“बहू…. सो रही हो क्या??? ,, कामना जी ने अपनी बहू साक्षी के कमरे में झांकते हुए धीरे से कहा।
सास की आवाज सुनकर लेट कर मोबाइल चलाती हुई साक्षी उठ बैठी, ” नहीं मां जी…. आईये… कोई काम है क्या ?? बैठते हुए साक्षी ने पूछा।
” नहीं बहू, काम तो कुछ नहीं , बस यूं ही , आ तेरे बालों में तेल लगा दूं…. ” कामना जी प्यार से बोलीं।
” नहीं नहीं मां जी… मैंने आज हीं बालों को कलर किया है। ,, हड़बड़ाते हुए साक्षी बोली।
” अच्छा…. लेकिन हम तो हमेशा तेल हीं लगाते थे। तेल से बाल लंबे और काले रहते हैं। थकान भी दूर हो जाती है। गांव में तो हम अड़ोस-पड़ोस की औरतें दोपहर को बैठ कर खूब गप्पे लड़ाती थीं, एक दूसरे के बालों में तेल लगा देती थीं। वड़ी – पापड़ बनाती थीं … नहीं तो स्वेटर बुन लिया करती थीं।” कामना जी बोले जा रही थीं और साक्षी बस बेमन से हूं…. हां .. कर रही थी।
करीब एक घंटे बाद कामना जी उठ कर जाने लगीं तो साक्षी ने चैन की सांस ली। वो दोबारा कमरे का दरवाजा ढालकर लेट गई ।
साक्षी की सास कुछ दिनों पहले हीं गांव से आई थीं। जब साक्षी के ससुर जी थे तो दोनों का समय अच्छे से व्यतीत हो जाता था। गांव में अड़ोस पड़ोस के लोगों से उनकी अच्छी बनती थी और खेती बाड़ी भी थी जिसे संभालते हुए दोनों हंसी खुशी रह रहे थे। कामना जी का बेटा विमल शहर में नौकरी करता था और अपनी पत्नी साक्षी के साथ वहीं बस गया था।
सबकुछ ठीक था लेकिन जब से ससुर जी का देहांत हुआ था कामना जी का स्वास्थ्य भी गिरने लगा था। विमल को अपनी मां को अकेले गांव में छोड़ना सही नहीं लगा तो वो उन्हें अपने साथ शहर ले आया। साक्षी भी स्वभाव से अच्छी थी और सास के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझती थी लेकिन इतने सालों से अकेले रहने और अपनी मर्जी से जीने की जो आदत थी वो भला कुछ दिनों में कैसे बदल सकती थी।
कामना जी का कमरा साक्षी ने व्यवस्थित कर दिया था लेकिन फिर भी कामना जी कभी इधर तो कभी उधर टहलती रहती थीं। कभी बालकनी का चक्कर लगा आतीं लेकिन अड़ोस-पड़ोस में किसी की कोई प्रतिक्रिया ना देखकर बुझे मन से वापस आ जातीं। घर की साफ-सफाई और बर्तन के लिए एक मेड आती थी। कपड़े मशीन में धुल जाते थे । बाकी खाना बनाने का काम साक्षी कर लेती थी। नए ज़माने की रसोई में उन्हें कुछ समझ में नहीं आता था फिर भी साक्षी से कहती रहतीं , ” बहू कुछ काम हो तो बता दो, मैं खाली हीं बैठी हूं।”
लेकिन साक्षी कहती,” मम्मी जी आप आराम कीजिए, ज्यादा काम नहीं है मैं कर लूंगी।”
दूसरे दिन भी दोपहर को कामना जी साक्षी के कमरे में आकर धीरे से बोलीं ,” बहू सो रही हो क्या? “
साक्षी फिर उठ बैठी । कामना जी अपने गांव की ढेर सारी बातें बताने लगी । अपने और विमल के पिता जी के बारे में बातें करने लगीं।
ये रोजाना का नियम बन गया … कामना जी बातें करतीं और साक्षी बेमन से हूं… हां… करती रहती। एक दिन साक्षी ने ठान लिया कि अब वो अपनी सास को अंदर आने के लिए नहीं कहेगी। जब वो आएंगी तो कोई जवाब ही नहीं देगी।
अगले दिन जब कामना जी ने आकर पूछा कि ” बहू सो रही हो क्या?? ” तो साक्षी ने कोई जवाब नहीं दिया। वो चुपचाप सोने का नाटक करने लगी। । एक- दो बार बोलकर कामना जी वापस चलीं गईं। तीन चार दिन ऐसा हीं हुआ… फिर कामना जी ने साक्षी के कमरे में आना बंद कर दिया। साक्षी अब चैन से सोती या फिर मोबाइल पर बातें करती रहती।
एक दिन जब साक्षी अपनी मां से बात कर रही थी तो उसकी मां काफी उदास लग रही थी। साक्षी ने पूछ लिया ,” क्या हुआ मां?? आपकी आवाज में उदासी सी लग रही है। आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या? ,,
” बेटा, तबियत तो ठीक हीं है .. बस मन नहीं लगता अकेले बैठे बैठे ,,
” क्यों मां .. अब तो घर में भाभी भी आ गई है। फिर भी आपका मन नहीं लगता !! ,, साक्षी ने आश्चर्य से पूछा।
“बेटा पता नहीं क्यों आजकल के बच्चों को लगता है कि हम बूढ़े लोगों को केवल आराम चाहिए। तेरा भाई तो सुबह से शाम तक आफिस में रहता है और तेरी भाभी काम करके अपने कमरे में चली जाती है। मैं बुढ़िया अकेले बैठी- बैठी बोर होती रहती हूं… सोचा था बहू आएगी तो दोनों सास बहू खूब गप्पे लड़ाएंगे, साथ घूमने जाएंगे .. लेकिन आजकल के बच्चों को हमारी बातें और हमारी पसंद कहां रास आती है। एक घर में रहकर भी ऐसा लगता है जैसे अलग हैं। ,,
मां की बात सुनकर साक्षी को जैसे झटका लगा। भाभी को क्या दोष देती वो खुद भी तो अपनी सास के साथ ऐसा हीं कर रही थी। वो बेचारी दो घड़ी अपने मन की बातें साझा करना चाहती तो साक्षी बहाने बनाने लगी। यदि थोड़ी देर उनके साथ बातें कर भी ले तो उसका क्या बिगड़ जाएगा??
अकेलापन एक ऐसी बिमारी है जिसका इलाज दवाईयां नहीं अपनों का साथ है।
साक्षी ने बुझे मन से फोन रख दिया। वो उठी और अपनी सास के कमरे की तरफ बढ़ गई। बाहर खड़े होकर उसके आवाज लगाई ,” मम्मी जी.. सो रही हैं क्या?? ,,
कामना जी फटाक से उठ बैठी ,” नहीं बहू… यूं हीं बैठी थी .. आजा …. अब सारा दिन नींद कहां आती है। ,,
” मम्मी जी, आईये आपके बालों में तेल लगा दूं …. साक्षी ने तेल की शीशी दिखाते हुए कहा तो कामना जी का चेहरा खिल उठा।
अब तो सास बहू की खूब बातें होती , तेल का तो बस बहाना था। कामना जी अपनी कहतीं और साक्षी अपनी। कभी कभी साक्षी उन्हें बाहर घुमाने भी ले जाती। धीरे धीरे कामना जी भी शहरी जीवन में ढलने लगीं। अब उन्हें य शहर और घर पराया नहीं लगता था।
दोस्तों, बड़े बुजुर्ग जब खुद को अकेला समझ कर खुद को अपने में सीमित करने लगें तो उनके अंदर जीने की चाहत खत्म होने लगती है। ऐसे में उन्हें दवाओं से ज्यादा अपनों के साथ और थोड़े समय की आवश्यकता होती है जो आजकल सब के पास कम हीं होता है। लेकिन क्या अपने उन माता-पिता के लिए बच्चे थोड़ा समय नहीं निकाल सकते जिन्होंने बच्चों की परवरिश में अपना जीवन लगा दिया???
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सविता गोयल