नंदिनी काफी दिनों से विवेक को तलाश रही थी।बहुत मुश्किल से जब पता मिला तो नंदिनी मिलने के लिए पहुंची आफिस।आलीशान बिल्डिंग थी ।नंदिनी आफिस से उनकी व्यक्तिगत जिंदगी की खुशहाली देख सकती थी।दूर से देखकर नंदिनी ने विवेक को पहचान लिया था।बस अब उससे मिलने की जरूरत नहीं।
विवेक को देखते ही नंदिनी अपने गांव की स्मृतियों में खो गई।दोनों एक साथ पढ़ते थे एक ही कक्षा में।सारा दिन साथ घूमना,साथ ही खेलना होता था।विवेक के पिता गांव के सरपंच थे।काफी संपत्ति थी उनके पास। नंदिनीके पिता उसी विद्यालय में मास्टर थे।विवेक को जब घर पर नंदिनी के पिता पढ़ाने जाते थे,नंदिनी भी जाती थी रोज़,कौशल्या चाची से मिलने।विवेक की मां थीं वो।एकदम देवी स्वरूपा थीं वह रूप में भी और गुण में भी।नंदिनी को रसोई में बिठाकर कितना कुछ खिलाती थीं।
नंदिनी घंटों बतियाती थी उनके साथ।समय पंख लगाकर उड़ रहा था।एक दिन असमय ही सरपंच चाचा चल बसे।पूरा गांव मानो अनाथ हो गया था।चाची चुप हो गई थी काफी दिनों तक।पर विवेक की जिम्मेदारी थी उन पर सो जल्दी ही अपने पति का पूरा कारोबार,खेती,बाग-बगीचे सब संभालने लगी थी। बारहवीं की परीक्षा के बाद विवेक को शहर भेजना था चाची को ,अच्छे कालेज में पढ़ने।रिजल्ट आने पर पता चला कि विवेक के बहुत कम नंबर आए हैं और नंदिनी टाप की है जिले में।
कौशल्या चाची ने नंदिनी की इस उपलब्धि पर पूरे गांव में मिठाई बंटवाई थी।विवेक का एडमिशन करवा दिया था चाची ने शहर के एक बड़े कालेज में।धीरे-धीरे विवेक का गांव आना कम होने लगा।एक दिन चाची की खराब तबीयत की खबर देने जब नंदिनी आई विवेक के कालेज,विवेक ने बहुत मज़ाक उड़ाया था उसका,गंवार कहकर।वो लौट आई और अपने रूप सुंदरता के प्रति सजग रहने लगी।विवेक के लिए नंदिनी की आंखों का प्यार चाची से छिप ना पाया।चाची बहुत खुश थी, नंदिनी को अपनी बहू ही मानने लगी थीं वह।उन्होंने नंदिनी को अपने दो जड़ाऊ कंगन यह कहकर दिए कि जब बहू बनकर आएगी इन्हें पहनना ।
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कुछ महीनों में ही नंदिनी के पिता की मौत हो गई।विवेक को कितने पत्र लिखे नंदिनी ने,पर एक का भी जवाब नहीं आया।तब कौशल्या चाची नंदिनी को साथ लेकर शहर के कालेज में पहुंची।उन्हें देखते ही दरबान ने विवेक का कमरा दिखा दिया।अंदर विवेक अपने दोस्तों के साथ हंसी मजाक कर रहा था।चाची और नंदिनी बाहर ही रुक गए थे।
अचानक किसी दोस्त ने जब नंदिनी का नाम लिया तो विवेक हंसते हुए बोला अरे नहीं दोस्तों वह तो मेरी मां की फुलटाइम आया है।ना कपड़े पहनने का सलीका ,ना सजने संवरने का शौक।दिन भर बस पढ़ती रहती है या मां की तीमारदारी में लगी रहती है।उससे शादी करने की तो मैं सोच ही नहीं सकता।बचपन की पहचान है तो आती जाती रहती है।मां से ऐंठती रहती है पैसे।हिसाब करूंगा सभी खर्चों का मैं एक दिन।चाची और नंदिनी के पैरों तले की जमीन खिसक गई,विवेक की बातें सुनकर।उल्टे ही पैर लौट आई दोनों।
चाची ने तय कर लिया था कि अबकी बार जब आएगा विवेक,सीधे नंदिनी से घट मंगनी और पट ब्याह करवा देंगीं। उन्होंने नंदिनी की मां को भी अपनी इच्छा बता दी।दोनों घरों में शादी की तैयारी शुरू हो चुकी थी पर नंदिनि का मन बार-बार किसी अनहोनी की आशंका से घबरा जाता था।अभी-अभी तो विवेक के चेहरे का मुखौटा देखकर आई थी चाची के साथ जाकर।तमाम तैयारियों के बीच चाची के घर के सामने एक गाड़ी आकर रुकी।पहले विवेक उतरा, फिर उसने मंजू का हाथ थामकर उसे उतारा।
चाची विवेक के आने की खबर से बौराई सी दरवाजे तक भागी।विवेक के साथ तो कोई और लड़की है, नंदिनी नहीं।विवेक ने मंजू के साथ मिलकर मां के पैर छुए।मां तो मां होती है ना।माफ़ करके गले से लगा लिया मंजू को।नंदिनी के तो सारे सपने ही एकझटकए में टूट गए।कुछ दिनों बाद मंजू शहर चली गई और विवेक गांव में ही रुक गया था,जमीन बेचने की फिराक में।रोज़ की तरह नंदिनी चाची से मिलने आई तो विवेक ने अपने कमरे में कुछ खाने को लाने को कहा।
नंदिनी शुरू से यह करती आ रही थी,हो सामान लेकर पहुंची विवेक के कमरे में।विवेक ने झटके से उसे अपने बिस्तर में खींचा और दरवाजा बंद करने लगा । नंदिनी को इस बात कि ज़रा भी आशंका नहीं थी।वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी।चाची घबराकर पहुंची जब कमरे में तो उन्हें असलियत समझते देर ना लगी।जीवन में पहली बार एक जोर का तमाचा मारा था मां ने अपने लाड़ले को और बोलीं “तू कितना गिर गया ये,जिसने बचपन से तुझे पति के रूप में पूजा ,तूने उसे ठुकरा दिया और अब उसकी इज्जत लूटना चाहता है, और कितने चेहरे लगा रखा है तूने?”
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विवेक को अपनी मां का नंदिनी की तरफदारी करना बिल्कुल पसंद नहीं था। नंदिनी अपने घर लौट आई।अगले ही दिन उसका नर्सिंग का ट्रेनिंग में जाने का आखिरी दिन था।मां के मना करने के बाद भी वह घर से निकल गई। उसकी ट्रेनिंग अच्छी चल रही थी।मां से कौशल्या चाची की खबर भी मिल जाती।एक दिन मां ने चिट्ठी में लिखा था विवेक गांव की सारी जमीन जायदाद बेचकर चाची को लेकर शहर चला गया।किसी को भी अपना पता नहीं दिया था उसने।
कुछ समय के बाद नंदिनी की मां भी चल बसीं।अब नंदिनी को गांव से कुछ लेना -देना नहीं था।शहर में नंदिनी को सरकारी अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई थी।पर हाय ये क़िस्मत ,फिर से मिला दिया उसे कौशल्या चाची से। मंदिर में जल चढ़ाने गई तो एक कोने में असहाय पड़ी एक बुजुर्ग महिला को देख दिल कांप गया उसका।लोगों से भीख में मिला खाना खा रहीं थीं वो,है भगवान !जिस महिला ने पूरे गांव को भरपेट खाना खिलाया था वहीं यहां भीख मांगकर खा रही हैं। नंदिनी ने उनका इलाज सरकारी अस्पताल में करवाने की सोची।वह भी वहीं आसपास रहेगी ।यही सोचकर नंदिनी चाची को अस्पताल में भर्ती करवा कर ही मानी।कुछ याद नहीं था चाची को।
नंदिनी की सेवा पाकर बहुत जल्दी ठीक होने लगी चाची।चाची ने रो-रोकर बताया कैसे विवेक ने धोखे से सारे कागजात पर चाची के हस्ताक्षर ले लिए और बेच दिया सब कुछ।शहर में आकर वह नौकरानी का काम करने लगी।विवेक का रवैया बदल गया था बिल्कुल ।पैसोंकी चकाचौंध में विवेक अंधा हो चुका था।विवेक की बीवी को जब बेटी हुई तो पति और पत्नी मिलकर मंदिर में ले आए चाची को,और छोड़कर भाग गए।
नंदिनी ने अब सोच लिया था कि उसे क्या करना है।विवेक के सेक्रेटरी को सरकारी अस्पताल के वार्षिक उत्सव का मुख्य अतिथि विवेक को बनाने की बात बताकर निमंत्रण पत्र पकड़ाया और अवश्य आने को कहा। नंदिनी जानती थी कि विवेक के साथ समाज के कई प्रतिष्ठित नागरिक,राजनेता ,मीडिया आएंगे।नंदिनी ने सारा इंतजाम अस्पताल के मैंनेजमैंट के साथ मिलकर कर लिया था।
पूरे अस्पताल को सजाया गया।तय समय पर विवेक अपनी पत्नीऔर बेटी कुहू के साथ पहुंचे।साथ में कई नामी गिरामी हस्तियां भी थीं। मरीजों को फल,कंबल,चादर और पानी की व्यवस्था करवाई थी विवेक ने।चेहरे पर एक सज्जन दयालु इंसान का मुखौटा लगाए हुए बड़ी शालीनता से चीजें बांट रहा था विवेक।जैसे ही चाची का नंबर आया ,नंदिनी जोर से चिल्लाती हुई प्रवेश की,”नहीं आप अपने गंदे हांथों से इस देवी स्वरूपा मां को कुछ मत दीजिए।सभी दंग रह गए।विवेक का पाराचढ़ गया था।उसने कहा”क्या अनापशनाप बक रही हो,कौन हो तुम?
नंदिनी विवेक की तरफ जैसे ही पलटी,विवेक अचंभित होकर बोला”नंदिनी तुम यहां कर रही हो।अच्छा डॉक्टर हो यहीं”।
“जी नहींमैं डाक्टर कहां बन पाई। नर्स हूं यहां सीनियर।ं
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बावरा मन देखने चला एक सपना – मुकेश कुमार
ये महिला जो आपसे नजर चुरा रही है ना,आपकी मां हैं।मना किया था मुझे आपके सामने ना लाऊं,
पर मैं कैसे बर्दाश्त करती कि मां वहां अकेली लड़ रही थी भूख से ,जिसने पूरे गांव को भरपेट भोजन करवाया हो ज़िंदगी भर,वह आज इस हाल में है। विवेक गांव में तुम्हारा परिचय एक जिम्मेदार बेटे के रूप में है आज भी।कोई सोच भी ना पाएगा कि तुमने चाची के साथ ऐसा किया है।चेहरे पर कितने झूठे नकाब लगा रखे हैं,इन्हें सभी के सामने उजागर करना ही मेरा लक्ष्य था।कैमरे के सामने विवेक की बोलती बंद हो गई। विवेक शरमा रहा था।कैमरे में कैद विवेक की पसीने से लथपथ काया अपनी कहानी आप कह रहे थे।
कौशल्या चाची बिस्तर में मुंह फेर कर बैठी रही।विवेक की बीवी का आत्मग्लानि बोध बढ़ने लगा तो उसने चाची को अपने साथ रखने की इच्छा जाहिर की। चाची ने सख्त मना कर दिया।अब वो कहीं नहीं जाएगी,।विवेक असमंजस में था। मां ने विवेक को सांत्वना देते हुए कहा कि जा बेटा मैंने तेरे सारे पाप क्षमा किए।अब नंदिनी के पास ही आखिरी सांस
तक रहेंगी वो। विवेक की बेटी कुहू ने पैर पड़ते हुए पूछा “दादी चलिए ना हमारे घर”
चाची ने उसके सर पर हांथ फेरते हुए कहा”देख बेटा नंदिनी दीदी ने मेरी जान बचाई।सारी ज़िंदगी मेरी सेवा की है इसने। इसलिए यही मेरे बुढ़ापे का सहारा।मुझे और कहीं नहीं जाना।
हॉल में उपस्थित सभी लोगों की आंखों से आंसू झर रहें आज।विवेक अब किसी को मुंह नहीं दिखा पाएगा वह ।
और नंदिनी खुश इस बात से थी कि आखिर उसने विवेक के चेहरे का मुखौटा उतार फैंका सकी।उसे आईना दिखा सकी ।
चाची को अकेले मरते हुए नहीं देख
सकती थी नंदिनी।उसने कानूनी कार्रवाई के द्वारा कौशल्या चाची को अपनी मां के रुुप में अपनाया
शुभ्रा बैनर्जी
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