आभा…बेटा आभा आंखें खोलो! देख बेटा तेरी मां बुला रही है।मेरी बात नहीं मानेगी, आंखें खोलो नहीं तो मैं नाराज हो जाऊंगी। आभा के गाल पर हाथ सहलाते हुए लक्ष्मी बोली।
परंतु यह क्या?? आज सुबह के नौ बज रहे थे और आभा नींद से जागने का नाम ही नही ले रही थी। अचानक लक्ष्मी को ऐसा लगा जैसे धीरे से कोई कान में कह गया अपना ध्यान रखना मां… अब मैं जा रही हूं पापा के पास… बहुत दिन हो गए,बल्कि ये कहूं जब से मैंने आंखें खोली मैनै कभी पिता का स्पर्श उनका प्यार उनका दुलार नहीं जाना,अपना ध्यान रखना मां… आनन फानन लक्ष्मी ने डॉक्टर को बुलाया कहने लगी… देखिए न डाक्टर साहब मैं सुबह से इसको उठा रही हूं,यह है कि जग ही नहीं रही।
डाक्टर ने जांच की और रूंधे गले से बोले माफ कीजिएगा आपकी बेटी अब इस दुनिया में…अब आगे कुछ मत बोलिएगा मैं जानती हूं मेरी बेटी को कुछ भी नहीं हुआ है। आप समझने की कोशिश कीजिए आभा अब इस दुनिया में नहीं है।
लक्ष्मी मानो अपना आपा खो रही थी… डॉ साहब आप मजाक कर रहे हैं न मेरी बेटी एकदम ठीक है अभी देखना मैं बुलाती हूं और वो उठेगी… बार बार बुलाने पर भी कोई उत्तर नहीं अब लक्ष्मी के सब्र का बांध टूट गया,और एक मां के करूण कंद्रन हृदय से निकलती चीत्कारों से मानो घर की दीवारें भी हिल गई।आंखों से निकली अश्रुधार थमने का नाम नहीं ले रही थी।
अभी तक बहुत अन्याय हुआ था लक्ष्मी के साथ,भाग्य और नियति ने कभी उसका साथ नहीं दिया। बचपन में मां बाबा का साया सिर से उठ गया, विवाह के दो वर्ष ही बीते एक तरफ बेटी के जन्म लेने की खुशी उधर पति की अकाल मृत्यु सारी खुशियां पानी में बह गईं। समाज में तरह तरह के ताने कुलघातिनी,करमजली न जाने कितनी तरह की जिल्लत सही।
फिर भी बस बेटी का मुंह देखकर जी रही थी,अपने पति की छवि जो दिखती थी उसमें। और आज दस वर्ष की बेटी आभा का इस दुनिया से सदा- सदा के लिए विदा लेना,लक्ष्मी इस दर्द को सहन न कर पाई। अचानक हृदयाघात से लक्ष्मी की भी सांसें रूक गई। सारे दर्द लक्ष्मी ने सहन कर लिए लेकिन आभा के जाने का दर्द…वह सहन न कर सकी। स्वरचित मौलिक ✍️… अमिता गुप्ता “नव्या” कानपुर, उत्तर प्रदेश