विवाह समारोह की संध्या बेला मधुर संगीत बज रहा था। पंडित जी के मंत्र उच्चारण से हर कोई मन मुग्ध हो रहा था। दुल्हन का हाथ दूल्हे के हाथ में था और सबसे नीचे पिता अपना हाथ बढ़ाते और नम आंखों से बेटी का दान कर रहे थे। सभी अतिथियों की आंखें नम हो रही थीं,वहीं मां बेटी के आंसू पोंछती और ढ़ारस बंधाते हुए बोली “बेटा इस वियोग के बाद ही तो नया मिलन होता है।”
नेहा बोली “दादी क्या गारंटी है कि अरेंज मैरिज में रिश्ता टिका रहेगा..! इतना तामझाम और रोने के बाद भी अगर ये रिश्ता नहीं निभा तो बाद में कितनी तकलीफ होगी। इससे अच्छा तो कांट्रैक्ट मैरिज कर लो कम से कम मां-बाप के खर्चे नहीं होंगे और दुख भी उतना नहीं होगा।” इस विवाह में नेहा भी अपनी दादी सुमन जी के साथ आई थी।
सुमन जी ने नेहा से इशारे में धीरे बोलने के लिए कहा और उसे पीछे ले जाकर बोलीं “बेटा ये गंधर्व विवाह तब होते थे जब समाज परिवार नहीं बने थे, आज के युग में पारिवारिक सहमति के बिना गंधर्व विवाह भी अनुबंधित माना जाता है। जब जीवन का ही कोई आश्वासन नहीं तो ऐसा विवाह जो समाज और परिवार के बिना हो उसमें तो रत्ती भर की गारंटी नहीं है..!”
नेहा बड़ी उत्सुकता से विवाह के हर विधि-विधान को देख रही थी और उसके मन में अनेकों सवाल उठते और फिर वो दादी से अपने उत्सुकता भरे प्रश्न पूछती। सुमन जी भी उसे बड़ी सहजता से समझाती थीं क्योंकि नेहा भी विवाह के लायक हो रही थी तो सही ज्ञान देना उसे आवश्यक था।
2 दिन बाद विवाह समाप्त हुआ नेहा दादी के साथ घर वापस लौट आई। आते ही नेहा के पिता नरेंद्र बाबू बोले “और बताओ बेटा गांव के विवाह का उत्सव कैसा लगा? सालों से तुम घर परिवार से दूर पढ़ाई के लिए विदेश में रह रही ऐसे विवाह तो तुमने देखी नहीं होंगे.।”
नेहा बोली “पापा मुझे समझ में नहीं आता आखिर क्यों लोग शादियों में इतना खर्चा करते हैं.? जब उस शादी को सादगी से भी किया जा सकता है क्योंकि विवाह पूरी उम्र टिकेगा इसकी तो कोई गारंटी नहीं है!” नेहा की मां ममता बोली “शुभ-शुभ बोलो ऐसा नहीं कहते हैं।”
ममता बोली “किसी भी संबंध का सबसे बड़ा आश्वासन विश्वास और उम्मीद होता है। किसी संबंध में जहां अच्छा होने की उम्मीद ही ना हो वहां तो संबंध बनने से पहले ही टूट जाएगा..! सब कुछ अच्छा होगा यही सोच कर हमें आगे चलना चाहिए।”
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नरेंद्र बाबू बोले “तुम बताओ इसका क्या उपाय है..?” नेहा मुस्कुराकर बोली “कॉन्ट्रैक्ट मैरेज भी किया जा सकता है।” इतना कहकर वो तो चली गई ममता की आंखों में चिंता थी। नरेंद्र बाबू बोले “कोई बात नहीं बची है धीरे-धीरे समझ जाएगी।” ममता बोली “अब आपकी बच्ची नौकरी करने जा रही है उसकी भी शादी की उम्र हो रही है। आजकल के बच्चों की सोच बहुत भिन्न होती है इसलिए मुझे इसके लिए चिंता हो रही है..! इसे समझाना बहुत जरूरी है कि क्या गलत और क्या सही है।”
रात में जब सब खाना खाकर अपने अपने कमरे में सोने जा रहे थे सुमन जी ने धीरे से ममता को अपने कमरे में बुलाया और वो ममता से बोलीं “बहू मुझे तुमसे नेहा के विषय में कुछ बात करनी है मुझे उसकी बहुत चिंता हो रही है..।”
बेटी का नाम सुनते ही ममता घबरा गई और सास का हाथ पकड़ कर बोली “क्या बात है मांजी..! क्या इसने वहां कुछ अभद्र व्यवहार किया या आपको इसकी वजह से कुछ सुनना पड़ा आखिर बात क्या है..? जब से नेहा विवाह समारोह से आई है विवाह के लिए अजीब सोच व्यक्त कर रही है, ये ऐसा क्यों बोल रही है मांजी आपको क्या लगता है..?”
सुमन जी बोलीं “अब क्या कहूं बहू आजकल के बच्चे सुना है बहुत खुले विचार के होते हैं..! किसी भी रिश्ते में आजकल के बच्चे बंदिश पसंद नहीं करते फिर हमारी नेहा तो विदेश से पढ़कर आई है। न जाने हमारी नेहा के क्या विचार हैं,तुम नरेंद्र से कहना एक बार उससे बात करें क्योंकि वो अपने मन की हर बात नरेंद्र से ही बताती है।”
ममता बोली “मांजी मैं उनको कहती हूं कि कल ही उससे बात करें। ऐसा ना हो कि लड़की कोई गलत विचार मन में रखें और आगे चलकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर ले.! समाज में हमें भी रहना है उसकी हर इच्छा को अब तक मानते आए हैं इसका मतलब ये नहीं कि वो जो कुछ बोलेगी हम मान लेंगे चलिए अब मैं चलती हूं आप दवाई खा कर सो जाइए।” बूढ़ी आंखों में पोती की चिंता थी तो नींद कहां से आएगी फिर भी बेचारी सुमन जी करवटें बदलते बदलते सो गईं।
अगले दिन….
सुबह के 8:00 बजे ममता घर के काम निपटा चुकी थी तब तक नेहा मीठी नींद ले रही थी। ममता उसके कमरे में जाकर पर्दे हटाई, रोशनी आंखों पर परते ही नेहा बोली “मम्मा क्या कर रही हो अब कौन सा मुझे स्कूल जाना है जो मुझे इतनी सुबह जगा रही हो।”
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ममता बोली “बेटा आदत डाल लो कुछ दिनों में तुम अपने काम की शुरुआत करोगी वहां तो मैं तुम्हें जगाने नहीं जाऊंगी ऐसा ना हो कि पहले ही दिन ऑफिस लेट से पहुंचो। देखो जो वक्त मिला है हमारे साथ बिता लो फिर जिंदगी की भाग दौड़ में न जाने हमारे साथ रहने का समय कितना वक्त मिलेगा, दादी कबसे तुम्हारी राह देख रही है चलो अब उठ जाओ।”
बच्चे कितने भी बड़े क्यों ना हो जाए परंतु मां हर उम्र में उन्हें लाड से ही जगाती है फिर भी बच्चों की यही शिकायत रहती है कि आप तो हमें डांटती ही रहती थीं बरहाल नेहा भी आंखें मलते मलते जगी और फ्रेश होकर हॉल में आ गई।
दादी अपनी माला जप रही थीं, पापा कभी अखबार की न्यूज़ पढ़ते तो कभी टीवी पर आज तक देखते। ये सब देखकर नेहा अपने बचपन की यादें ताजा कर रही थी, तभी दादी की नजर नेहा पर पड़ी और दादी बोली “क्या हुआ बेटी क्या सोच रही हो..?” वो बोली “दादी मैंने ये सब बहुत मिस किया आपका माला जपना, पापा का एक साथ टीवी और अखबार दोनों देखना।”
नरेंद्र बाबू बोले “आ गया मेरा बच्चा आ जाओ मेरे पास बैठो ये बताओ तुम्हारा जॉइनिंग कब है.?” नेहा बोली “आपको मुझे भगाने की बड़ी जल्दी है।” नरेंद्र बाबू हंसने लगे बोले “ये बात तुम अभी नहीं समझोगी जब खुद मां बन जाओगी तब तुम्हें समझ में आएगा कि बच्चों के भविष्य के लिए जब माता-पिता उन्हें खुद से दूर करते हैं तो मैं भी एक अलग आनंद होता है।”
“पापा मुझे अगले हफ्ते बेंगलुरु ज्वाइन करने के लिए जाना है। मेरी रूम पार्टनर रूम देख ली है और वो सारी व्यवस्था कर लेगी आप चिंता मत कीजिए व नरेंद्र बाबू बोले “देख रही हो अम्मा हमारी लाडली अब बहुत बड़ी हो गई है ” दादी दूर से पोती की नजर उतार रही थीं।
अचानक टीवी पर न्यूज़ आया कि पति से परेशान पत्नी को जब परिवार का भी साथ नहीं मिला तो उसने आत्महत्या कर ली। जैसे ही नेहा ने वो खबर सुनी वो बोली “कायर थी वो लड़की खुद मरने की क्या जरूरत थी! अगर शादी के बंधन में नहीं रहना था तो तोड़ देती उस बंधन को..।”उसकी तेज आवाज सुनकर ममता भागी भागी आई और बोली “क्या हुआ..?”
नेहा बोली “कुछ नहीं मम्मा आप लोग अरेंज मैरिज को अच्छा मानती हैं तो चढ़ गई एक लड़की की फिर से आहुति..!” ममता ने नरेंद्र बाबू की तरफ इशारा किया वो नेहा से बोले “अच्छा एक बात बताओ बेटा अब तो तुम बड़ी हो गई हो तो तुमसे खुल कर बात करते हैं। अगर तुम्हें कोई लड़का पसंद है तो हमें अभी बता दो कहीं ऐसा ना हो कि तुम शादी करके हमें सरप्राइस दे दो ” इतना कहकर नरेन बाबू हंसने लगे।
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नेहा बोली “एक तो मुझे अरेंज मैरिज पसंद नहीं और लव मैरिज में मैं अपना वक्त नहीं गंवाना चाहती..! देखूंगी जब कोई पसंद आएगा तो पहले उसे परखूंगी, उसकी शर्तें सुनूंगी फिर अपनी शर्तें बताऊंगी और उन सबको मिलाकर एक दूजे के लिए कॉन्ट्रैक्ट बनाऊंगी ताकि वो मुझे आगे जाकर धोखा ना दे।”
नरेंद्र बाबू हंसकर बोले “वाह बेटा तब तो मुझे कुछ मेहनत करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।” नेहा भी उनके साथ ठहाके लगाने लगी सुमन जी और ममता दोनों को देखकर हैरान थी। ममता बोली “लड़की को अच्छी बातें समझाने की जगह आप उसे शाबाशी दे रहे हैं..! सुन लो नेहा तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है साफ-साफ बताओ? तुम्हारे पापा से तो कुछ नहीं हो सकता बोला था लड़की को समझाने के लिए ये तो उसके ही रंग में रंग गए।”
वो बोली “मम्मा आप ये मत सोचिए कि आपकी बेटी भाग के शादी कर लेगी। जब भी शादी करेगी आपको बता कर करेगी बस मैं दूसरों की तरह अपनी शादी को दूसरा मौका देने की परिस्थिति में नहीं लाना चाहती। इसलिए सावधानी तो बरतनी ही पड़ेगी अब वो अरेंज मैरिज में हो या लव मैरिज में योजना तो बनानी होगी।”
सुमन बोली “कैसा कॉन्ट्रैक्ट..? हमने भी शादी की कोई कॉन्ट्रैक्ट मैरेज नहीं किया।” नेहा मुस्कुराकर अपनी मां को प्यार करते हुए बोली “मेरी प्यारी मां जब मेरे पसंद का शहजादा मिलेगा तो आप सबको पता चल जाएगा।”
मां और दादी दोनों हैरान नेहा की तरफ देख रही थीं उनके मन में कितने ही सवाल उठ रहे थे पर नेहा बिंदास बेफिक्र मुस्कुरा रही थी मानो जिंदगी के प्रति उसका फंडा बिल्कुल क्लियर हो।
एक हफ्ता बीत गया नेहा को अपनी नौकरी की शुरुआत के लिए बेंगलुरु जाना था। जाते वक्त मां की आंखें नम थी नेहा अपनी मां और दादी से बोली “मेरी चिंता मत कीजिए मैं कोई भी ऐसा गलत काम नहीं करूंगी जिससे आपको दुख होगा। पर जिस रिश्ते में प्यार ना हो, एक दूजे के लिए विश्वास ना हो वैसे रिश्ते में मैं कभी नहीं बनधना चाहूंगी अब इसके लिए मुझे कॉन्ट्रैक्ट मैरेज क्यों ना करना पड़े।” मां को आश्वासन दिलाकर नेहा जिंदगी की राह पर अपने आंखों में प्यार भरे सपने जिंदगी को बेहतर बनाने की योजना बनाते हुए चली गई।
#प्रेम
निधि शर्मा