जीना इसी का नाम है – के कामेश्वरी 

सरोज एक बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी करती थी। 

पति राघव अपनी नौकरी के सिलसिले में बाहर निकल जाते थे वैसे ही कई सालों तक वे इराक़ और ईरान जैसे देशों में नौकरी करते थे । कभी-कभी छुट्टियों में बच्चों को और सरोज को भी घुमा फिरा करलाते थे । अपने ग़ुस्से के कारण बच्चे और सरोज उन्हें पसंद  नहीं करते थे । सरोज ने ही बच्चों कोपाल पोसकर बड़ा किया था। लड़की तो अच्छा पढ़ लेती थी पर लड़का ही बुरी संगति में पड़कर पढ़ाईपर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा था । इसलिए उसने सोचा नौकरी छोड़कर बच्चों पर ध्यान दूँ तो ज़्यादाअच्छा होगा । राघव को पत्र लिखकर कह दिया था कि वह नौकरी छोड़ रही है । वह ग़ुस्से में आ गया था क्योंकि वह कभी नहीं चाहता था कि उसकी पत्नी नौकरी छोड़कर घर में बैठे । वह दूर देश में नौकरी कर रहा था । वह चाहता था कि आमने सामने बैठकर बातचीत करेंगे तो ठीक था पर सरोज तो जिद पर अड़ गई थी कि उसे इस्तीफ़ा देना है ताकि बच्चों को सही राह दिखा सके । पति को लगता था कि वह घर में बैठने के लिए बहाने ढूँढ रही है इसलिए ग़ुस्से में कह दिया तुम्हारी मर्ज़ी है ।

सरोज इसी बात का वह इंतज़ार कर रही थी तुरंत उसने अपनी नौकरी को इस्तीफ़ा दे दिया था और पूरी तरह से अपना समय बच्चों को देने लगी थी ।  

किसी तरह बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और बेटी ने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी ।जबबेटी के लिए अच्छा रिश्ता आया था तो उनके साथ बातचीत करके सिर्फ़ पति को उसका फ़ोटोदिखाया था वह जानती थी कि राघव काम बनाने के बजाय बिगाड़ता बहुत है । 

जब राघव ने कहा कि वह शादी के एक हफ़्ते पहले ही आ सकता है । इसलिए तुम ही सारे कामसँभाल लो तो वह खुश हो गई थी कि चलो शांति से सारे काम हो जाएँगे । इसी तरह उसने बेटी कीशादी एक अच्छे से घर में करा दिया था । 

बेटे ने इंजीनियरिंग के बाद सरोज को बहुत सताता था । वह कभी भी एक जगह टिक कर नौकरी नहीं करता था । उसकी इस आदत के कारण उसकी शादी नहीं हो रही थी साथ ही दोस्तों के साथ मिलकर शराब पीने लगा था । ईश्वर की कृपा से वह अपनी नौकरी के लिए सिंगापुर चला गया था । वहाँ जब नौकरी करते हुए दो साल बिताए और वह भी शादी के लिए राजी हो गया था तो सरोज ने उसकी भी शादी एक नौकरी करने वाली सुशील लड़की देवकी से करा दी ।




उसने सोचा अब तक की मेरी ज़िंदगी में बहुत सारे संघर्षों का सामना करना पड़ा अब आराम की ज़िंदगी जियूँगी क्योंकि पति भी रिटायर होने के बाद हैदराबाद में ही आकर बस गए थे। । 

सरोज को देख कर हमें लगता है कि ज़िंदगी ऐसे भी जी सकते हैं  क्या कि इतनी तकलीफ़ों को सहते हुए भी पति के लिए सब कुछ करके वह अपनी सहेलियों के साथ मिलकर घूमने चली जाती थी ।आसपास के सारे मंदिर उसने देख लिया था । उसकी सहेलियाँ कभी-कभी कहती थी कि सरोज तुमने इतनी अच्छी नौकरी छोड़ दी है आज रिटायर होती तो तुझे पेंशन भी मिलता था। 

सरोज ने कहा कि देखो तुम लोग पेंशन के बारे में सोच रहे हो परंतु मैं बच्चों के बारे में सोच रही हूँ कि उन्हें एक अच्छा जीवन दिया है अब वे दोनों खुश हैं तो मैं भी खुश हूँ । 

ज़िंदगी हमेशा एक जैसी नहीं होती है उसमें उतार चढ़ाव तो आते ही रहते हैं । 

ईश्वर ने सरोज के लिए भी कष्टों की पोटली बना कर रख दिया था । उसके पति के व्यवहार में बदलाव आने लगा । उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती थी । उन्हें भूलने की बीमारी हो गई थी। घर से बाहर जाकर वे अपने घर का रास्ता भी भूल जाते थे सालों से यहीं रहने के कारण कोई न कोई उन्हें पहचान कर घर पहुँचा देता था । 

बच्चों ने उन्हें घर से बाहर जाने के लिए पाबंदी लगा दी थी । अब सरला को घर से बाहर निकलने का मौक़ा नहीं मिलता था हमेशा पति की देखभाल करने के लिए रुक जाना पड़ता था । 

एक दिन पति को नाश्ता देकर वह नहाने जाती है और पूजा पाठ करके जूस देने के लिए गई तो देखा पति कभी न उठने वाली नींद में सो रहे थे । 

सरला बहुत ही प्राक्टिकल थी । दूसरों के समान हर बात पर डरना या रोना नहीं करती थी । बच्चों के आते तक में उसने सब कुछ सँभाल लिया था । सारी तैयारियाँ उसने आसपास के लोगों की सहायता सेकर लिया था।

बेटी अमेरिका में रहती थी । वह भी पिता के दाह संस्कार के समय पहुँच गई थी । भाई ने सारे कार्यक्रम निपटा दिया तो वह माँ को अपने साथ अमेरिका थोड़े दिनों के लिए ले गई थी। 

जब सरोज अमेरिका से इंडिया पहुँची कि नहीं बेटे पंकज ने जायदाद के लिए झगड़ना शुरू कर दिया था । 

सरोज को ग़ुस्सा आया उसने पंकज से कह दिया था कि मैंने जायदाद तुम्हारे नाम तभी कर दिया था जब तुम्हारे पिता जीवित थे लेकिन एक बात कह देती हूँ कि जो कुछ भी है वह मेरे बाद ही तुम्हें मिलेगा। 

पंकज ने कहा कि — चलिए आप मेरे साथ रहिए । 

सरला ने कहा कि— देख पंकज जब तक मैं अकेली रह सकती हूँ रह लूँगी ज़रूरत पड़ने पर मुझे लोगों को मेरे साथ रहना ही पड़ेगा इसलिए तुम अपने परिवार के साथ खुश रहो मैं यहाँ खुश रह लूँगी ।सरोज का बेटा मयंक अपने पिता पर ही गया है ग़ुस्सा उसकी नाक पर रहता है । 

पंकज को यह भी डर लगता था कि माँ बेटी के मोह में पड़कर जायदाद बहन रजनी को न दे दे ।इसलिए अब भी रोज़ एक बार आकर माँ का हाल-चाल जानने की कोशिश करता है । 

उसने अपनी सिंगापुर की नौकरी छोड़कर वापस हैदराबाद आ गया था । सरोज ने उसे अलग से घरले कर रहने के लिए कह दिया था । 

मयंक के रोज़ रोज़ की चिकचिक से तंग आकर सरोज ने बेटी और बेटे को समझा दिया था कि मैं जबतक ज़िंदा हूँ दोनों में से किसी को भी जायदाद पर हक नहीं है मेरे बाद क्या होगा यह मैंने अपनी वसीयत में लिख दिया है तब तक आप जियो और मुझे भी जीने दो । 

उसके बाद से बेटे ने उनसे जायदाद के बारे में बात करना बंद कर दिया था । 

अब सरोज अपनी ज़िंदगी जीने में व्यस्त हो गई थी कार और ड्राइवर था ही सहेलियाँ पहले भी थी तोउनके साथ अपना समय अपने हिसाब से जीने लगी । इन सब के बीच उसने अपनी सेहत का भी ख़्यालरखा है ताकि दूसरों पर निर्भर न होना पड़े । 

योगा करना डाइटिंग करना यह सारे काम करते हुए पचयासी साल की उम्र में भी उसने लोगों को हँसीख़ुशी जीने का अंदाज़ सिखाया है । 

दोस्तों रोते हुए बैठने या लड़ते झगड़ते हुए हम अपनी ज़िंदगी के हसीन पलों को खो देते हैं । संघर्षकरना तो ज़िंदगी का हिस्सा है वह तो हर किसी को करना पड़ता है । इसलिए जब तक जियो प्यार सेहँसते हुए जी लीजिए और दूसरों के लिए मिसाल बनिए । 

स्वरचित 

#संघर्ष 

के कामेश्वरी

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