आज आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आया हूं जिसके पात्र हम कभी ना कभी बनते हैं या बन जाते हैं. मैं कहानी की शुरुआत करता हूं अपनी पत्नी से हुई बातचीत से मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि उसे जयपुर जाना है। मैंने उससे पूछा अचानक जयपुर क्यों, तो उसने धीरे से कहा कि सलोनी की शादी तय हो गई है इसलिए मैं फिर बुदबुदाया तो क्या सलोनी की शादी जयपुर में है।
नहीं बाबा वह शादी में पहनने के लिए वहां से लहंगा खरीदना चाहती है पर शादी तो अगले महीने है । लहंगा तो फिर दिल्ली में भी मिलता ही है उसके लिए जयपुर जाने की क्या जरूरत है। अब पत्नी महिला और पुरुष पर आ गई ओह तुम मर्द लोग कुछ समझते ही नहीं उसे कोई खास डिजाइनर लहंगा पसंद है। उसने बहुत पहले से तय किया हुआ है। वो लहंगा करीब 3 लाख रुपये का है उसकी शादी है उसके अरमान है वह मुझे साथ ले जाकर उस लहंगे को दिखाना चाहती है मुझसे पसंद करवाना चाहती है इसमें क्या बड़ी बात है। मैं चौंका 3 लाख रुपये का लहंगा ! मेरी पत्नी मेरी फटी आंखें देख कर हंसने लगी तुम इतना हैरान क्यों हो रहे हो।
3 लाख का लहंगा तो कुछ भी नहीं है आजकल तो शादियों में बहुत महंगे महंगे लहंगे पहने जाते हैं 10 लाख की लहंगे भी लड़कियां पहनती है वह तो मैं ही तुम्हें मिल गई कि हजार रुपए की साड़ी में भी हंसते-हंसते तुम्हारे घर आ गई। इसलिए तुम्हें लहंगे की दाम ही नहीं पता। पत्नी ठीक बोल रही थी मुझे सचमुच लहंगे का दाम नहीं पता। वह सच बोल रही थी कि उसकी शादी हजार रुपए की साड़ी में ही हो गई थी।
सचमुच मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि अपनी शादी में कोई तीन लाख का लहंगा भी कोई खरीदता होगा खैर आपको बता दूं कि सलोनी मेरी किसी रिश्तेदार की बेटी है सलोनी मेरी पत्नी को बहुत मानती है इसलिए अपना लहंगा पसंद कराने के लिए मेरी पत्नी को जयपुर ले जाना चाहती है कुछ दिन पहले ही सलोनी की शादी की तारीख तय हुई है और अगले महीने ही उसकी शादी है।
मैंने पत्नी से पूछा कि यह जो शादी का लहंगा होता है लड़कियां दुबारा कब पहनती हैं। पत्नी कुछ देर तक तो सोचती रही फिर उसके बाद धीरे से बोली सच कहूं तो उसे दोबारा पहनने का कभी मौका ही नहीं मिलता। फिर इतने महंगे लहंगे का क्या तुक है ओह पत्नी बड़ी चौंकी हर लड़की के कुछ अरमान होते हैं शादी का लहंगा एक भावनात्मक मुद्दा है ।
तभी मुझे याद आया कि मेरे पिताजी एक बार अपने ऑफिस से एक डायरी ले आए थे। मैंने पिताजी से कहा कि मुझे भी एक ऐसी ही डायरी चाहिए पिताजी ने मेरी ओर देखा और पूछा कि तुम डायरी का क्या करोगे। सच बात कही थी मैंने यह सोचा ही नहीं था कि आखिर मैं डायरी का करूंगा क्या तब मैं स्कूल में पढ़ता था । मेरे लिए उस टाइम डायरी की क्या उपयोगिता हो सकती थी लेकिन वह डायरी इतनी खूबसूरत थी कि मेरे मन में बैठ गया था कि अगर वह डायरी मुझे मिल जाए तो मैं उसमें यह लिखूंगा मैं उसमें वह लिखूंगा।
डायरी का कवर इतना सुंदर है कि मैं इसे संभाल के रखूंगा मैंने पिताजी से कहा कि अगर आप मुझे यह डायरी दे देंगे तो मैं इसमें कुछ न कुछ रोज़ लिखूंगा पिताजी थोड़ी देर तक मेरी ओर देखते रहे फिर कुछ देर बाद वहां डायरी मुझे देदी।
वह डायरी मुझे मिल गई मानो सारा संसार मुझे मिल गया। डायरी के कवर के नीचे सबसे पहले अपना नाम लिखा और मैं यह सोचने लगा कि सबसे पहले मैं इस डायरी में क्या लिखूं। तारीख थी 1 जनवरी मैं बहुत सोचा लेकिन मैं कुछ लिख नहीं पाया मैं बार-बार सोचता था कि इतनी सुंदर डायरी है इसमे कुछ फालतू चीजें लिखकर इस डायरी को बर्बाद नहीं करूंगा। ऐसे सोचते सोचते पूरा दिन बीत गया और मैं कुछ लिखी नहीं पाया और 1 जनवरी का जो पन्ना होता है वह खाली रह गया ।
मुझे वह डायरी इतनी पसंद थी कि मैं उसे साथ लेकर अपने बिस्तर पर सोता था तकिया के नीचे डायरी को रखता और सोचता कि कल इसमें कुछ न कुछ तो जरूर लिखूंगा मेरा यकीन कीजिए वह कल कभी नहीं आया । वह डायरी खराब ना हो जाए इस वजह से मैंने उसे मैं कुछ कभी लिखा ही नहीं और पूरा साल बीत गया। साल बीत जाने के बाद भी मैं उस डायरी को काफी दिनों तक संभाल कर रखे रहा । एक दिन मुझे लगने लगा या डायरी तो काफी पुरानी हो गई है अब इसका क्या करूं एक ऐसा वक्त आया कि मैंने बिना उसमें कुछ लिखे कबाड़ी वाले को बेच आया।
अब जब याद ही करने बैठा हूं तो मुझे मेरी मां की बनारसी साड़ियों की याद भी खूब आ रही है। मुझे याद आ रहा है कि मेरे मां के पास कई सारी बनारसी साड़ियां थी मां अक्सर उन्हे बक्से से बाहर निकालती उसे तह लगाती और कहती कि यह साड़ी में संजू की शादी में पहनूंगी, यह फलां त्यौहार पर पहनूंगी यह फलां फंक्शन पर पहनूंगी।
मां सारी जिंदगी उस साड़ियों को संभालती रही 1 दिन बीमार हो गई और वह इन साड़ियों को कभी नहीं पहन पाए सारी की सारी नई साड़ियां पड़ी रह गई। मां के गुजरने के बाद वह सारी साड़ियां रिश्तेदारों के हाथ लग गई और उन साड़ियों को काट कर किसी ने ब्लाउज बना लिया तो किसी ने पर्दा सिलवा लिया।
मैं यादों में डूबा था तो पत्नी ने मुझे टोका कहां खो गए हो। ओह कुछ याद कर रहा था मैं झेंपता हुआ अपनी पत्नी से कह रहा था तुम जयपुर चले जाओ । मुझे तुम्हारे वहां जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। पर फिर भी तुम एक बार सलोनी को समझाओ कि 2 घंटे के लिए 3 लाख का लहंगा खरीदने का कोई औचित्य नहीं है ।
मुझे तो यह भी लगता है कि शादी विवाह के दिन मे किसी का ध्यान किसी के कपड़ों पर जाता ही नहीं है। दुल्हन लाल साड़ी पहनी है या पीला लहंगा पहनी है इस पर किसका ध्यान जाता होगा। शादी ब्याह में तो हर किसी की नजर अपने कपड़ों पर होती है।
और अगर उसे लहंगा ही लेना है तो थोड़ा सस्ता भी ले ले उस तीन लाख के लहंगे को न दोबारा कभी पहनेगी और ना ही उसे फेंकते बनेगा। वह लहंगा उसके शादी के बक्से में कैद हो जाएगा और वह फिर कुछ दिनों बाद कभी कभार निकाल कर देखेंगी और सोचेगी किया 3 लाख का लहंगा है और फिर उसे वापस उसी बक्से में रख देगी।
मेरी पत्नी मेरी ओर देखती रही और मैं सोचता रहा यही सच है कि हम सभी ऐसी चीजों की चाहत रखते हैं जिसकी हमें ज्यादातर जरूरत नहीं होती.
पर जानते हैं सच क्या है सच यह है कि चीज चाहे जितनी भी अच्छी हो चाहे जितनी भी महंगी हो अगर उसकी हमें जरूरत नहीं तो वह 1 दिन लाल डायरी बन जाती है, बनारसी साड़ी बन जाती है हम जो चीज खरीद रहे हैं वह वास्तव में हमें मालूम होना चाहिए कि यह चीज कि वाकई में हमें जरूरत है और इसका इस्तेमाल हम कर सकते हैं । सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए हमें ऐसी कोई भी महंगी चीज नहीं खरीद लेना चाहिए जिससे हमारा नुकसान ही हो मेरे अनुसार सचमुच में यही बर्बादी है मेरी इस कहानी में एक छोटा सा संदेश छुपा है मुझे पूरी उम्मीद है कि आप यह संदेश समझ गए होंगे