बिन्नी स्कूल से जैसे ही घर वापस लौटी वो देखती है कि उसके दादाजी अपना बैग पैक कर रहे हैं । बिन्नी ने अपने दादा जी से पूछा कि दादाजी आप कहां जा रहे हैं दादाजी ने बताया बेटी मैं गांव जा रहा हूं और बहुत जल्द ही वापस आ जाऊंगा। बिन्नी जिद करते हुए बोली, “नहीं दादा जी आपको कहीं नहीं जाना है अगर आप गांव चले जाओगे तो स्कूल से आते ही मुझे इस घर में कौन गले लगाएगा और कौन मुझे अपने साथ पार्क घुमाने ले जाएगा।”
पहले तो बिन्नी को लगा कि उसके दादाजी सचमुच के गांव जा रहे हैं लेकिन जब उसने अपने मम्मी पापा से सुना कि दादा जी गांव नहीं बल्कि वृद्धाश्रम जा रहे हैं।
बिन्नी अपने दादाजी के पास जाकर उनको जोर से पकड़ ली और फफक फफक कर रोने लगी। उसके दादाजी भी अपनी पोती को छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहते थे लेकिन वह यह भी नहीं चाहते थे कि उनके लिए उनके बेटे और बहू के आपसी रिश्ते खराब हो जाए। रोज-रोज के लड़ाई झगड़े से तंग आ गए थे उन्होने अपने आपको वृद्ध आश्रम में जाना है उचित समझा।
रामदयाल जी के बेटे और बहू दोनों डॉक्टर थे इस वजह से उनका ज्यादातर टाइम घर से बाहर ही बीतता था और दोनों का टाइम टेबल भी अलग-अलग होता था। दोनों अपने प्रोफेशन में इतने बिजी हो गए थे कि उनको अपने पिताजी की जिम्मेदारी अपने तरक्की में रोड़ा अटकाने जैसी लगने लगी।
दोस्तों बुढ़ापा भी एक रोग से कम नहीं होता है रामदयाल जी को गठिया की शिकायत थी इस वजह से उनके जोड़ों में अक्सर दर्द होता रहता था जब भी वह अपनी बहू को बेड से उठाने के लिए आवाज देते। बहू अपने ससुर पर बड़ बड़ करने लगती थी।
बिन्नी के पापा रमन कई बार अपनी पत्नी दिव्या से कहते थे दिव्या हॉस्पिटल में तो तुम रोगियों की कितनी सेवा करती हो लेकिन बाबू जी की सेवा करने में पता नहीं क्यों तुम्हें गुस्सा आने लगता है। दिव्या का जवाब होता था रमन मैं तुम्हें साफ-साफ शब्दों में कह दूं जो हॉस्पिटल में हम करते हैं वह सेवा नहीं होता है बल्कि वह हमारा जॉब है और उसके लिए हमें पैसा मिलता है। रमन चुप हो जाता था इसके आगे वह क्या बोलता।
1 दिन बिन्नी के दादाजी को टॉयलेट जाना था बहुत देर से आवाज लगा रहे थे लेकिन किसी ने भी नहीं सुना उन्होंने बेड पर ही टॉयलेट कर दी। फिर जब दिव्या को पता चला कि ससुर जी ने बेड पर ही टॉयलेट कर दी फिर तो पूरे घर में हंगामा खड़ा हो गया दिव्या ने अपने कामवाली बाई को टॉयलेट साफ करने को बोली तो उसने भी साफ मना कर दिया मैडम जी मैं इस घर की साफ सफाई के लिए आपके यहां नौकरी करती हूं आपके ससुर जी के टॉयलेट साफ करने के लिए नहीं। गुस्से में दिव्या नहीं बिन्नी के पापा को फोन लगाया और बोली, “जल्दी से तुम घर आ जाओ तुम्हारे बाबू जी ने बेड पर ही टॉयलेट कर दिया है।”
बिन्नी जब स्कूल से आई तो उसने देखा उसके घर में हंगामा खड़ा हुआ है उसके दादाजी ने बेड पर ही टॉयलेट कर दिया है वह बिना कुछ सोचे अपने दादाजी का हाथ पकड़कर टॉयलेट के अंदर ले गई और उसने अपने दादाजी का टॉयलेट साफ किया।
दादा जी बोले रहने दो बिटिया मैं जाकर बेड का टॉयलेट साफ कर देता हूं। बिन्नी के दादा जैसे ही अपना टॉयलेट साफ कर रहे थे रमन हॉस्पिटल से आ गया था उसने अपने बाबूजी को इस तरह टॉयलेट साफ करते देखते हुए उसे बहुत बुरा लगा उसने डिसाइड कर लिया था कि अगले दिन ही अपने बाबूजी को वृद्धाश्रम में भर्ती करा देगा कम से कम बाबूजी को इतना कष्ट तो सहन नहीं करना पड़ेगा जितना पैसा खर्च करना होगा वह करेगा क्योंकि उसके पास समय नहीं है कि वह अपने बाबू जी की सेवा कर सके।
दादाजी को वृद्धाश्रम जाने का मन नहीं था चाहे कितना भी कष्ट हो रहा था लेकिन वह अपने घर में रहना चाहते थे। लेकिन बेटे और बहू की आपसी लड़ाई के कारण उन्हें वृद्धाश्रम जाना ही पड़ा।
हर सप्ताह बिन्नी अपने दादा जी से मिलने वृद्धाश्रम जरूर जाती थी।
बिन्नी के दादाजी को वृद्धाश्रम में रहते हुए 1 साल से भी ज्यादा हो चुका था बिन्नी इधर 12th का बोर्ड 98% से पास हो गई थी वह अब मेडिकल की तैयारी करने के लिए राजस्थान की कोटा जाने वाली थी।
बिन्नी ने अपने मां-बाप से यह शर्त रखा कि वह कोटा तैयारी करने के लिए तभी जाएगी जब उसके साथ उसके दादाजी भी जाएंगे वह पीजी में नहीं रहेगी वह बल्कि अलग से फ्लैट लेकर अपने दादाजी के साथ रहना चाहती है। बिन्नी के मां बाप ने बहुत समझाया बिन्नी तुम वहां पढ़ाई करने के लिए जा रही हो रिश्ते निभाने के लिए नहीं और तुम्हारे दादाजी को कोई तकलीफ नहीं है जब भी तुम छुट्टी में वापस आना अपने दादा जी से जाकर मिल लेना और फोन पर बात करते रहना।
बिन्नी ने अपने मम्मी पापा से साफ साफ शब्दों में कह दिया था कि अगर मैं कोटा जाऊंगी तो अपने दादाजी को लेकर जाऊँगी नहीं तो मैं कहीं नहीं जाऊंगी।
रमन और दिव्या को अपनी बेटी के जिद के आगे झुकना ही पड़ा।
अब रामदयाल जी अपनी पोती के साथ कोटा में रहने लगे। पढ़ाई के साथ-साथ अपने दादाजी का भी ख्याल रखती थी रोजाना शाम को दादा जी के पैरों में मालिश जरूर करती थी।
रामदयाल जी अपनी पोती को देखकर गर्व से भर जाते थे कि भगवान अगर किसी को बेटी दे तो बिन्नी जैसी दे।
समय अपनी गति से चलता रहा और 5 साल कब बीत गए पता भी नहीं चला बिन्नी अब डॉक्टर बन गई थी लेकिन उसने अपने दादाजी का साथ नहीं छोड़ा था वह अपने दादा जी को भी अपने साथ ही रखती थी।
बिन्नी के माता-पिता ने एक दिन मजाक में अपनी बेटी से कहा बिन्नी जिस तरह से तू अपने दादा से प्यार करती है हमें तो लगता है कि दहेज में भी अपने दादाजी को साथ ही ले जाओगी।
बिन्नी बोली, “सही कह रही हो मम्मी मैं अपने दादाजी को कभी नहीं छोडूंगी दादाजी में मेरी जान बसती है और मैं शादी भी उसी लड़के से करूंगी जो मेरे दादाजी को भी एक्सेप्ट करेगा।” बिन्नी की मां दिव्या बोली, “क्या बहकी बहकी बातें कर रही हो ऐसा भी कभी होता है क्या?”
बिन्नी दिल्ली के जिस हॉस्पिटल में डॉक्टर थी उसी हॉस्पिटल में दीपेश नाम का एक डॉक्टर भी था जो बिन्नी से बेहद प्यार करता था। एक दिन उसने शादी के लिए इजहार कर दिया, बिन्नी भी मन ही मन उसे पसंद करती थी लेकिन बिन्नी ने दीपेश के सामने यह शर्त रख दी अगर तुम मुझसे प्यार करते हो और मुझसे शादी करना चाहते हो तुम्हें मेरा एक शर्त स्वीकार करना पड़ेगा। “पहले शर्त तो बताओ।” “नहीं पहले हां या ना कहो।”
दीपेश ने कहा, “हां बाबा हां तुम्हारी जितनी भी शर्त हैं तुम्हारे लिए सब मंजूर है। बिन्नी ने कहा, “दीपेश मैं अपने साथ अपने दादाजी को रखती हूं और मैं चाहती हूं कि शादी के बाद भी दादा जी हमारे साथ ही रहे मैं इनसे अलग नहीं हो सकती हूं अगर तुम तैयार हो तो मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं।”
दीपेश ने हंसते हुए कहा, “बस इतनी सी बात है मैंने तो सोचा पता नहीं तुम्हारी क्या शर्त होगी मैं तो डर ही गया था यह तो बहुत अच्छी बात है इससे यह पता चलता है कि तुम्हारे मन में बुजुर्गों के प्रति कितनी श्रद्धा है तुम्हारी जैसी लड़की को कौन लड़का नहीं अपनाना चाहेगा जिसके मन में बुजुर्गों के प्रति इतनी श्रद्धा हो।”
फिर कुछ दिन के बाद दीपेश और बिन्नी की शादी हो गई। बिन्नी सुबह-सुबह विदाई के साथ अपने दादा जी को भी अपने गाड़ी में बैठाने लगी। तभी उसके पिताजी रमन ने सबके सामने अपनी बेटी से माफी मांगा। बेटी तुम्हारे मन में अपने दादाजी के प्रति इतना प्यार देखकर हमें भी एहसास हो गया है कि बुजुर्ग बोझ नहीं बल्कि एक आशीर्वाद की तरह होते हैं जहां भी होते हैं अपनी आशीर्वाद से उस घर को स्वर्ग बना देते हैं। बिन्नी की मां दिव्या भी आ चुकी थी उसने भी अपनी बेटी से माफी मांगी और बोली तुम्हारे दादा जी अब हमारे साथ ही रहेंगे इनको कोई दिक्कत नहीं होगी हम तुम्हें विश्वास दिलाते हैं बेटी। बिन्नी के दादा जी बोले बिटिया मुझे अब यही रहने दो तुम अपने जीवन में खुश रहो और वीडियो कॉल पर रोजाना बात होती रहेगी। तुम्हारी वजह से आज मुझे मेरे बेटे और बहू दोबारा से मेरे हो गए हैं।
वहां जितने भी लोग खड़े थे सब लोग बिन्नी पर गर्व महसूस कर रहे थे और सबसे ज्यादा खुश तो बिन्नी के सास ससुर थे जो इतनी अच्छी संस्कारी बहू अपने घर ले जा रहे थे।
लेखक : मुकेश पटेल ( संस्थापक betiyan.in )
It’s very heart warming story no one wants to live or take care of their parents or grandparents rarely one in million you will find who can say yes I will .
ऐसी शिक्षाप्रद कहानियां कम ही पढ़ी हैं, साधुवाद