“मिर्ची की धाँस में पनपते रिश्ते” – अनु अग्रवाल

भाभी………. क्या आपको भी किचन में से मिक्सी की आवाज़ आ रही है”- अभी कुछ दिन पहले ही ब्याह कर आयी शीना की देवरानी धरा ने शीना से पूछा।

“हाँ………लगता है……….माँजी मसाले पीस रही हैं। उनकी तो आदत है…….अब इस उम्र में नींद तो आती नहीं है….तो रसोई में ही कुछ न कुछ करती रहती हैं….हम सो जाते हैं…हाय…दोपहर की नींद के भी क्या कहने- शीना ने आह भरते हुए लापरवाही से कहा और ए. सी. की ठंडी-ठंडी हवा में नींद के आघोष में चली गयी। लेकिन धरा को अपनी जेठानी का यह बर्ताव कुछ अच्छा नहीं लगा……वो उठकर.. रसोई में चली गयी।

सरला जी- अरे… बहु तू यहाँ क्या कर रही है? जा… जा के आराम कर ……मसालदानी के सारे मसाले खतम हो रहे थे….तो सोचा पीस देती हूँ…….बस थोड़े ही बचे हैं…

आती हूँ मैं भी………तू दूर हट यहाँ से….मिर्ची की धाँस लग जायेगी नहीं तो।

तभी……..मिक्सी का ढक्कन खोलते ही सरला जी की आँख में धाँस चली जाती है। धरा जल्दी से अपनी साड़ी के पल्लू में फूँक मारकर उनकी आँख सेकने लग जाती है।

देखिए…..अभी आप मुझको दूर रहने को कह रहीं थीं और आपके ही आँख में धाँस चली गयी…….और फूक मारना जारी रखती है- धरा की आवाज़ में चिंता साफ झलक रही थी।

आँख में राहत मिलते ही सरला जी की आँखे भर आती हैं….

माँजी आप रो रही हैं?????- धरा ने आश्चर्य से पूछा।

इस घर में जबसे आयी बस सबकी फरमाइशें ही सुनी। कभी किसी ने प्यार के दो बोल बोले ही नहीं…..आज बड़े दिनों बाद किसी ने इतना अपनापन दिखाया तो आँख भर आयीं……आज तूने मुझे मेरी माँ का एहसास करवा दिया। वो भी झट से ऐसे ही……….खुश रह मेरी बच्ची…जुग-जुग जी…और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लग जाती हैं।




धरा का भी दिल भर आता है……..माँ….आप चलिए यहाँ से….ये सब मैं कर दुंगी। मैं आपको माँ बुला सकती हूँ न- धरा ने संकोचवश पूछा।

हाँ…. हाँ….. बिल्कुल….भगवान ने मुझे तो कोई बेटी दी नहीं… तो मैंने सोचा था अपनी दोनों बहुओं को ही बेटियां मान लुंगी….बड़ी बहु को मैंने तो बेटी मान लिया लेकिन शायद उसने अभी तक मुझे माँ नहीं माना है…खैर छोड़…जो तेरा मन कहे तू मुझे वैसे पुकार सकती है।

एक काम करते हैं…….दोनों मिलकर काम खत्म करते हैं फिर साथ ही आराम भी कर लेंगें- सरला जी ने कहा।

मिर्ची की धाँस के बीच एक खूबसूरत रिश्ता जनम ले चुका था।

धरा सोचती है……न जाने मेरी दोस्तों ने क्या-क्या नहीं कहा… सास के बारे में…..मेरी भी कितनी गलत धारणा थी……सच में अब रिश्तों में बदलाव आ रहा है।

तो दोस्तों…….ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है…..मेरा मकसद किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाने का नहीं है…बस सास-बहू के रिश्ते को खूबसूरती से दिखाने का एक प्रयास है। 

#एक_रिश्ता

स्वरचित रचना व अप्रकाशित।

अनु अग्रवाल

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