मेडिकल कॉलेज के दीक्षांत समारोह में आत्मविश्वास और बुद्धिमता के तेज से लबरेज़, स्टेज की झलमल करती रोशनी में डॉ.अनुभा का चेहरा अलग से चमक रहा है।
उसकी माँ चारू गर्व से फूली नहीं समा रही।
उसने चारो तरफ नजर घुमाई सभी की दृष्टि डॉ. अनुभा पर ही टिकी हुई है,
” आज कितनी खुशी का दिन है, अनुभा ने अपना लक्ष्य पा लिया है। “
“उसकी इस खुशी को मैं तुषार सर के साथ बांटना चाहती हूँ “।
जिन्होंने तब सहज ही गुरु धर्म का पालन करते हुए अपने संतुलित व्यवहार से राह से भटकी किशोरी अनुभा को संभालने में मेरी मदद की थी।
“यदि उस नेक व्यक्ति ने अनुभा के बहकते कदम से मुझे अवगत न कराया होता तो ?”
चारू को वर्षों पहले की वह घटना याद आ गई…।
१२/ सितम्बर
आज अनुभा की पी.टी.एम क्लास अटेंड करने उसके स्कूल गयी थी। सभी शिक्षिकाओं से मिलने के बाद मैथ्स के टीचर तुषार सर के पास गई। यों मैं उनसे अंजान नहीं थी।
अनुभा के मुंह से उनकी तारीफ सुन कर भली-भाँति जानती थी।
वहाँ पंहुच कर शिक्षक की कुर्सी पर बैठे उस लम्बे सुदर्शन युवक को अपनी ही तरफ ध्यान से देखते हुए मैं सकुचा गई ,
” आप अनुभा की माता जी हैं ना?”
” हाँ”
कह कर मैंने दोनो हाथ जोड़ दिए।
“ठीक है, कह उन्होंने एक सुंदर, गुलाबी, खुशबूदार लिफाफा पकड़ा दिया”।
” बात अनुभा से संबंधित और थोड़ी नाजुक है, इसे आप घर जा कर ही खोलिएगा ” उनकी आवाज गंभीर थी।
” इसे अनुभा ने मुझे दिया है। हाँ आप अनुभा से इसका जिक्र मत करिएगा कि यह आप तक पंहुचा दिया गया है”।
फिर थोड़ा रुकते हुए,
“आपने मनोविज्ञान पढ़ा है? इस उम्र के बच्चों के साथ अक्सर ऐसा होता है “
“उन्हें प्रेम और श्रद्धा के बीच का फर्क नहीं पता होने के कारण वे अपने शिक्षकों के साथ मानसिक लगाव को ही
प्रेम, ईश्क और मोहब्बत का नाम दे देते हैं “।
यह सुन कर मेरे चारो तरफ अंधकार छा गया। ऐसा लग रहा था मानों
अनुभा को उच्च शिक्षा दिलाने की मेरी समस्त महत्वाकांक्षाओं पर पानी फिर गया हो।
मेरे चेहरे पर झलक आए मनोभावों को परख कर तुरंत तुषार सर ने कहा,
” कृपया इसे अन्यथा न लें, अगर आप ही होश खो बैठेंगी तो सोचे फिर अनुभा का क्या होगा ?”।
उनकी हमदर्दी भरी वाणी सुन कर मेरे तो आंसू निकल आए।
” और हाँ कृपया अनुभा के इस कृतत्व को भयंकर अपराध के रूप में न लें “
” उसकी उम्र कच्ची है, इसलिए मैंने आपसे बात करना उचित समझा।”
” आप उसकी माँ हैं, उसके हृदय को अच्छी तरह समझ कर अभी भी परिस्थितियों को संभाल सकती हैं “।
अनुभा के इस बचपने से भरे कदम ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था। लेकिन फिर भी धैर्य से काम लेते हुए मैं अनुभा के हर क्रिया-कलाप पर ध्यान देने लगी।
साथ ही सर के सामने श्रद्धानवत् हो बीच-बीच में उनसे सलाह लेती रहती। जिसके फलस्वरूप ही अनुभा यहाँ तक पंहुच पाई है।
मैं आज अपनी तरफ से अनुभा की तमाम सफलता का श्रेय तुषार सर को देना चाह रही हूँ ।
” अगर समय रहते अपने गुरुधर्म का पालन करते हुए अनुभा के प्रति सही उत्तरदायित्व न निभाया होता तो उसकी जिंदगी बदरंग हो चुकी होती और हम कंही के न रहते ” ।
सर, आपने ही तो उसकी इस सफलता की आधारशिला रखी है। आप जहाँ कंही भी हैं। मेरी असीम ,अपार और अनंत शुभकामनाएं आपके और आपके परिवार के साथ हैं
स्वरचित /सीमा वर्मा