रमेश जी रेलवे में नौकरी करते थे, पत्नी माया जी के साथ रेलवे के ही क्वार्टर में रहते थे बेटी शादी के बाद कोलकाता में रह रही थी और बेटा दिल्ली में नौकरी करता था तो वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में ही रहता था।
एक दिन रमेश जी रात को सोये तो फिर सुबह उठे ही नही और माया जी को अकेला छोड़ कर रमेश जी ईश्वर के पास चले गये। बेटा और बेटी दोनों लोग आये। उन लोगों को विश्वास ही नही हो रहा था कि उनके पिता जी इतनी जल्दी उन लोगों को छोड़कर ईश्वर के पास चले जायेंगे। न कुछ कह सके किसी से और न कुछ सुन सके किसी की। पर होता वही है जो ऊपर वाले ने सोच रखा होता है।
बेटा अर्पित और बहू नमिता बहुत ही प्यार और सहानुभूति माया जी के साथ दिखा रहे थे…. कि अब हमारे साथ ही रहिये अब तो आप यहाँ भी नही रह सकती क्योंकि अब तो पिताजी रहे नही तो आप इस क्वार्टर में अब नहीं रह सकती हैं अब हमें यहां से जाना ही होगा और गांव में भी आप अकेले कैसे रहेंगी तो इसलिए हमारे साथ चलिए वहां पर आपका मन भी हम लोगों के साथ लगा रहेगा और बच्चों के साथ आपका समय भी कट जाएगा बेटी कल्पना को अपने भाई की बात सही लगी उसने भी अपने भाई
की बात का समर्थन करते हुए कहा की…..मां भैया सही तो कह रहे हैं आप भैया के साथ ही रहने के लिए चली जाइए। गांव में भी अगर आप रहने जाएंगी तो अकेले आपका मन वहां भी नहीं लगेगा और मुझे जब मिलना होगा तो मैं चली आऊंगी यह कहते हुए कुछ दिन रहकर कल्पना अपने शहर कोलकाता वापस चली गई।
अर्पित और नमिता माया जी को अपने घर ले आए धीरे-धीरे उन्होंने प्यार और सहानुभूति दिखाकर माया जी के बैंक में जमा जितनी भी रकम थी वह सब निकाल ली और गांव का मकान बेचकर उससे जो पैसा मिला वह भी रख लिया। माया जी को जो भी पेंशन मिलती उसमें से भी वह लोग बहाना बनाकर पैसे ऐठ
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लेते। नमिता ने धीरे-धीरे घर का काम भी माया के कंधों पर डालना शुरू कर दिया जो भी काम करवाना होता तो वह माया जी से यही कहती की……मां जी काम करते रहने से आप की हड्डियां सही रहेंगी वरना आराम करने से तो यह जाम हो जाएंगी और घर के कामों की सारी जिम्मेदारियां सब माया जी के हिस्से में आ गई।
माया जी बहुत ही सीधी और सरल हृदय वाली महिला थी वह बेटे बहू की चालाकियों को समझ ना पाई। उन्हे यही लगता कि जैसे वह वहां काम करती थी यह भी तो अपना ही घर है क्या फर्क पड़ता है। बेटे बहू कम से कम मुझे चाहते तो हैं पर अब नमिता अपना असली रूप दिखाने लगी थी अब जरा-जरा सी गलती पर वह माया जी को बहुत बुरी तरह डांट देती थी। कभी कभार कल्पना का फोन भी आता तो वह खुद ही हाल-चाल बता देती थी।
दिसंबर का महीना था कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, घर के आंगन में सभी लोग आग जलाकर ताप रहे थे। माया जी खाना खाने के बाद बर्तनों को धुल रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई बेटे ने दरवाजा खोला तो खुशी से चिल्लाते हुए बोला……की मम्मी- पापा बुआ जी आई हैं जब तक उसकी बात पूरी होती तब तक कल्पना अपने पति और बच्चों के साथ आंगन तक आ गई थी। उसने देखा कि सभी लोग आग ताप रहे हैं और उसकी मां नल के निकले ठंडे पानी से बर्तनों को धो रही हैं ।नमिता नकली मुस्कुराहट मुख पर सजाए हुए धीरे से बोली की…मैं तो मना करती हूं कि….मा जी!!! आप काम ना किया करो पर मां जी मानती ही नहीं कि वह तो कहती हैं कि अगर मैं आराम करूंगी तो यह मेरी हड्डियां जाम हो जाएंगी……आओ दीदी बैठक में चल कर बैठते हैं माया जी बी बर्तन धो कर उसके पास आकर बैठ गई उसने मां के हाथों को अपने हाथों में लिया तो देखा कि ठंडे पानी में लगातार हाथ रहने के कारण उनकी उंगलियां सूज गई थी और लाल भी पड़ गई थी रात में कल्पना मां के पास ही लेटी और बहाने से मां से सारा हालचाल ले लिया। तीन-चार दिन रहने के बाद कल्पना ने अर्पित और नमिता से कहा कि मैं मां को कोलकाता ले जा रही हूं अब मां हमारे साथ रहेंगी…….यह सुनकर नमिता बोली….हां हां मुझे पता है!!! आप मां को क्यों साथ लेना ले जाना चाहती हैं क्योंकि आपकी नजर तो मां की पेंशन पर है आपको मां से नहीं मां के पैसों से प्यार है।
बस करो!!!भाभी आपको शर्म नहीं आती मुझ पर इल्जाम लगाते हुए…….मुझे सब पता चल गया है कि आपने किस तरह मां को बरगला करके उनका बैंक अकाउंट खाली कर दिया और गांव का मकान भी भेज कर उसकी भी रकम अपने पास रख ली और तो और आप पेंशन भी किसी ना किसी बहाने से मांग कर वह भी मां से ले लेते हैं और आपने तो मान सम्मान करना तो दूर मां को नौकरानी बना कर रख दिया……आप लोगों को शर्म नहीं आती!!! आप मा के साथ ऐसा व्यवहार करके बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं आपको शायद नहीं पता आपका ऐसा व्यवहार बच्चे भली-भांति देख रहे हैं आज आप लोग मां के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं कल को आपके बच्चे भी आपके साथ ऐसा व्यवहार करेंगे तब आपको एहसास होगा कि आप दोनों ने कितना गलत किया……मां के साथ।
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आप लोगों में इंसानियत नाम की चीज ही नहीं रह गई है और आप लोग उल्टा मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं वह तो आपका नकली चेहरा था और अब यह आपका असली चेहरा है चलो मां अपना सामान पैक कर लो। कल सुबह ही हम लोग इस शहर को छोड़कर चले जाएंगे। यह सुनते ही अर्पित और नमिता को बहुत पश्चाताप हुआ कल्पना ने उनको उनकी असलियत का आईना जो दिखा दिया था जिसमें वह अपने चेहरे को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। दूसरे दिन कल्पना मां को लेकर अपने शहर कोलकाता चली गई।
किरन विश्वकर्मा
लखनऊ
#दोहरे चेहरे