खाली स्त्री – कंचन श्रीवास्तव 

तुम मेरा चौतरफा संभालो हम तुम्हें भरपूर प्यार देंगे,कहते हुए एक पुरुष जब पहली रात को घूंघट उठा उंगली पर चेहरे को लेके कहता है, तो स्त्री का कोमल मन उसकी बात पर यकीन कर सहसा झुकी हुई पलकों से मौन स्वीकृति दे देती है।

अच्छा है मैं सब कुछ संभआलूगई,बदले में प्यार मिलेगा इनका,आखिर एक स्त्री चाहती क्या है बस पता का प्यार और क्या चाहिए।

“नानी ,काकी कहती हैं कि पति का भर पूर प्यार मिले तो स्त्री कम पैसे में भी गृहस्थी चला लेती है , तो मैं भी चला लूंगी।पर ……… पर……… हर स्त्री की किस्मत एक ही नहीं होती।और फिर गृहस्थी में फंसे तब तो जाने।हर घर का तौर तरीका अलग अलग होता है।”

खैर कोई बात नहीं घर कैसा भी हो पर शादी के  कुछ दिनों तक तो सब कुछ सच ही लगता है , क्योंकि पति उसके इर्दगिर्द मंडराता है,उसकी हर ख्वाहिश पूरी करता है,उसकी छोटी छोटी बातों का ख्याल रखता है, बस यही आकर्षक उसे उसकी मोहपाश में बांध लेता है।जिसे वो उम्र भर का प्यार समझ बैठती है।

पर वदलतए वक्त के साथ आहिस्ता आहिस्ता वो गृहस्थी में जब फंसने लगती है,तो उसका चारो पहर अपनों की उम्मीदें इतनी हो जाती है कि  उसे ही पूरा करने में लग जाती है,ऐसे में पति का प्यार प्रतिक्षा या ये कह लो इंतजार में बदल जाता है।




बदले भी क्यों न कभी अपनों में फंसने वाली स्त्री अपने में रम जाती है।यानि सास-ससुर,ननद,देवर की ख्वाहिश पूरी करते करते अपने ही बच्चों की परवरिश में व्यस्त हो जाती है।

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और जब वो इन सबसे थोड़ी  खाली होती है,तो उसके बालों में चांदी और चेहरे पर झाइयां दिखने लगती है और तो और कहीं न कहीं वो थकान भी महसूस करती है।

उसे ऐसा लगता है कि तमाम जिम्मेदारियों के बीच उसके अरमानों, ख्वाहिशों,की कही गठरी बन गई है , और तो और घूरने वाली नज़रें अदब करने लगी हैं यानि उसमें उम्र दराज होने की झलक दिखने लगी है।

फिर एक साथ बैठकर चाय पीते हुए पति से एक ही शिकायत करती है।

तुमने अपने मन की करवा भी ली और नहीं भी ,वो ऐसे कि भरपूर प्यार की लालच में मैंने तुम्हारा संपूर्ण संभाला ,इतना कि खुद के लिए वक्त ही नहीं मिला,और तुम कहते रहे कि मैं तो बुलाता हूं तुम्हें ही वक्त नहीं है हमारा प्यार पाने की। और मैं पिसती रही गृहस्थी के चक्कर में।

इस तरह तुम हार कर भी जीत गए और हम जीत कर भी हार गए।

वाह रे वाह

कभी कभी सोचती हूं

कितना अविस्मरणीय है स्त्री पुरुष का साथ। पुरुष को सब कुछ मिल जाता है,खाली रहता है तो बस स्त्री कभी  नहीं जी पाती भर पूर पुरूष का प्यार।

कंचन श्रीवास्तव आरजू

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