“जिज्जी!नेहा का रिश्ता कानपुर से आया है आप जरा छानबीन कर लोगी?निशा ने अपनी ननद रेखा से पूछा!
“अरे इसमें पूछने की क्या बात है,अपनी लाडो के लिए तो उसकी बुआ हमेशा तैयार है,कल ही सब पता करके बताती हूं!”रेखा ने जवाब दिया!
अगले दो चार ही दिनों में रेखा लड़के वालों के पूरे खानदान की जन्मपत्री लेकर निशा के घर पहुंच गई
!उसने बताया लड़के की मां बहुत दबंग और तेज तर्रार किस्म की महिला हैं,,तीन बेटे हैं सबके सब एक दूजे से बढ़कर श्रवण कुमार! मजाल है जो मां की मरजी के बिना सांस भी ले सकें!
लडके के पिता बहुत पहले गुजर चुके हैं!मां ने ही पाला पोसा है !तीनों बेटे अच्छी नौकरियों में लगे हैं!
एक बहन बहुत सरचढी,नकचढी है घर में सबसे ज्यादा उसी की चलती है! हालांकि उसके पति बड़े सरकारी अफसर हैं फिर भी अपने ससुराल में कम मैके में ज्यादा पड़ी रहती है।
बूढी दादी हैं जो एक तरफ पड़ी दिन काट रही हैं!
पैसे की कमी नहीं पर रिमोट माता जी का चलता है!मतलब कि एक भी प्लस पाइंट नहीं!
“पर हमें क्या लेना?नेहा को कौन उनके साथ रहना है ,विशाल तो सरकारी नौकरी में है वो तो पोस्टिंग पर उसके साथ ही रहेगी!कभी कभी-कभार छुट्टियों वुट्टियों में होली दिवाली आऐगी तो दो चार दिन तो एडजस्ट कर ही लेगी!अपना घर है,बाकी भी सब ठीक-ठाक ही है!” निशा ने रेखा को समझाया!
रेखा ने कहा भी”पर सास उसका क्या,उसे कैसे खुश रखेगी नेहा?
इस कहानी को भी पढ़ें:
आंचार – श्याम कुंवर भारती : Moral Stories in Hindi
“अरे एक बार ब्याह हो गया नेहा विशाल को अपनी मुट्ठी में कर लेगी तो सासू मां खुद ही ठीक हो जावेगी!वही होगा “जब मियां बीबी राजी-तो क्या करेगा काजी”रेखा के कान में फुसफुसाकर निशा ने कहा!
पास बैठी नेहा उन दोनों के वार्तालाप सुनकर अलग ही झंझावात से गुजर रही थी!
उसे ससुराल एक हौवा सा लग रहा था!वैसे ही दादी बार बार टोकती ऐसे पहन,यहाँ मत जा,जोर से मत बोल वगैरह-वगैरह कहकर जोड़ देती”ससुराल जाऐगी तब पता चलेगा जब सास चोटी पकड़कर खबर लेगी”!
दिनरात नेहा का मन अजीब सी ऊहापोह में रहता,उसे आगे की ज़िन्दगी ब्लैंक सी लगती पता नहीं अच्छा होगा या सबकुछ बुरा!ससुराल अच्छा होगा या मायके की ज़िन्दगी!
नेहा को ज़िन्दगी एक पहेली की तरह लग रही थी!
नये लोग,नया माहौल नेहा ऐडजस्ट कर भी पाऐगी या नहीं सोच का ये बवंडर उसे डराऐ रखता!वह कभी बेटी,बहन बनकर सोचती तो अगले ही पल उसका मन ससुराल की देहरी पर जा बहू,पत्नि और भाभी बन मंथन करने लगता!
नेहा का मन ससुराल रूपी जेल से तो पहले ही घबराया था ऊपर से रेखा बुआ ने जो विशाल की माताजी की प्रोफाईल बताई उसे सुनकर जो थोड़ी-बहुत हिम्मत भी थी वो भी हवा हो गई! उसे लगा ससुराल रूपी कैदखाने का जेलर इतना खूंखार होगा तो रिहाई और चैन शांति का तो सवाल ही नहीं उठता!
रात को सोती तो भी सोच के भंवर में डूबती उतराती सपने में भी बस सासू माँ ही दिखाई देती!
ब्याह से पहले एकाध बार विशाल से मुलाकात भी हुई तो भी नेहा को सहमी-सकुचाई सी देख विशाल को लगा कि कहीं नेहा पर इस शादी का दबाव तो नही?
विशाल के बार-बार पूछने पर नेहा ने बताया असल में वह बहुत डरी हुई है!विशाल की मम्मी को खुश कर पाऐगी या नहीं और बाकि घरवालों के साथ सामंजस्य बैठा पाऐगी या नहीं इसी असमंजस में वह समझ नहीं पा रही क्या करे!
विशाल ने हंसकर कहा”बस इतनी सी बात?तुम बेवजह परेशान हो रही हो,अरे मेरे घर में तो सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं,सब तुम्हारे स्वागत में पलके बिछाए बैठे हैं!परेशान मत हो मैं हूं ना तुम्हारे साथ”!
इस कहानी को भी पढ़ें:
बेटा मैं तो तेरा भला ही चाहती हूँ – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi
विशाल वास्तव में बहुत सुलझा हुआ,समझदार लड़का था,बहुत लविंग और केयरिंग भी!नेहा को बहुत पसंद भी था!बस डर था तो विशाल की मम्मी का!पर विशाल द्वारा आश्वासन देने पर नेहा का डर कुछ कम हुआ!
धीरे धीरे ब्याह का दिन भी आ गया!
नेहा विशाल की दुल्हन बनकर उसके घर आ गई! ब्याह के पहले ही दिन से उसने देखा विशाल के घरवाले बहुत खुले विचारों के,सबको प्यार और सम्मान देने वालें थे!
विशाल की बहन सना भी नई नवेली भाभी के इर्द-गिर्द चक्कर काट रही थी !बार बार उससे पूछ रही थी उसे किसी चीज की जरूरत तो नहीं,उसकी छोटी से छोटी जरूरत का ख्याल रख रही थी!
नेहा के आगे तो सना की दूसरी ही तस्वीर पेंट की हुई थी!सना का व्यवहार तो उससे एकदम उल्टा था!शादी में आऐ सारे मेहमान सना की तारीफ करते नहीं थकते थे!
नेहा के आश्चर्य की सीमा नहीं थी जब उसने विशाल की मां को सबसे प्यार से बोलते और सबका बहुत ध्यान रखते देखा!वे बहुत मृदुभाषी,सौम्य और सलीके वाली महिला दीखी।नेहा ने देखा उसकी सास और जेठानियों को देखकर यह नहीं पता चलता था कि वे सास बहू हैं या मां बेटी!
उनका प्यार और दुलार देखकर नेहा बड़े पशोपेश में थी,सोच रही थी रेखा बुआ ने तो इन लोगों के बारे में कुछ और ही बताया था!कहीं ये सब मेरे सामने अच्छे बनने का नाटक तो नहीं कर रहे!
दूसरे ही पल वह अपने नकारात्मक विचारों से उबर सोचने लगती नहीं कोई दिनभर मुखौटा चढ़ाकर थोड़े ही रह सकता है!ये लोग हैं ही बहुत अच्छे!
नेहा बार बार भगवान का धन्यवाद करती कहीं रेखा बुआ के कहने में आकर मम्मी कहीं पापा से विशाल के रिश्ते के लिए मना करवा देती और बाद में इन सबके बारे में पता चलता तो कितना पछतावा होता!
नेहा ने तय कर लिया जब वह पग फेरे के लिए अपने मां-बाप के घर जाऐगी तो रेखा बुआ से जरूर पता करेगी उन्होंने किससे पता करवाया था जिसने विशाल और उसके घरवालों की इतनी बुराई की थी!नेहा ने सोचा जरूर बुराई करने वाले का कोई अपना स्वार्थ रहा होगा तभी इतने अच्छे लोगों के बारे में इतना नकारात्मक बयान दिया !
उधर नेहा के घर वाले विशाल की मां की तरफ से बहुत डरे हुए और चिंतित थे यह सोचकर कि नेहा कैसे उनको झेलेगी! पर उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब नेहा ने वापस आकर विशाल और उसके परिवार की तारीफ के कसीदे पढ़े!
नेहा के बताने पर निशा ने रेखा बुआ से कहा कि वे कानपुर में सच्चाई का पता करें!
रेखा ने पता किया कि जिस सहेली को उसने विशाल के परिवार का पता करने को कहा था वो दर-असल विशाल की पड़ोसन की बहन थी ,पड़ोसन अपनी बेटी निधी का रिश्ता विशाल से करना चाहती थी क्योंकि शुरु से ही घर परिवार उनका देखा भाला था वे सबको बहुत करीब से जानती थी उनकी बेटी को ऐसा घर वर मिल जाए तो बेटी की किस्मत ही खुल जाए! पड़ोस में रहने की वजह से निधी की आदतें और लच्छन सबको पता थे इसलिए विशाल के घरवाले निधी को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे!
इसी वजह से रेखा की सहेली ने विशाल और उसके परिवार की जमकर बुराई कर दी ताकि विशाल को कोई अच्छी लड़की न मिले तो शायद उसकी बहन की बेटी का ब्याह विशाल के साथ हो जाए!
नेहा के मां-बाप अगर रेखा की सहेली की बातों में आकर नेहा का रिश्ता विशाल से ना कर देते और बाद में उनकी अच्छाईयां पता चलती तो उन्हें ज़िन्दगी भर इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकल जाने का मलाल रहता!
अक्सर शादी-ब्याह के मामले में ऐसी बातें देखने सुनने को मिलती ही हैं बेहतर होता है सही तरीके से सही व्यक्ति से छानबीन करना और सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करना! ज़िन्दगी में ऐसे हादसों से दो-चार होना ही पड़ता है!ये तो उस पहेली की तरह है किसी ने विवेक से सुलझा लिया किसी ने कान का कच्चा होकर गंवा दिया!
कुमुद मोहन
#ज़िंदगी