कुछ रिश्तों का कोई
नाम नहीं होता
कुछ रिश्तों का कोई
नाम नहीं होता
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिसका कोई नाम नहीं होता और वह अपनों से भी बढ़कर होता है।
ऐसा ही एक रिश्ता था माधव और राधिका का।
जब राधिका शादी करके आई थी तो माधव घर का टहलुआ था। कहने को तो वह फुआ सास का भगीना था, लेकिन….
राधिका को सभी दुल्हन कहते थे वह भी इसे दुल्हन ही कहने लगा। उसकी उम्र तो राधिका के समान ही थी। कई बार राधिका ने कहा भी दीदी क्यों नहीं बोलते?
“मुझे दुल्हन कहना अच्छा लगता है।”
निर्मल मन सच्चे दिल का ईमानदार माधव दिमाग से थोड़ा कच्चा था। हर कोई इसके सीधेपन का फायदा उठाता था, जिसे राधिका की पारखी नजर पहचान गयी। धीरे-धीरे राधिका माधव का हमदर्द बनती गयी। माधव को भी इस स्नेह का अनुभव होने लगा। दिन बीतने लगे। घर के लोग जहाँ उसे एक नौकर से ज्यादा नहीं समझते थे, वहीं राधिका उसे घर का एक अहम सदस्य का मान देने लगी। ———
दो साल बाद राधिका एक प्यारी सी बेटी की माँ बनी। घर की रौनक नये मेहमान से और बढ़ गयी। माधव को तो जैसे बच्चे के रूप में परमात्मा ही मिल गया। ——–
एक दिन राधिका की सास ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया-
” माधव ! तुम बच्ची से दूर रहो। क्या अपने जैसा बनाना चाहते हो।”
तब से माधव दूर से ही बच्ची को देखकर निहाल हो जाता था, परन्तु राधिका को यह अनुचित लगा और अपनी सास को समझाने की कोशिश की। पहली बार सास-बहू के बीच एक लकीर खीच गयी।
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समय चक्र अपनी गति से चल रहा था। गुड़िया अब पाँच साल की हो गयी। काल की गति भला कौन जानता है? बिना सूचना दिए कभी भी, कहीं भी उपस्थित हो जाता है। एक दुर्घटना में गुड़िया ने अपने पिता को हमेशा के लिए खो दिया। राधिका की तो दुनिया ही उजड़ गयी। पत्थर की मूरत बन गयी। कुछ दिनों तक तो देवरानी और सासु माँ की सहानुभूति मिलती रही, लेकिन कब-तक?
अब तो गुड़िया की छोटी-छोटी जरूरत भी बोझ बनने लगी।
आखिर माधव ने खामोशी तोड़ी।
” बड़ी दुल्हन! इस तरह कब- तक चलेगा? क्या हमारी गुड़िया अपनी जरूरतों के लिए इसी तरह हमेशा सबके सामने हाथ फैलाती रहेगी?”
माधव के सवालों ने राधिका को जागृत कर दिया।
सोचने लगी- ठीक ही तो कह रहा है माधव।
पढ़ी-लिखी राधिका अब अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी। सास- ससुर के नहीं चाहते हुए भी नौकरी के लिए कोशिश करने लगी। आखिर एक दिन सफलता मिल ही गयी।———–
गुड़िया अब आठवीं कक्षा में पहुँच गयी थी। जब भी गुड़िया बाहर जाती थी माधव की नजरें साये की तरह उसका पीछा करती थी। विशेष रूप से तब से जब से राधिका की सास का भतीजा मनोज यहीं काॅलेज में पढ़ने के लिए आ गया था। ————–
गुड़िया स्कूल से आ रही थी। रास्ते में काफी बारिश होने लगी। मनोज रास्ते में ही मिल गया और गुडिया को पास में ही दोस्त के घर ठहरने की बात कह उसे ले गया। छाया की तरह नजर रखने वाला माधव अनहोनी के डर से गुड़िया का पीछा किया। वही हुआ जिसका डर था। हाथापाई में मनोज दीवार से टकरा गया और वहीं ढेर हो गया। अब माधव के सामने विकट समस्या थी। कौन मानता कि माधव जो कह रहा है वह सच है? और गुड़िया नाबालिग थी। माधव ने पुलिस के सामने दृश्य ही बदल दिया-
” आरोपी मैं हूँ और मनोज बचाव के क्रम में मारे गये।”
मासूम गुड़िया को भी अपनी मौत की धमकी दे ऐसा ही बोलने को मजबूर कर दिया। गुड़िया जो बचपन से माधव चाचू की हर बात मानती थी, इसे भी मान लिया। सभी माधव को आस्तीन का साँप कह पुलिस के हवाले कर दिया, लेकिन राधिका का दिल इसे मानने को तैयार नहीं था। जब राधिका उसके सामने गयी तो उसकी नजरें नीचे झूकी थी।——-
दो दिनों तक गुड़िया बिना खाये-पिए रोती रही। आखिर माँ के दबाव डालने पर सबकुछ बता ही दिया। राधिका बुत बनी सोचती रही- आखिर माधव ने ऐसा क्यों किया ?
चल पड़ी जेल में माधव से मिलने।
“बड़ी दुल्हन आप? लगता है गुड़िया ने सबकुछ बता दिया।”
“हाँ माधव आखिर तुमने ऐसा क्यों किया?”
“किसी भी हालत में पुलिस मुझे ही पकड़ती, तो फिर मामी जी को दुखी क्यों करूँ? क्या मामी विश्वास करती कि उनका मनोज कुछ गलत कर सकता है? आखिर एक रिश्ता मेरा भी तो इस घर से है। फिर गुड़िया से तो मेरा नाता पिछले जन्म का था।”
राधिका भारी कदमों से लौट गयी। सोचती रही – माधव के लिए कुछ करने का अब मौका मिला।
#एक_रिश्ता
स्वरचित
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।