सहारा – पुष्पा पाण्डेय

सूरज बाबू सरकारी दफ्तर में क्लर्क थे। माता-पिता और पत्नी सुलेखा के साथ रहते थे। शादी के दस साल हो गये, पर आँगन किलकारियों से वंचित रहा। पोते- पोती को तरसते माता पिता क्रमशः अंतिम यात्रा पर चले गये। आस-पड़ोस और परिचितों ने बच्चा गोद लेने की बात कही। कई बार जाकर शिशु आश्रम से लौट आते थे। वहाँ कई बच्चों को देखकर मन बोझिल हो जाता था। यह खूबसूरत कली खिलने से पहले ही मुरझाने की कगार पर हैं। गोद तो किसी एक को लेंगे, बाकी……

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अब अक्सर सूरज और सुलेखा अपना वक्त इस शिशु आश्रम में गुजारने लगे।  सूरज दफ्तर चले जाते थे और सुलेखा दिन भर आश्रम में बच्चों की निस्वार्थ देखभाल करती थी। छुट्टी का दिन तो सूरज का वहीं गुजरता था। जब कभी किसी दिन जब किसी बच्चे की किस्मत जगती थी और उसे कोई कानूनी कार्रवाई के बाद लेकर चला जाता था उस दिन सुलेखा दिन भर आँचल से आँखें पोछती रहती थी। एक तरफ खुशी भी थी कि एक बच्चे को सहारा मिल गया, लेकिन ममता पर बश किसका है। अब तो सूरज पति-पत्नी तन-मन-धन से उस शिशु आश्रम में ही लगे रहते थे। कई नये बच्चे आए और कई बच्चे चले भी गये, लेकिन एक बच्चा था जिसपर दस साल से किसी की नजर भी नहीं पड़ती थी, आखिर क्यों? कभी जानने की कोशिश भी नहीं किए। जब भी कोई बच्चा देखने आता था आश्रम के मैनेजर बचपन से ही उसे अलग रखते थे, ऐसा सुलेखा ने सुन रखा था।   तीन साल में ये बच्चा सूरज दम्पती से काफी घुलमिल गया था। न जाने क्यों एक दिन सुलेखा को  इस रहस्य को जानने की इच्छा प्रबल हो उठी।

” मैनेजर साहब! मुझे आपसे एक बात पूछनी थी। यदि आप अनुमति दें तो…..”

सुलेखा अपने वाक्य को अधूरा ही छोड़ मैनेजर के चेहरे का भाव पढ़ने लगी। मैनेजर की अनुमति मिलते ही सुलेखा ने कहा-

” जब भी कोई आता है आप नारीश्वर को..

बीच में ही मैनेजर सासु ने उन्हें रोक दिया।

” तो क्या आप नारीश्वर के बारे में जानना चाहती हैं?”

“जी”



” तो सुनिए! नारीश्वर साधारण बच्चा नहीं है। तीसरे लिंग का बच्चा है। भला इसे कौन लेना चाहेगा? इसी की चिन्ता मुझे हमेशा लगी रहती है। बालिक होने के बाद ये कहाँ जायेगा?”

नारीश्वर के बारे में ऐसी बातें सुनकर सुलेखा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। वह बुत बनी खड़ी रही।

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रात भर उसे नींद नहीं आई।

आखिर चौथे पहर में सूरज को जगा ही दिया।———

जिन्दगी की एक नयी शुरुआत होने की खुशी में भला अब कौन सोना चाहेगा?

उसी समय उठकर गृहकार्यों से निवृत हो बड़ी शान्ति और श्रद्धा के साथ बंशीवाले की पूजा-अर्चना की। आज घर के मंदिर में चौबीस घंटे का अखण्ड दीप प्रज्ज्वलित किया गया था।

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सीधे मैनेजर के दफ्तर में सूरज दम्पत्ति पहुँच गये।

मैनेजर साहब से नारीश्वर को गोद लेने की विधिवत कार्यवाही करने की विनती की। मैनेजर साहब को वे फरिश्ता के रूप में नजर आ रहे थे। उनकी आँखें नम हो गयी।

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उसी दिन शाम में जन्मदिन का जश्न मनाया गया। वास्तव में नारीश्वर का आज नया जन्म और नया नाम जो मिला था। आज से नारीश्वर, चित्ररथ बन गया। सभी ने सूरज को बधाई देते हुए कहा-

अच्छा किए , आखिर बुढ़ापा में किसी का सहारा तो चाहिए।

सूरज ने मन-ही-मन कहा- हम दोनों एक दूसरे का सहारा बनेंगे।

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय

राँची,झारखंड।

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