किरण अपने बेटे को नहला रही थी कि तभी उसके फोन की घंटी बज उठी।
बेटे को बाथरूम में अकेला छोड़ कर वह जा नहीं सकती थी इसलिए वह जल्दी जल्दी उसे नहलाने लगी। उधर फोन था कि बार-बार बजे ही जा रहा था। फोन की लगातार बजती घंटियां सुनकर किरण थोड़ा परेशान हो गई।
उसने बाथरूम से ही अपनी सासू मां को आवाज लगाई मम्मी जी, देखो ना किसका फोन है !!
बहू, तेरे मायके से ही होगा। अब मैं क्या देखूं भला!!
मम्मी, प्लीज देखिए। कोई बार-बार फोन क्यों कर रहा है। किसी को कोई जरूरी काम ही होगा!!
ना चाहते हुए भी किरण के साथ ललिता जी को अपना
टीवी सीरियल छोड़ उठना ही पड़ा ।
फोन पर नाम देख उसका मुंह बिचक गया।
इतनी देर में किरण भी बेटे को नहलाकर बाहर निकल आई।
किसका फोन था मम्मी जी!!
तेरी दूसरी सास का!! किरण की सास तंज कसते हुए बोली।
किरण अपनी सास का अर्थ समझ चुप हो गई और फोन लेकर कमरे में चली गई।
बेटे को कपड़े पहना कर उसे एक तरफ बैठाया और जल्दी से फोन मिलाया।
हेलो आंटी जी नमस्ते!! कैसी हो आप! सब ठीक है वहां पर! आप फोन कर रही थी उस समय में मुन्ना को बाथरूम में नहला रही थी इसलिए फोन नहीं उठा पाई।
राम-राम बिटिया!! हम समझ गए थे तुम को काम में ही लगी होगी इसलिए हमारा फोन नहीं उठाया।
हां आंटी जी! आपकी तबीयत सही नहीं! आवाज में कुछ भारीपन लग रहा है। बताइए ना किस काम के लिए फोन किया था।
अब का बताएं बिटिया! समझ नहीं आ रहा कहां से शुरू करें और क्या कहें!!
आंटी जी!! साफ-साफ बताइए। क्या बात है !! मुझे बताने में कैसी झिझक!!
बिटिया, तुम्हें तो पता है अगले महीने हमारी बिटिया की शादी है लेकिन!!
कहते हुए दूसरी तरफ की आवाज रूंध गई।।
लेकिन क्या आंटी जी!!! उन्हें रोता सुन किरण घबरा गई थी।
बिटिया तुम्हें तो पता है हमने बिटिया की शादी के लिए एक दो जगह कमेटियां डाली हुई थीं जिससे कि शादी में मदद मिल जाए लेकिन एक कमेटी वाली हमारी कमेटी लेकर रातों रात भाग गई। डेढ़ लाख की कमेटी थी बिटिया समझ में नहीं आ रहा क्या करें!!
हमारे लिए तो डेढ़ लाख बहुत बड़ी रकम है।। रात दिन मेहनत कर बिटिया के लिए जोड़ रहे थे लेकिन!!
यह तो बहुत बुरा हुआ आपने और दूसरों ने पुलिस की मदद ली ।
बिटिया यह पुलिस कोर्ट कचहरी इनके चक्कर में पड़े या बिटिया की शादी का देखें!! गए थे दूसरों के साथ हम भी लेकिन उन्होंने ठंडा सा जवाब दिया है। समय लगेगा।
बिटिया समय ही तो नहीं हमारे पास।।
कहां से इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करें इसलिए बहुत हिम्मत करके तुम्हारे पास फोन किया है अगर कुछ मदद मिल जाती तो!!
उनकी बात सुन किरण कुछ सोचते हुए बोली
आंटी जी आप हिम्मत रखिए । मैं आपके साथ हूं और जितना हो सकेगा मदद करने की कोशिश करूंगी।
मुन्ना के पापा अभी ऑफिस गए हैं ।शाम को आएंगे। उनके आने के बाद मैं आपको फोन करती हूं लेकिन इतना विश्वास रखिए कि आपको निराश नहीं करूंगी।
और आंटी जी आप घबराइए नहीं। ईश्वर एक राह बंद करता है तो दूसरी खोलता है ।आप जैसे अच्छे लोगों के साथ बुरा हो ही नहीं सकता।
वैसे आपकी बेटी हमारी बेटी जैसी है। आप अकेले नहीं उसकी शादी हम मिलकर करेंगे।
अच्छा आंटी फोन रखती हूं। मुन्ना को दूध पिलाना है।
जुग जुग जियो बिटिया तुमसे यही उम्मीद थी।। तुमसे बात करके थोड़ी आस बंधी है।
मैं तुम्हारे फोन का इंतजार करूंगी ।कहकर उसने फोन रख दिया।
किरण ने जैसे ही फोन रखा। दरवाजे पर उसकी सास खड़ी थी।
कैसी मदद मांग रही थी तेरी दूसरी सास और क्या मदद करने की कह रही हो तुम!!
अपनी सास का सवाल सुन किरण ने उन्हें सारी बात बताई।
पागल बना रही है तुझे!! रुपए ऐंठने का बहाना है और कुछ नहीं।। इन कामवालियों को ज्यादा मुंह नहीं लगाना चाहिए लेकिन नहीं तुम्हें तो सब भले लगते हैं!!
एक रूपया देने की जरूरत नहीं!! आने दे नवीन को। मैं बात करती हूं उससे। तू तो उसे बहला-फुसलाकर अच्छा चूना लगवा देगी।
किरण कुछ नहीं बोली। वह अपनी सास का स्वभाव जानती थी। उन्हें कुछ भी कहना दीवार में सिर मारने बराबर था।
वह चुपचाप बैठ कर अपने बेटे को दूध पिलाने लगी और
उसे दूध पिलाते हुए अतीत की स्मृतियों में खो गई।
किरण की शादी को लगभग 4 साल हुए थे। ससुराल में छोटा सा परिवार नवीन और उसके बड़े भाई संजीव। जेठ जेठानी अपने परिवार सहित अलग रहते थे।
और वह दोनों सास ससुर के साथ। ससुर जितने स्वभाव से नरम थे। सास उतनी ही तेजतर्रार कोई भी बात कभी वह सीधी जुबान में कहती नहीं थी।
अपने पिता समान ससुर का प्यार आशीर्वाद उसके सिर पर ज्यादा दिन तक नहीं रहा। शादी के 1 साल बाद ही उसके ससुर हार्टअटैक से चल बसे। उनके जाने के बाद तो सास बिल्कुल ही मुंह फट हो गई। साथ ही बात बात पर इमोशनली ब्लैकमेल करने लगी थी।
किरण का पति नवीन उसे बहुत प्यार करता था लेकीन
मां की बातों को काटना उसके लिए भी मुश्किल था।
निर्मला आंटी इस घर में लगभग 10 -15 सालों से साफ सफाई का काम कर रही थी।। बहुत ही सीधी और सरल महिला थी। इतने साल से घर में काम कर रही थी इसलिए सबकी विश्वासपात्र भी। बस सासु मां को छोड़कर। उसकी सास जब अपने बच्चों पर ही विश्वास नहीं करती थी तो वह तो कामवाली थी।
निर्मला के स्वभाव के कारण किरण का उससे आत्मीयता का रिश्ता जुड़ गया था। दोनों ही ललिता जी की नजर बचाकर अपना सुख दुख साझा कर लेती।
जब किरण को बेटा हुआ तब निर्मला ने उसकी खूब सेवा की। उसके सिर में तेल लगाती उसकी मालिश करती साथ ही मुन्ना को नहलाने भुलाने में उसकी मदद करती और हां इसकी एवज में कभी उसने पैसे नहीं लिए।
हमेशा कहती बिटिया तुम हमारी बेटी जैसी हो। इतने सालों से इस घर में काम कर रहे हैं। यह तो हमारा फर्ज बनता है।। वैसे भी तुमसे हमारा एक अलग ही रिश्ता है। जहां दूसरे घरों में हमें सिर्फ कामवाली समझते हैं ।तुम हमें अपना समझती हो और उसी अपनेपन के कारण हमने यह सब किया।
मुन्ना 2 साल का ही हुआ था कि नवीन की प्रमोशन हो गई और उसे कंपनी की तरफ से ही फ्लैट मिल गया वैसे तो फ्लैट उसके घर से एक आधे घंटे की दूरी पर था लेकिन निर्मला के लिए रोज बस से वहां जाना संभव ना था।
किरण और मुन्ना को विदा करते हुए कितना रोई थी निर्मला। आंसू तो किरण के भी नहीं रुक रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो यह उसकी दूसरी विदाई हो।
किरण के उस फ्लैट पर निर्मला एक दो बार आई थी लेकिन ललिता जी को उसका वहां आना ज्यादा सुहाता ना था इसलिए निर्मला ने वहां जाना बंद कर दिया। किरण ने भी कुछ नहीं कहा। उसे भी कहां अच्छा लगता था कि उसकी सास घर आए मेहमान का अपमान करें लेकिन वह चाह कर भी उन्हें कुछ कह नहीं पाती।
हां, फोन पर जब भी समय मिलता, वह निर्मला के हाल-चाल जरूर पूछ लेती थी।
और जब कोरोना ने तबाही मचाई तब सबके काम धंधे ठप हो गए । तब भी किरण ने निर्मला की मदद की लेकिन इस रुपए की एवज में निर्मला ने जो किया । उसका ऋण तो किरण उम्र भर नहीं उतार सकती थी।
कोरोना की दूसरी लहर ने शायद ही किसी घर परिवार को छोड़ा हो। नवीन भी उसकी चपेट में आ गया लेकिन समय पर मिले उपचार और किरण की सेवा से वह जल्द ही स्वस्थ हो गया।
लेकिन नवीन की सेवा पानी करते हुए किरण अपना ध्यान नहीं रख पाई और वह बीमार पड़ गई। सारे घर के काम की जिम्मेदारी उसकी सास के ऊपर आन पड़ी। काम से ज्यादा उन्हें अपने बीमार होने का डर था। बेटा अपना था इसलिए शर्मा शर्मी वहां रही लेकिन किरण के बीमार होते ही खुद को कई बीमारियों का मरीज बता बड़े बेटे के घर चली गई।
नवीन के लिए अपने मां का यह व्यवहार अप्रत्याशित था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि घर का काम करें! मुन्ना को संभाले या किरण की तीमारदारी मुन्ना को भी उससे दूर रखना जरूरी था और ऐसे समय में निर्मला उनके लिए एक देवदूत बनकर आई।
किरण के मना करने के बाद भी वह ना केवल उसके घर आई बल्कि 15 दिन तक घर की साफ सफाई से लेकर खाने पीने की जिम्मेदारी भी उठाई और मुन्ना और नवीन को किरण से दूर रखा।।
किरण को जो यह दूसरा जीवन मिला था। वह निर्मला की ही सेवा का नतीजा था।
शाम को जब नवीन घर आया तो किरण के कुछ कहने से पहले ही उसकी मां ने उसे निर्मला के फोन और पैसों की डिमांड के बारे में बताते हुए चेतावनी दी खबरदार बेटा जो उसे ₹1 भी दिया। यह गरीब लोग किसी के सगे नहीं होते। पैसे ऐंठने का तरीका है यह उसका।।
अपनी मां की बात सुन नवीन संयत स्वर में बोला
मम्मी, कौन कितना सगा है और कौन कितना अपना यह तो बुरा वक्त बताता है और निर्मल आंटी ने ऐसे बुरे वक्त में हमारी मदद की। जब सगों ने मुंह मोड़ लिया। उन्हें रुपयों का लालच होता तो वह मुन्ना के जन्म के समय और किरण की सेवा के समय हमसे मांग लेती लेकिन नहीं! उसने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि अपनी जान दांव पर लगाकर आपकी बहू की सेवा पानी की।
एक डेढ़ लाख तो बहुत छोटी रकम है। अगर वह मुझे अपनी बेटी की शादी का पूरा खर्चा देने के लिए भी कहती तो मैं खुशी-खुशी दे देता।
क्योंकि निर्मला आंटी ने जो किया उसका मूल्य रूपए पैसे से तो कभी चुकाया ही नहीं जा सकता।
अपने बेटे की बात सुन ललिता जी को सांप सूंघ गया वह चाह कर भी कुछ बोल ना पाई। कहती भी क्या!! उनके बेटे ने कम शब्दों में उन्हें सच्चाई का आईना जो दिखा दिया था।
उधर किरण खुश थी। अपने पति के मानवता भरे फैसले को सुनकर।
दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना। पढ़ कर अपने अमूल्य विचार कमेंट कर जरूर बताएं।
#सहारा
सरोज प्रजापति
स्वरचित