बहुत पुरानी बात है एक गांव में भोलाराय नाम का एक अमीर किसान रहता था. उसकी पत्नी का नाम मंजू था. और उनके तीन पुत्र थे. एक दिन भोलराय ने अपने दोस्त वेंकटेश को बुलाया और उससे कहा,
“मैं हर दिन बूढ़ा हो रहा हूं… और मेरी तबीयत भी बिगड़ रही है, पता नही और अब कितने दिन बचूंगा!”
“अरे नहीं तुम यह क्या बोल रहे हो? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो समझदार और इतना खुश आदमी होकर ऐसी बात क्यों सोचते हो? क्या मैं एक डॉक्टर को बुला लूं?”
“हीं मुझे कुछ नहीं हुआ ठीक ही हूं पर एक बात परेशान कर रही है…”
“हैं तो वह पहले बताओ की क्या हो गया!”
“अरे कुछ नहीं बस यह सारी बातें मेरे तीनों बेटो के बारे में है वह सारा दिन कुछ नही करते बस अपनी बाइक लेकर गांव में इधर उधर घुमाते है और कई बार शहर जा कर रात को देर से लौटते है, मैं परेशान हो चुका हूं और सारा कारोबार भी मुझे अकेले ही संभालना पड़ता है. कुछ उपाय हो तो बताओ क्या करूं!”
“मैने पहले ही तुम्हारे बारे में यह सोचा था की एक दिन ऐसा जरूर आयेगा मुझे तुम्हारे बेटो की हालत के बारे में पता था और मैंने तुम्हें बचपन से ही मेहनत करते देखा है एक-एक पैसा जमा करके तुम इस मुकाम तक पहुंचे. जब सभी लोग तुम्हें कंजूस समझते थे जब तुमने उनकी कभी नहीं सुनी और इसे पाने के लिए कड़ी मेहनत की और पैसे जमा किए. लेकिन अब तुम्हारे बेटे बहुत आलसी है. उन्होंने जब जो मांगा तूने दिया लेकिन अब गलती मत करो अपने बेटों को विश्वास दिलाओ की तुम ही खुद पूरा कारोबार चलाने में सक्षम नहीं हो!”
लेकिन भोलाराय अपने दोस्त की बात नहीं मानता. और अपने बेटो को जब जो चाहिए होता है वह बिना कुछ कहे देता रहता है. अगर बेटे पैसे मांगते है भोला वह भी दे देता है. फिर एक दिन अचानक भोलाराय बहुत बीमार पड़ जाता है. लेकिन वह देख कर भी उसके तीनों बेटो को कोई अक्कल नहीं आती. वह तो अपने घुमने फिरने और खाना खाने में ही मस्त रहते है.
ऐसा कुछ दिनों तक चलता रहता है. फिर कुछ हफ्तों बाद जब व्यापार बंद होने के कगार पर आ गया तो भोलाराय ने सोचा की अब तो उसे कुछ न कुछ करना ही होगा. क्यों कि उसके बेटे तो कुछ करने से रहे इस लिए फिर उसने अपने कपड़ो के व्यापर के लिए एक साहूकार रख दिया जो व्यापार का ध्यान रखता. और जो भी मुनाफा होता वह महिने के अंत में भोलाराय को दे देता. ऐसे ही उसने अपने खेतो के लिए भी एक साहूकार और दूध के व्यापार के लिए भी एक अलग साहूकार रख दिए. वह हर महीने मुनाफा भोलाराय को दे जाते और ऐसे ही एक दिन जब कपड़ो का साहूकार घर आ कर भोलाराय के हाथ मुनाफा थमाता है तो वह कहता है,
”अरे ये क्या इतना ही मुनाफा? कपड़ो की बिक्री तो बराबर चल रही थी फिर क्या हुआ? इतना कम मुनाफा!”
“जी सेठ जी क्या बताऊं जो कपड़ो की बिक्री कम होती जा रही है. क्यों की सब ग्राहक अब शहर ही कपडे खरीदने जाने लगे है. ऐसे में हमारी दुकान पर ग्राहक कम हो गए है.”
कह कर फकीरचंद तो वहा से चला जाता है. उतने में भोलाराय के तीनों बेटे वहां पर आते है,
“पिताजी यह तो गलत बात है, आपने किसी और को अपना व्यापर सौंप दिया तो वह ऐसा ही करेगा ना वह झूठ बोल रहा है. कपड़ो की बिक्री तो ठीक ही हो रही है बस वह आपको कम मुनाफा दे कर ज्यादातर मुनाफा खुद के जेब में भर रहा है”
“अच्छा बेटा अगर तुमको यह पता ही है तो तुम खुद ही व्यापार क्यों नही संभाल लेते तुम लोग नहीं संभालते इसी लिए तो मुझे बाहर के लोगो को खुद का बना बनाया हुआ कारोबार सौंपना पड़ रहा है.”
सबसे छोटा बेटा अपने पिता की यह बात सुन काम करने के डर से बाहर निकल जाता है. और फिर उसे देख बाकी भाई भी निकल जाते है. और आपस में बात करने लगते है कि ,
“पिता जी तो एकदम ठीक है फिर वह हमे काम पर लगाकर आराम करना चाहते है. हम अभी से क्यों काम करें! जब पिता जी अभी जिंदा है, जब वो नहीं होंगे तब देखा जायेगा!”
और फिर कुछ दिन ऐसे ही बीत जाते है. एक दिन भोलाराय के घर के पास एक नया परिवार रहने आता है. जिसकी दो बकरिया और एक गाय थी. भोलाराय कुछ ही दिन के बाद ठीक हो जाता है तो फिर वह खाली बैठ कर करता भी क्या. काम तो सब उसके रखे हुए साहूकार संभाल ही रहे थे. तो वह अपने घर के पास ही पड़ी एक जमीन पर धनिया का चारा लगा देता है. और कुछ ही दिनों में वहां हरियाली छा जाती है. और यह देखकर पड़ोस में नया रहने आया बिहारीलाल भोला राय के पास आया और कहने लगा,
“अरे वाह आपने तो घर के पास धनिया का अच्छा चारा लगाया है. वो क्या है ना मेरी पत्नी रसोई बना रही है और मुझे थोड़ा सा हरा धनिया चाहिए तो क्या मैं आपके बागान से थोड़े से ले सकता हूं!”
भोलाराय कहता है,
“हां भाई क्यों नहीं ले जाओ थोड़े से क्यों बहुत ज्यादा ले जाओ… और अपनी पत्नी को कहो कि बढ़िया सी धनिया और पुदीना की चटनी बनाए और थोड़ी सी चटनी हमें भी चखने के लिए दे जाए…” दोनों ही ठहाके लगा कर हस पड़ते है. और फिर बिहारीलाल धनिया ले कर भोलाराय से पूछता है,
“आप तो बड़े व्यापारी है काफी समझदार भी लगते है… फिर आपने मेहनत से खड़ा किया हुआ अपना कारोबार बाहर के लोगों को क्यों सौंप दिया है? मैं हर महीने देखता हूं कि आपके घर तीन तीन साहूकार आकर आपका मुनाफा दे जाते है. और आपके तीन नौजवान बेटे तो बस इधर-उधर घूमते रहते है आपके कारोबार में कोई मदद नहीं करते.
“हां भाई अब क्या ही करे बचपन से ही मैंने उनको ऐसे पाला पोस बड़ा किया है की कि जो दुख मैंने सहन किए है जो मेहनत मैंने की है वह उनको ना करना पड़े… लेकिन वह अब इतने बिगड़ चुके है कि खुद के पिता का बनाया हुआ कारोबार भी संभालने से इंकार कर रहे है. क्योंकि उनको यह फिक्र नहीं है कि घर में पैसा कैसे आएगा.. उसका पिता अभी जिंदा है ना!”
“अच्छा तो यह बात है…”
बिहारीलाल फिर धनिया लेकर वहां से अपने घर चले जाता है. दूसरे दिन फिर बिहारी की एक बकरी आसपास घूमते हुए धनिया के बागान में पहुंच जाती है. और फिर वह बकरी वहां बागान में लगाया हुआ आधा धनिया खा कर साफ कर देती है. भोलाराय का बेटा यह देख लेता है और अपने पिता से कहता है,
“पिताजी यह क्या! आपने इतनी मेहनत से धनिया लगाया और पास में नए रहने आए पड़ोसी की बकरी ने आकर आधा खा लिया और नुकसान कर दिया… आप उसके चारों और बांध क्यों नहीं बना लेते?”
“हां बेटा अब मैं बांध कैसे बनाऊं मेरे शरीर में तो जान नहीं… बकरी खाए तो खा लेने दो अब इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता!”
और अपने पिता की बात सुनकर अपनी नजरो से खुद का नुकसान उससे देखा नही गया और जीवन में पहली बार उसका सबसे बड़ा बेटा खुद ही उसके चारों और बांध बना लेता है. ताकि बकरी या गाय घुसकर उसके पिता को उगाई हुई फसल बर्बाद ना करें!”
लेकिन अब दूसरे दिन बिहारीलाल की गाय और दो बकरियां एक साथ आकर कड़ी मेहनत कर अपने सींग से वह बांध तोड़कर अंदर घुस कर धनिया खा लेते है. यह देख कर भोलाराय के तीनों बेटो को अब बड़ा गुस्सा आता है वह अपने पिता के सामने जाकर कहते है,
“पिताजी हमसे यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता आप उसे कुछ कहते क्यों नहीं कि उसकी बकरियां और गायों को बांध कर रखें!”
“पर बेटा कहने से क्या होगा… बस दुश्मनी बढ़ेगी, और वो यहां नए-नए रहने आए है और ऐसे में क्या हम उनके साथ दुश्मनी मोल ले यह तो ठीक नही, लेकिन एक बात कहूं बेटा मुझे तो लगता है कि तुम तीनों बेटों से अच्छा तो वह उसकी एक गाय और दो बकरियां है जो मेहनत करके खाती है. तुमने इतनी मजबूत बांध बनाई फिर भी उन्होंने अपने सींग से कड़ी मेहनत के बाद उस बांध को तोड़कर अंदर घुसे और सारा उगाया हुआ धनिया खा गई! कम से कम मेहनत कर के तो खाया है…”
“अपने पिता के यहां बात सुन तीनों बेटों की नजरें शर्म से झुक जाती है. कि उनके पिता ने आज उनकी तुलना एक गाय और बकरी से कर दी थी. उसके बाद तीनों बेटों को अक्कल आती है. अब वह उस दिन के बाद से थोड़ा-थोड़ा काम करने की कोशिश करते है. और अपने पिता के कारोबार में उनकी मदद करने की कोशिश करते है. और धीरे धीरे वह तीनों ही मिल कर भोलाराय का कारोबार संभालने में सक्षम हो जाते है.