तू बन जा गली बनारस की,
मैं शाम तलक भटकू तुझमें
तेरी बातें चटपट चाट सी हैं,
तेरी आँखें गंगा घाट सी हैं,
मैं घाट किनारे सो जाऊं….
फिर सुबह सुबह जागूं तुझमें।
ये गीत सुनकर बनारस की गलियों में भ्रमण करने का मन कर जाता है। यही गीत कुछ दिन पहले मैं यूँही गुनगुना रही थी, मेरे पतिदेव ने सुना तो बनारस चलने का प्लान बनाया। घर में चर्चा की गई और हो गई तैयारी शुरू। मम्मी ने रास्ते के लिये मठरी, लिट्टी, नमकीन और बहुत कुछ बनाया क्योंकि अपनी कार से जाना था तो खाते पीते चला जाए।
सुबह 7:00 बजे उठकर तैयार हो गये और हनुमान चालीसा मोबाइल पर चलाकर यात्रा शुरू की गई। बनारस की तंग गलियों को पार कर दोपहर के क़रीब 1:30 बजे हम बनारस पहुँचे, वहाँ पहले होटल लिया क्योंकि थकान काफ़ी हो गई थी। थोड़ा आराम करने के बाद घूमने निकला गया।
जगह जगह बनारसी साड़ी, सूट, पर्सों की दुकानें क़तार में थी, एक औरत होने के नाते ये सब देखकर मन मचलना स्वाभाविक था, फिर सबसे पहले पर्स की दुकान पर पहुँची, सोचा दो ले लूँ, फिर दीदी का, मम्मी का, मामी का, मौसी का ख़्याल आया तो पर्सों की छोटी मोटी दुकान मेरे पास भी हो गई
आगे जाकर संतुष्टि साड़ी शॉप पर गई, साड़ी पसंद नहीं आयी पर एक ज़बरदस्त बनारसी सूट लिया। शाम को बनारस की प्रसिद्ध गंगा आरती के लिए गए, वहाँ घाट का नजारा बहुत अद्भुत था, ये सब देखकर लगा की वाक़ई अपना भारत अतुलनीय है, यहाँ जैसी सुंदरता और कहा। वहाँ माथे पर चंदन का तिलक लगवाया, जिसने माथे को बिल्कुल ठंडा और रिफ्रेश कर दिया। आगे बढ़कर एक पान की दुकान मिली, जिसका मालिक “खाइके पान बनारस वाला खुल जाये बंद अक्ल का ताला” गाना गाकर सबको अपनी दुकान पर बुला रहा था। बनारस आये और पान ना खाए, ऐसे कैसे हो सकता है, ये सोचकर एक मीठा पान बनवाया और हम दोनों ने आधा आधा खाया। अब हम लग रहे थे पूरे बनारसी बाबू उसके बाद आराम करने होटल आ गए।
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आराम करते हुए कब 11:00 बज गया, पता ही नहीं चला। मेरे पतिदेव को बहुत ज़ोरो से भूख लगी। मैंने कहा इतनी रात में कुछ नहीं मिलेगा, जो साथ में लाए है उसमें से कुछ खा लीजिए पर इनका मन तो डोसा खाने का था।
11:30 बज गए थे, और हम दोनों साउथ इंडियन खाने की तलाश में घूम रहे थे। कई दुकान पर गए पर सब दुकान बंद कर रहे थे।
एक दुकान दिखी जहाँ सिर्फ़ साउथ इण्डियन था। वहाँ जैसे पहुँचे तो देखा दुकान का एक कर्मचारी खाने की थाली लेकर बैठा ही था, हम दोनों को देखकर थाली उठाकर अंदर रख दी और हमारे स्वागत में आगे आया।
हमें उसका यूँ खाने की थाली छोड़ना अच्छा नहीं लगा हम लोगो ने बहुत आग्रह किया कि कोई बात नहीं आप ख़ाना खाइए वैसे भी लग रहा है दुकान बंद होने जा रही, तो हम कही और देख लेंगे।
दुकान के कर्मचारी ने कहा- ग्राहक हमारे लिए भगवान समान है आप बैठिए और बताइए क्या खाएँगे आप।
उस कर्मचारी के अपने ग्राहक के प्रति # प्रेम को देखकर हमने एक पनीर मसाला डोसा ऑर्डर किया, पर मन बहुत विचलित हो रहा था कि किसी को हमने खाने से उठाकर ख़ुद खाने जा रहे है।
10 मिनट बाद हमें मसाला डोसा परोसा गया, पर सांभर में बिल्कुल स्वाद नहीं था। डोसा बनाने वाला, जिसकी उम्र लगभग 18 या 19 साल होगी, हमारी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि हमारी प्रतिक्रिया उसके लिये बहुत मायने रखती है। उसके भोलेपन और प्रेमभाव को देखकर झूठी प्रशंसा करना भी उचित लग रहा था। वैसे भी कहा जाता है कि झूठ बोलना अच्छा है, अगर वो किसी की भलाई के लिए बोला जाए।
ऐसा करके दिल को बहुत सुकून मिल रहा था, ऐसा लग रहा था कि हमने उस बच्चे के मन में बसे प्रेम भाव को पढ़कर प्रतिक्रिया दी है। यहाँ कबीर जी का ये दोहा चरितार्थ हो रहा था-
पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ पंडित भया ना कोय,
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।
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आदरणीय पाठकों,
वास्तव में प्रेम एक ऐसा इत्र है, जो अपनी महक से किसी को भी पुलकित कर सकता है। प्रेम से बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है। फ़रवरी का ये सप्ताह भी प्रेम का प्रतीक माना जाता है, पर सिर्फ़ इस हफ़्ते ही नहीं आने वाले हर दिन, हफ़्ते, महीने, साल और सदियों तक दिल में प्रेमभाव को जीवित रखें, और हर तरफ़ ख़ुशियाँ फैलाए। अपनी इस रचना को कुछ पंक्तियों के साथ पूर्णविराम देना चाहूँगी-
ख़ुद जिए, सबको जीना सिखाए,
आओ प्रेम हर तरफ़ बाँट आए।
तोड़ लाए चमन से सितारे,
पकड़के जुगनू ये सारे,
आओ प्रेम का दीपक जलाए,
आओ प्रेम हर तरफ़ बाँट आए।
विश्वास है कि आप सबको मेरी ये रचना पसंद आयी होंगी, तो मेरी इस रचना पर कुछ प्रेम भरी टिप्पणियाँ अंकित करना ना भूलें
धन्यवाद।
स्वरचित।
रश्मि सिंह