आज वर्मा जी के बेटी की शादी होने वाली थी. और इस लिए घर में सब खुश थे बहुत. की बेटी की शादी जो है और तैयारियां भी बहुत करनी बाकी थी. मां और पिता दोनों ही काम में लग गए और भाई का भी अपनी बहन की शादी में पूरा साथ था. थोड़े दिनों में ही बहन विदा हो कर ससुराल चली गई. अनुजा के ससुराल में उसकी एक ननंद और सास साथ में बहुत ही सरल स्वभाव के ससुर और पति देव था. ससुराल में कदम रखते ही अनुजा अपनी चील जैसी नजर इधर उधर घुमा कर सबकुछ नाप चुकी थी. अब उसका ससुराल में पहला दिन था और पहले दिन से ही उसने अपना कब्जा ससुराल में जमाना सुरू कर दिया था. वह बहुत चालाक थी, और अच्छे से जानती थी की ससुराल में खुद की जगह वह कैसे बनाए.
अगली सुबह मीठे की रस्म मे अनुजा हलवा बनती है. और वह हलवा सबको बहुत पसंद आता है. इस लिए ससुरजी ने बहु को नेग में सुंदर हार देते है. वैसे तो अनुजा हर काम में बड़ी निपुण थी,
अगले ही दिन गोने का रस्म था. इस लिए वह अपने पति के साथ अपने मायके जाने के लिए तैयार थी. लेकिन अनुजा ने अपनी ननंद प्रीति को भी साथ जान के लिए कह दिया. अनुजा की ननंद प्रीति अभी कॉलेज में पढ़ती थी, और बड़ी भोली और अपने पिता जैसे ही सरल स्वभाव की थी.
“अरे आओ बेटा… हम तुम्हारी ही राह देख रहे थे आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई!”
“नहीं नहीं कोई दिक्कत नहीं हुई।।” दामाद देव बोला. और ननंद प्रिती ने अपनी भाभी के मायके में बारी बारी से सब बड़ों के पैर छुए और उनके आशीर्वाद लिए और फिर माँ बोली,
“अरे बेटी बस हम तो तुम्हें देख कर ही समझ गए की हमारी अनुजा को ससुराल में ननद के रूप में एक सहेली मिल जाएगी।।”
प्रीति मुस्कुराती है वह पहले से ही कम बोलती थी. और शर्माती ज्यादा थी. ऐसे में अनुजा का ये असली इरादा था की वह अपने भाई की शादी अपनी ही ननंद प्रीति से करवाना चाह रही थी. क्यूँ की तभी उसके ससुराल वाले अनुजा के कदमों में आते.
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उसने बार बार अपनी ननंद को अपने भाई के करीब भेजना शुरू कर दिया,
“अरे भाई आप प्रीति को हमारा घर दिखाओ और हां स्पेशली हमारा छत दिखाना… हाँ प्रीति मेरे भाई अमित को गार्ड्निंग का बहुत शौक है उसने कई सारे अच्छे अच्छे फूल के पौधे लगा रखे है जाओ जाओ देख कर आओ!”
अमित बहन की ननंद प्रीति को छत पर ले जाता है. दोनों एक दूसरे से बाते करने लगते है और फिर धीरे – धीरे उन में दोस्ती होने लगती है. अनुजा यही तो चाहती थी. वह अपने भाई को ये जताना चाहती की प्रीति कितनी अच्छी लड़की है. उसे प्रीति से अच्छी लड़की मिल ही नहीं सकती. और उधर अपनी ननद प्रीति को भी अपने भाई के बारे में वह बढ़ चड़ कर ही बताती रहती. ताकि प्रीति उस से इम्प्रेस हो जाए.
समय बीतता गया और अब आखिर में अनुजा की एक साल की मेहनत रांग लाई. घर में प्रीति की शादी अनुजा के भाई से होने की बात चली. और दोनों को भी ये रिश्ता मंजूर था. परिवार तो पहले से ही मिला जुला था तो बस अब वर्मा जी से बात करने की देरी थी. फिर क्या था प्रीति की शादी अनुजा के भाई से हो जाती है. अब ये था की एक तरह से वर्मा जी की बेटी विदा हो कर शर्मा के घर आई थी और उधर शर्मा जी की बेटी विदा हो कर वर्मा जी के घर आई. शादी के कुछ दिनों तक सब ठीक रहा लेकिन जब जब समय गुजरता गया, अब अनुजा ने अपने असली रंग दिखने सुरू किए.
“माँ जी आज घर में खाना बाहर से ही आएगा… घर का खाना खा कर बोर हो चुकी हूं!”
“पर क्यूँ बहु खाना हम मिल बाँट कर बना लेंगे ना अब बाहर से क्यूँ मंगवाना है?”
सास ने अपनी बहु अनुजा की बात नहीं मानी. अब अनुजा ने सीधे अपने मायके फोन किया और कहने लगी,
“मां देखो ना सास मेरी किसी भी बात को मान्यता नहीं देती है, और घर में मुझसे ही सारा काम करवाती है. उधर माँ को अपनी बेटी की दुर्दशा पर जब गुस्सा आता है तो वही गुस्सा वह शर्मा जी की बेटी जो अब उनकी बहु थी प्रीति पर निकलाती है. वो उस से भी इतना ही काम करवाती है जिस से की वह थक जाए. और उसका मन शांत हो और बेटी का बदला पूरा हो जाए.
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बस यही तो था की अब जब जब ससुराल में अनुजा की कोई बात नही मानी जाती वह तुरंत ही अपने मायके फोन करती और उसकी मां प्रीति की सास अपनी बेटी की भड़ास अपनी बहु पर निकलती. ये अब हर रोज का होता गया. अनुजा को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था.
अब जैसी चतुर अनुजा थी वैसी ही उसकी माँ !
समय बीतता गया और अब तो हद ही हो गई थी, भोली भाली प्रीति को भी अब ये समझ में या गए था की उसकी भाभी की पहले से ही ये चाल की थी…
“अच्छा ये भाभी ने यही सोचा की मुझे इस घर में अपनी भाई से शादी करवा कर अपना ससुराल मुट्ठी में करेगी… लेकिन बस बहुत गया!”
अगर प्रीति अनुजा के भाई को अपनी सास के बारे में या अपनी बहन के बारे कुछ कहती तो वह भी प्रीति को ही बोलने लगता और डांट लगा देता. और प्रीति रोती रहती. लेकिन वह अपने मायके में किसी को कुछ नहीं बताती. क्यूँ की उसे अपने मा बाप की इज्जत का खयाल था, जो अनुजा को नहीं था. अब एक दिन जब पानी सर के ऊपर चढ़ गया तो प्रीति अपने मायके अपना बैग लेकर चली आई. उधर उसे देख अनुजा को घबराहट होने लगी की अब क्या होगा आखिर ये मायके क्यूँ लौट आई है… जब मां ने अपनी बेटी की तरफ देखा तो वह बोली,
“अरे बेटी ये क्या हालत बना रखी है तूने… कितनी काली और सुखी हो गई है!”
और अपनी माँ की ये बात सुन प्रीति अपनी भाभी अनुजा की तरफ देख रही थी और वो तो ससुराल के चमक दमक में और फैल रही थी यानि की शरीर से मोटी हो रही थी. और रंग भी गोरा हो रहा था.
लेकिन अब प्रीति ने अपनी मा पिताजी और भाई देव को सारी सच्चाई बात दी. और फिर शर्मा जी भोले भाले जरूर थे लेकिन बेटी के साथ ऐसा अत्याचार नहीं सहने वाले थे. उन्होंने तुरंत ही अपनी बेटी का दुख देख कर प्रीति और अमित यानि अनुजा के भाई बीच के तलाक के कागजात बनवा लिए और उनके घर भेज दिया. अनुजा यह देख कर चौक गई, क्यों की उसको लगा था की भोला भाला ससुराल है, बेटी की इज्जत के लिए चुप रहेंगे और वो यहाँ अपना खेल करती रहेगी. लेकिन ऐसा तो नहीं हुआ…
अब जब प्यारी बहन प्रीति का पति के साथ तलाक हो ही रहा था, तो उधर अनुजा के पति ने भी अपने और अनुजा के तलाक के कागजात बनवा लिए. क्यों की देव को ये था की अकेली उसकी बहन क्यों भुगते जब की उसकी कोई गलती भी नही, सारी गलती तो उसकी पत्नी की थी सबके साथ खेलती रही. अनुजा अब अपने पति के पैरों में गिड़गिड़ाती और माफी मांगती. उधर खबर मिलते ही दूसरे ही दिन अनुजा की मां और प्रीति की सास साथ में भाई आ गए. और वो भी अब शर्मा जी से अपनी बेटी की करतूत के लिए माफी मांगने लगे. क्यूँ की एक तरफ बेटी थी और दूसरे तरफ उनका बेटा था. अगर बेटे का तलाक होता तो बेटी का भी तलाक हो रहा था, अब अनुजा पछता रही थी… साथ में मां के भी पसीने छूट रहे थे. और तब अनुजा की सास बोली,
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“आपको शर्म आनी चाहिए समधनजी… और तुम बहु क्या लगा था की हम भोले है तो अपनी बेटी से प्यार नहीं करते… हम क्या उसका दुख देख कर बैठे रहेंगे? जैसे तुम उस घर की बेटी हो वैसे ही प्रीति भी इस घर की बेटी है. जब हमने तुम में और प्रीति में कोई अंतर नही रखा तो आज भी अंतर नहीं रहेगा. तुम्हारे दुख में कैसे तुम्हारे मां पिताजी दौड़े चले आए. तो क्या हम अपनी बेटी के लिए खड़े नही होंगे… बेवकूफ! फिर अनुजा के पिता सरल स्वभाव के थे. वह अपने दोनों ही बच्चों का घर एक अपनी बेटी और पत्नी की गलती की वजह से टूटता हुआ देख उन्हे बहुत दुख हुआ… वह रो पड़े और हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगे. ये देख कर शर्मा जी भी पिघल गए और दोनों ही परिवार आपस में सब सुलझाने में लग गए, और अब तो अनुजा को अपने किए हुए खेल का भारी सबक मिल गया था.
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