मां एक शब्द ही नहीं बल्कि वह ऐसा एहसास है जिसे केवल महसूस कर सकते हैं जब हम कोई परेशानी में होते हैं हमें मां की याद आती है तो हमें लगता कि मां को कोई भी बात कब बता दें।यही हाल बचपन से बड़े तक निर्मला का था।उसे छोटी सी चोट लगती तो वह रोते -रोते मां के पास आती उसे बस मां हाथ से मल देती और जैसे दर्द गायब हो जाता यही एहसास के कारण वह मां के बहुत नजदीक रही है।
वह बड़ी होती गई । वह हर परेशानी मां को बताती तो मां कोई न कोई उपाय करती ,कभी खुद को मजबूत बनाने के लिए कहती, और कभी यह भी कहती कि कब तक मेरा पल्लू पकड़ कर रहेगी।
इस तरह एक दिन निर्मला की शादी हो गई।वह आदत अनुसार अपनी सब बातें मां से करती लेकिन उसकी मां कहती – “बेटा निर्मला घर की बात घर में रखना चाहिए छोटी- छोटी बातों को तूल नहीं देना चाहिए। तू फोन पर मुझसे बातें बताती है, अगर तेरे ससुराल वाले सुनेंगे तो क्या कहेंगे!”
मां होकर अपनी बेटी को हम लोगों के खिलाफ सिखा रही हैं।मां हमेशा चाहती कि बेटी खुश रहे उसके जीवन में कभी कोई दुख या परेशानी न हो।पता चले गलतफहमी की वजह से निर्मला को कुछ सुनना पड़े!
निर्मला रोज फोन लगाती और हालचाल जान लेती । धीरे धीरे समय बीतता गया••••
उसके भैया भाभी उसकी मां का हमेशा ध्यान रखते, अब भाभी हमेशा मां के साथ रहती तो वह मां के करीब होती जा रही थी। इस बार मायके गई तो उसने देखा कि मां कितनी बदल गई है!मां का व्यवहार भी बदल गया है।न कभी आलमारी में कोई सामान रखने कहती ,न ही कोई काम की उससे आशा करती। पहले उसके मन का ही खाना बनता था।अब वैसी बात नहीं रही•••खैर
पहले के सामान कहां क्या रखा सब पता होता था।अब उसकी जगह भी बदल गई है।भाभी ने बहुत कुछ अपनी सुविधानुसार सामान की जगह भी बदल दी।
अब मां ने ये भी नहीं कहा कि मैं तेरी कब से राह देख रही थी। उसने महसूस किया कि मेरे न होने से मां को कोई फर्क पड़ा है। भाभी के अनुसार ही घर का माहौल हो गया था।समय पर खाना पीना हो जाता।
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समय के अनुसार दोपहर में वह आराम भी कर लेती ।इस तरह निर्मला को मां के करीब रहकर भी उसे अपनापन नहीं लग रहा था।अब मां भाभी से सब काम कहती •••••कभी चिंता से उसे कहती- जा कपड़े धूप से उठा ले।कभी ये कहती -गिलास बर्तन भी अंदर लेती जा।और निर्मला से करने को नहीं कहती। तो उसे लगा कि वह एक केवल मेहमान की तरह ही हो गई।
अब निर्मला का मन मायके में नहीं लग रहा था।
एक दिन उसकी मां ने कहा- अरी! निर्मला तू इतनी शांत क्यों है? उसके सिर हाथ फेरते हुए पूछा-” क्या हो गया तुझे ? तू पहले जैसे खुलकर कुछ बोल ही न रही है।तेरा व्यवहार कितना बदला- बदला सा लग रहा है।तू कुछ खोई खोई सी लग रही है!”
तब निर्मला ने कहा- “मां बदल तो आप गयी हो तुम्हारे बर्ताव में कितना अंतर आ गया है।न अपनापन, न अपनेपन वाली वो बात रही, पूरा का पूरा प्यार भाभी पर उड़ेल दिया है जैसे वो ही तुम्हारी बेटी हो, मैं नहीं!यही कहते हुए उसकी आंखों से झर- झर आंसू बहने लगे।
मन का ज्वार जैसे फूट पड़ा वह पराए घर की आई लड़की अब आपकी बेटी हो गई।बाल सुलभ मन से शिकायत जैसे करने लगी।”
तब मां ने निर्मला का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा- पता है ,तेरी आंखों में हमेशा सब सुख होते हुए हमेशा तेरे चेहरे पर एक दुख देखा वो अपनेपन के एहसास का, जिसे तुझे पाने में बहुत समय लग गया। तुझे उनका भरोसा जीतने में जो समय लगा वो तेरी भाभी को न लगे।”
और उन्होंने कहा-” निर्मला तू मेरी बेटी है तेरी भाभी मेरी अपनी बहू , उसे भी प्यार की जरूरत है यदि उसे प्यार न मिले तो क्या मन से हमारी हो पाएगी? वो भी मेरी बेटी जैसी है उसे हमेशा रहना है। जैसे तुझे जब तक ससुराल में अपनापन और हक नहीं मिला था तब तक तू उन्हें पराया समझ कर शिकायतें करती रही !
“मुझे पता है कि मैं और सास की तरह ताने देकर कोई काम कराना नहीं चाहती । मैं चाहती हूं कि वो मेरी बेटी बनकर रहे, मेरा ख्याल रखें। एक बेटी को विदा तो कर दिया पर तेरी कमी तेरी भाभी ने पूरी कर दी।उसे भी प्यार की जरूरत है। वह भी एक मां को छोड़कर आई है। मैं चाहती हूं कि तू भी अपने ससुराल में सास की बेटी बनकर रहे । क्योंकि ससुराल ही बेटी का अपना घर होता है। “
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आज उसे एहसास हुआ कि मां का दिल कितना बड़ा है ,मां ने भाभी को बेटी की जगह दे दी है कम से कम मेरी मां हमेशा खुश तो रहेगी। मैं तो हमेशा यहां रह नहीं सकती मां की दुख तकलीफ़ में तो भाभी ही साथ होंगी।
फिर निर्मला ने मां से माफी मांगी और कहने लगी कि -“मां मुझे माफ़ कर दे। मैंने तुझे कितना गलत समझा।तू तो मेरी ही नहीं ,अब भाभी की भी मां हो गई। क्योंकि उसे ही तेरा ध्यान रखना है। मैं तो तेरे पास तकलीफों में बाद आऊंगी, भाभी तेरे पास सदा रहेगी। तू उसका हमेशा ख्याल रखना।ताकि उसे अपनी मां की कमी महसूस न हो।”
फिर अगले दिन उसके मायके जाने से विदा होते हुए मां दरवाजे तक आई तब उसने फिर देखा कि मां के कदम लड़खड़ा रहे थे।उनको भाभी ने संभाला। उनका हाथ थाम लिया कि मम्मी गिरने न पाए। फिर भाभी को ही निर्मला ने ही कहा तुम्हें ही मां का ख्याल रखना है।
गाड़ी में बैठते ही उसके ओंठ बुदबुदा उठे -‘अच्छा हुआ मां जो तुम बदल गई। नहीं तो तुझे कौन संभालता।’
दोस्तों-बहू भी बेटी की तरह होती है उसे भी बेटी की तरह प्रेम देना चाहिए। उसे भी वो अपनापन और हक मिलना चाहिए जिसकी वो हकदार हैं अपनी बेटी वाकई पराई ही हो जाती है ,क्योंकि जो जिम्मेदारी की उम्मीद हम बहू से करते हैं वो बेटी से नहीं कर सकते हैं क्योंकि वह ससुराल में अपने कर्तव्य से बंध जाती है ,बहुत बार चाहकर भी वो माता पिता की जिम्मेदारी नहीं निभा पाती जो एक बहू निभाती है। इसलिए बहूओ को भी बेटी की तरह प्यार और अपनापन देना चाहिए।
#प्रेम
धन्यवाद 🙏❤️
आपकी अपनी दोस्त ✍️
अमिता कुचया