुराद पूरी हो जाती तो खूब चढ़ाया जाता ।मेरी और मौसी दोनों का खाना खर्च  चलने लगा था की आप से भेंट हो गई ।मुझे माफ कर देना दीदी ।




मै बहुत बुरी हूँ ।जुलम के खिलाफ आवाज नहीं उठा पायी।मै उसकी कहानी सुनकर बहुत दुखी थी ।उसने कहा ” आप बहुत कहानी  लिखती हो कभी मेरी नहीं लिखोगी? और फिर यह सच्ची घटना पर लिखी गई कहानी आपके सामने है ।आप क्या कहना चाहेंगे?

।स्वरचित, अप्रकाशित, व मौलिक रचना ।

#इज्जत 

 उमा वर्मा, नोएडा ।

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