मॉर्निंग वॉक से राधिका जी घर लौटी तो देखा बेटा आरव रसोई में कुछ बना रहा है।
“तू यहां क्या कर रहा है बेटा? चल तू जा यहां से, मैं कर लेती हूं।”
“कुछ नहीं मां! ब्रेकफास्ट बना रहा हूं।”
“पर तुम क्यों बना रहे हो? मैं बना लेती हूं ना!”
“आप जाओ मम्मा अपना अखबार पढ़ो। मैं सबके लिए ब्रेकफास्ट वहीं लेकर आता हूं।”
“लेकिन बेटा.. तुम काम करोगे और मैं बैठी रहूं यह अच्छा लगता है?”
“मम्मी यार आप भी ना! बहुत जिद करने लगती हो। मैंने कहा ना कर लूंगा तो आप जाओ ना!”
बेटे ने फिर कहा तो राधिका जी रसोई से बाहर निकल गई।
“लीजिए मम्मी जी आपका हिंदी अखबार। ” वहीं अंग्रेजी अखबार लेकर बैठी बहू नव्या ने कहा तो राधिका जी भी सोफे पर बैठ अखबार में नजर गडा़ लीं। लेकिन अखबार पढ़ने में दिल नहीं लगा एक बार फिर अखबार से नजर हटा कर रसोई की ओर देखा। बेटा बड़ी तन्मयता से ब्रेकफास्ट बनाने में लगा था। अब एक नजर बगल में बैठी बहू पर डाली। कितना समय बदल गया, लोगों कि सोच कितनी बदल गई। कितनी अच्छी किस्मत है मेरी बहू की! भगवान ऐसी किस्मत सबको दे। यही सब सोचते हुए मन अनायास ही पुरानी यादों में खो गया।
“लेकिन बेटा यह तो बहू की ढिठाई है ना!
खाना बना कर रख दिया और जाकर सो गई किसी ने खाया कि नहीं खाया कोई फर्क नहीं पड़ता उसे। पता है तुम्हें, सब 12:00 बजे रात को खाना खाए। मैं, पूनम और तुम्हारे पापा आवाज देते रह गए लेकिन यह अपने कमरे से क्यों निकलेगी? राह देखते देखते जब यह नहीं निकली तब तुम्हारी बहन पूनम खाना निकाल कर लाई।”
इतना सुनते ही मेरी घबराहट बढ़ने लगी।
हे भगवान! अभी अभी तो काम से आए हैं भूखे प्यासे हैं। खाना भी नहीं खाने दिया और शिकायतें शुरू हो गई। मैं फटाफट चाय बना कर पति को पकड़ा अपने कमरे में चली गई। मुझे घबराहट इतनी हो रही थी कि ना तो मैं शांति से बैठ पा रही थी ना ही एक जगह खड़ी हो पा रही थी। बस कमरे में इधर से उधर आपाधापी कर रही थी। लगता है आज फिर घर में भूचाल आएगा। मैं भी ना ! इतनी कोशिश के बावजूद एक न एक गलतियां कर ही देती हूं। मन में बोलते हुए दरवाजे से झांकने लगी।
“मां, कैसी बातें कर रही हो? तुम देख नहीं रही उसका आठवां महीना चल रहा है, तबीयत भी ठीक नहीं रहती। मैं अक्सर देखता हूं कभी कमर में तो कभी पेट में दर्द रहता है। और तो और उसको अब तक उल्टियां होती है। हो सकता है तबीयत ठीक नहीं हो। क्यों छोटी सी बात को इतना बढ़ा रही हो? खाना तो बना हुआ था। लेकर खाने में क्या हर्ज है? और आपने खा लिया तो हो गई बात खत्म। मैं समझा देता हूं आगे से ऐसा ना करें।”
पति की बात सुनकर मुझे थोड़ी तसल्ली मिली। हुआ कुछ यूं कि कल मुझे दिन भर कमर में हल्का-हल्का दर्द होता रहा। मैंने सासु मां को कहा भी तो उन्होंने कहा इस समय में यह सब सामान्य बातें हैं। दिन भर किसी तरह तो काम कर लिया पर रात में खाना बनाने का बिल्कुल मन नहीं हो रहा था, लग रहा था कब बिस्तर पर चली जाऊं। फिर भी मैंने किसी तरह खाना बना दिया और ननद पूनम को कह दिया सबको परोस कर दे देने के लिए। मैं थोड़ा लेटने जा रही हूं। अब मैं और खड़ी नहीं रह सकती। मैं तो बस बिस्तर पर लेटने के लिए गई पर पता नहीं कब आंख लगी और इतनी गहरी नींद में सोई कि रात के 2:00 बजे आंख खुली। भूख काफी तेज लग रही थी। कुछ देर के लिए समझ नहीं पाई इतनी रात को अचानक मुझे भूख क्यों लगी? मैं बिस्तर से उतरी कि अचानक सब याद आया। मैं झटके में रसोई में आई तो देखा सब खाना खाकर सो चुके थे। ओह! किसी ने मुझे जगाया नहीं। रसोई की बत्ती जल रही थी, जूठे बर्तन यहां-वहां बिखरे पड़े थे, मेरे लिए बचा हुआ खाना ऐसे ही पड़ा था। खाने का मन तो नहीं हुआ लेकिन भूख इतनी लग रही थी कि जैसे तैसे एक रोटी खा ली। अब दूध निकालने गई तो ये क्या पूरा दूध जम गया था। दोबारा गर्म नहीं होने की वजह से दूध फट गया। हे भगवान! कम-से-कम दूध तो गर्म कर देना चाहिए। अब तो कल उसकी खैर नहीं। मैं वापस अपने कमरे में आ गई लेकिन काफी देर तक नींद नहीं आई। मेरे पति भी अपने काम के सिलसिले में शहर से बाहर थे।
अगली सुबह जब आए तो सासू मां आते ही सारी बातें बताने लगी।
कुछ देर तक चुप्पी छाई रही फिर अचानक सासू मां रोने लगी।
“बेटा, बहुत बदमाश थी मेरी सास, बहुत परेशान करते थी। सौ ताने, उलाहने देती थी लेकिन कभी भूखा नहीं रखी। स्वर्ग में गई अब पीछे उनकी बुराई करूंगी तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगा। सब सच कह रही हूं। जो सास-ससुर के रहते नहीं हुआ, पति और बेटे ने नहीं किया वो कल की आई बहू ने कर दिया। हम सबको भूखा रख दिया। बोलते हुए सास जोर से रोने लगी।
सासु मां की रोने की आवाज सुनकर मेरे तो हाथ-पांव ठंडे पड़ने लगे।
“चुप हो जाओ मां क्यों रो रही हो? इतनी छोटी सी बात को बिना मतलब बढ़ा रही हो।”
“हां बेटा, अब तो मुझे ही चुप रहना पड़ेगा, मुंह पर ताला लगाना पड़ेगा। जब बेटा ही ना समझे तो किससे और कैसी शिकायत?”
“बड़ी तरफदारी कर रहा है तू अपनी पत्नी की! क्या एक तेरी पत्नी ही है दुनिया में जो मां बन रही है? अपनी मां को देखा है कैसे तुम चारों को पाला पोसा है? अभी तो हम कमा रहे हैं, हमारे हाथ पैर सही सलामत है। तब तुम्हारी पत्नी हमें खाना नहीं देती तो कल को क्या होगा जब हम दोनों बुढ़े हो जाएंगे?”
“आप किस से बात कर रहे हैं पिताजी? वह ना तो आपका बेटा है और ना ही मेरा भाई यह तो बस अब मेरी भाभी का पति बनकर रह गया है। बदल गए भाई! आखिर तुम बदल गए। जो भाई मां बाप के सामने आंख उठाकर नहीं देखता था आज जबान लड़ा रहा है। तुम्हें क्या लगता है भाई, मां, पिताजी झूठ बोल रहे हैं?” बोलते हुए बहन भी जोर-जोर से रोने लगी।
यह सब देखकर वही हुआ जो तीनों चाहते थे राजेश के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा और जोर से चिल्लाया राधिका… राधिका… बाहर निकलो।
डर के मारे मैं दो बार घर के बाहर कदम रख फिर अंदर चली गई।
“अरे कहां मर गई! बोला बाहर निकलने के लिए।”
सिर पर पल्लू ठीक करते हुए मैं बाहर निकली।
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे मां बाबूजी को खाना नहीं देने की?”
मैंने मन ही मन सोच लिया था अपनी सफाई में क्या बोलना है? लेकिन सबके सामने मेरी बोलती बंद हो गई, मुंह से एक शब्द नहीं निकल पाया।
“अरे मैं पूछ रहा हूं तुमने खाना क्यों नहीं दिया? जब तुमने खाना बनाया तो परोस कर देने में कौन सा पहाड़ टूट जाता? मैं तुम्हें ब्याह कर इसलिए नहीं लाया हूं कि यहां तुम महारानी बनी रहो एक काम ना करो।
लेकिन.. मैंने पूनम दीदी से कहा सब को परोस देने के लिए..
“पूनम से क्यों कहा?? तुमने क्यों नहीं किया? जब तुम मेरे मां बाप को ही भूखा रखोगी फिर तुम इस घर में रह कर क्या करोगी, तुम्हारा इस घर में क्या काम? चलो निकल जाओ मेरे घर से।” बोलते हुए राजेश ने मेरी बांह पकड़ आंगन के बाहर कर दिया।
मेरी जोर से सिसकियां निकल पड़ी जो सामने में रह रही बड़ी ताई जी ने देख लिया और दनदनाती हुई आंगन में आई।
“यह क्या है सरला? क्यों बहू को इस तरह घर के बाहर कर दिया? मैं नहीं जानती कि क्या हुआ तुम सबके बीच लेकिन कम से कम इतना तो सोचो कि वह पेट से है पूरा महीना चल रहा है थोड़ा तो तरस खा। और तू क्या इतना नमक मिर्च लगाती रहती है? कल को ससुराल जाएगी तब पता चलेगा, समझ आएगी कितना हाड़ तोड़कर, मन मारकर ससुराल में रहना पड़ता है।”
“जीजी, आप इसके बहाने और नखरे नहीं जानती और क्या सिर्फ यही मां बनेगी? और भी बनती है। हम, आप भी बने हैं। कभी इतना नखरा नहीं किया।”
“चल तेरी बात सही है। वह जानबूझकर सो गई पर खाना तो बना दिया था ना लेकर खाने में क्या जाता है? अगर जानबूझकर किया तो इसका मतलब है कि तुम लोग भी उसकी मदद करो। अरे 100 दिन में एक दिन तो किसी को भी आलस आता है और वह भी इस हालत में! क्या तुम और मैं इस स्थिति से नहीं गुजरे हैं? अरे! बाकी सब को जाने दो लेकिन तू तो ससुराल बसी है, 4 बच्चे जने है, सास ननंद के बीच रही है। कितना सहना पड़ता है बहू को पता है फिर भी नहीं बदली।”
“हां समझ गया ताई जी! आगे से ध्यान रखेंगे।” बात ना बढ़ जाए इसलिए राजेश ने बीच में ही बोल दिया।
बाकी घर वालों को तो नहीं पर मेरे पति राजेश को जरूर समझ आ गई। उसी रात में उन्होंने मुझसे कहा।
तुम मायके चली जाओ। देखो चाहता तो मैं भी यही हूं कि तुम मेरे पास रहो, मेरे आंखों के सामने हमारा बच्चा हो। पर क्या करूं? यहां तुम्हारी अच्छे से देखभाल नहीं हो सकती, तुम्हें आराम नहीं मिल सकता। ऐसा नहीं है कि तुम्हारा ख्याल नहीं रखना चाहता पर जब मां गुस्से में आ जाती है, रोने लगती है तो उनके खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता। इसलिए बोल रहा हूं। तुम मायके चली जाओ। हम दोनों की इच्छा नहीं होने के बावजूद मैं मायके चली गई। तभी मन में बस एक ही ख्याल आ रहा था कि ससुराल में बहू सबके लिए होती है, सबका काम करती है पर बहू के लिए कोई नहीं होता।
मायके में मैंने बेटे आरव को जन्म दिया। आज उसी बेटे आरव की पत्नी मां बनने वाली है। मुझे जैसे ही पता चला मैं भागकर बेटे बहू के पास आ गई। जितना हो सकता था उतना अच्छे से ख्याल रखने लगी। फिर भी बहू ने सिर्फ एक बार कहा..
मुझे मसालों की महक अच्छी नहीं लगती, उल्टी आ जाती है, जी मिचलाने लगता है तो मुझसे खाना बनाने नहीं होगा। बेटा ने तुरंत कुक रख लिया। मैंने मना किया। मैं कर लूंगी पर, वह नहीं माना।
“मां एक-दो दिन की बात नहीं है और आपकी भी उम्र हो गई है तो आपसे इतना काम नहीं होगा। कुक रखने दीजिए और अगले दिन ही कुक आ गई। वो आज एक दिन की छुट्टी पर है तो हमें कुछ कहने के बजाय खुद रसोई में चला गया। अच्छा है अब समय बदल गया और लोगों की सोच भी। पहले जैसे सख्त स्वभाव के सास ससुर नहीं रहे, बच्चे भी काफी समझदार हो गए हैं। मां और पत्नी के बीच कैसे एडजस्ट करना है, तालमेल बिठाना है? अच्छे से समझते हैं।
तभी आरव नाश्ते का प्लेट रखते हुए बोला।
“मां क्या हुआ? आप गहरी सोच में डूबी हैं क्या सोच रही हैं?”
“मैंने आपको मना किया फिर भी आप रसोई में चले गए शायद यह मम्मी को अच्छा नहीं लगा।”पत्नी नव्या ने कहा।
“क्या हुआ मम्मी? कहां खोई हो?” आरव ने फिर कहा।
“मैं झटके में वर्तमान में आई। कुछ नहीं बेटा बस कुछ पुरानी यादें ताजा हो गई।”
“मां, यादें है वही ताजा करिए जो आपके दिल को, मन को सुकून दे। वह यादें बिल्कुल ताजा मत करिए जो आपको दुख पहुंचाएं। फिर जो समय बीत गया उसे क्यों याद करना?”
“बेटा तुम्हारा कहना सही है जो समय बीत गया उसे याद नहीं करना। लेकिन यह भी सच है कि समय तो बीत जाते हैं पर दर्द रह जाते हैं और वह कभी ना कभी याद आते ही हैं।”
“दफन कर दीजिए उस दर्द को क्योंकि मैं अपनी मां के चेहरे पर सिर्फ खुशी देखना चाहता हूं। मेरे घर में मां और पत्नी दोनों हंसती मुस्कुराती रहेगी। तभी मैं तरक्की कर पाऊंगा, मेरे घर में बरकत होगी।”
मैं हंसने लगी। “तू खूब तरक्की करेगा बेटा। वैसे एक बात कहूं नव्या तूने मेरे बेटे को अच्छे से ट्रेंड कर दिया है।”
“मम्मा क्या आप भी! मैं तो 2 साल पहले आई हूं तो मैं क्या ट्रेंड करूंगी? यह तो जो कुछ भी है आपकी बदौलत है, बचपन से ही आपका दिया हुआ संस्कार है।”
“वाह क्या बात कही तुमने नव्या! वैसे आजकल तुम भी समझदार हो गई हो।”
“आजकल में नहीं, जन्म से ही समझदार हूं।”
बोल तीनों हंसते हुए अपना अपना नाश्ता का प्लेट उठा लिया।
#दर्द
रत्ना साहू