तुम्हारे सहारे की नहीं ,साथ की दरकार थी। – स्मिता सिंह चौहान

रागिनी अस्पताल की खिड़की से बाहर एकटक निहार रही थी,जैसे इंतजार कर रही हो किसी का।तभी कमरे का दरवाजा खुला और राजीव हाथ में कुछ फल और दवायें लेकर अंदर दाखिल हुआ “पता है रागिनी डाक्टर कह रहा था ,तुम रिकवर कर रही हो ।जल्द ही घर जा पाओगी ,फिर हम खूब मजे करेंगे।अभी तुम ये दवा लो,फिर मुझे बच्चों को भी फोन करना है इस खबर के लिए। “

रागिनी दवा खाते हुए, राजीव की आंखो में कुछ ढूंढ रही थी,शायद उस  सच की गवाही, जो  राजीव की जुबान का साथ दे नहीं रही थी।उसने राजीव का हाथ पकड़कर पास में बैठने का इशारा किया।”हां बोलो,कुछ कहना है,बताओ और क्या पेश करूं अपनी बेगम की खिदमत में।”राजीव रागिनी को हंसाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था

“नहीं तुम जितना कर रहे हो वो मेरे लिए काफी है।पिछले छः महीनों मे तुमने जितना किया है,वो तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती।”एक हल्की सी मुस्कान के साथ राजीव के हाथ को सहलाने लगती है।”मैं जानती हूं,कैंसर की जिस स्टेज पर मैं हूं ,मैं घर नहीं जा पाऊंगी।तुम भी जानते हो,मौत के इतने पास पहुंच कर मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूं।”राजीव ने रागिनी को चुप कराने के लिए उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया।”नहीं यार ऐसा मत कहों, हमने सात जन्म साथ रहने का वादा किया है,ऐसे कैसे?”राजीव का गला रुंध सा गया।

“पागल हो क्या?तुम्हारे साथ सात जन्म कौन रहेगा?एक जन्म में ही हाथ जोड़ लिए मैने। “रागिनी की यह बात सुनकर राजीव मुस्कुराकर रागिनी की तरफ देखने लगा,लेकिन रागिनी के चेहरे पर जैसे कोई सच अंगड़ाई लेकर राजीव की तरफ देख रहा था।”राजीव मैं ये नहीं कहूंगी कि तुम एक अच्छे पति नहीं हो,तुम बहुत अच्छे हो।तुमने  मेरी गृहस्थी,मेरे बच्चों को वो सब दिया जो एक आदमी देता है।लेकिन कुछ ऐसा है जिसकी फांस लिये मैं इस दुनिया से लेेकर नहीं जाना चाहती।पता नहीं क्यों?वक्त के साथ सब ठीक हो तो गया हमारे बीच, दुनिया की नजरों में हम बैस्ट कपल हैं आज भी।




लेकिन मेरी जिंदगी के 20साल हमारी गृहस्थी को बचाने में चले गये,देखो ना,तुम्हारा वो रूप जो,वक्त के साथ धूमिल हो गया,लेकिन मेरी नजरों में आज भी चमकता है,जब तुम बात बात पर मुझे अपने परिवार के सामने अपमानित करते थे,जब बात बात पर हाथ छोड़ना तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी,जब मेरी गृहस्थी के निर्णय तुम्हारी बहनें लेती थी,जब तुम्हारे बहनोई मुझे कुछ भी ताना देकर चले जाते थे।तुम्हारे सपनों के लिए मैने अपनी ख्वाहिशों ,सपनों,इच्छाओ की आहुति दी लेकिन तुमने उसका मोल समझने के बजाय मेरे ही स्वाभिमान की आहुति दे दी।मेरे चुप रहने की एक ही वजह थी मेरे बच्चे।ऐसा नहीं था कि मैं अपने लिए लड़ नहीं सकती थी,लेकिन उस कश्मकश के माहौल में मेरे बच्चे पिस जाते ,और उनका वक्त और हालात दोनों खराब हो जाते।”रागिनी नम आंखो से अपनी बात को सहेजनें की कोशिश करती।

 

“लेकिन अब तुम यह.सब क्यों कह रही हो?अब तो वो वक्त भी चला गया,और मैं भी बदल गया हूं।अब इन बातों को सोचकर अपनी सेहत क्यों खराब कर रही हो।”राजीव ने रागिनी के सर पर अपना हाथ फेरा।

 

“राजीव कुछ घाव ऐसे होते है ,जो आपकी आत्मा पर लग जाते है ,वो मिटते ही नहीं।आज मैं सोचती हूं ,कि जो हालत मेरी है उसके जिम्मेदार कहीं ना कही तुम.भी हो।तुम्हारी उपेक्षा,जिसने मेरी कद्र ही नहीं कि।तुम्हारे आर्थिक सहारे कि नहीं ,भावनात्मक साथ की दरकार थी।देखा जाये तो जिस तरह.से मैने तुम्हारा परिवार संभाला,बिना शिकवा शिकायत किये बगैर ,तुमने तो मुझे सम्मान से भर देना चाहिए था।लेकिन तुमने तो ना मेरे शरीर की कद्र कि ना मेरी आत्मा की अच्छाई कि।रही बात तुम्हारे बदलने कि वो भी तो तब हुआ जब मां बाबूजी चले गये,बहनों का व्यवहार तुम्हारे लिए भी वही हो गया जो मेरे लिए था।तुम बदले नहीं राजीव, बस तुम्हे अब कोई दिखता नहीं अपने आस पास, निभाने वाला ।मैं तुम्हारी जरूरत रही हमेशा तब परिवार की वजह से और अब उनके ना होने की वजह से।मेरे मन में पता नहीं क्यों एक कृतघ्नता से भर जाता है तुम्हारे लिए, जबकि तुमने पिछले छह महीने से जो कुछ मेरे लिए किया उसका कृतज्ञ होना चाहिए मैने।”रागिनी की बातें निःशब्द होकर राजीव सुन रहा था,तभी बीच में टोकते हुए, धीमी आवाज में पूछा “रागिनी मैं मानता हूं ,मैने तुम्हारा मन बहुत दुखाया,लेकिन मैं कोशिश कर रहा हूं ना कि अब हमारे पास जितना भी वक्त है वो एक दूसरे के साथ हंसी खुशी बिताये।बिना शिकवे शिकायत के।”




“ह्म्म्म्म….वक्त ही तो चला गया राजीव, गिला…. शिकवे शिकायत का नहीं है,वो तो चलते रहते है पति पत्नी मे, शिकायत इस बात की है कि ,क्यों एक पति के लिए पत्नी का औहदा,उसके  परिवार की धूरी से ऊपर नहीं आ पाता?क्यों एक पत्नी अपने पति के लिए अपने परिवार की धूरी छोड़ देती है?क्यों एक पति अपनी मां और बहन समकक्ष मान सम्मान अपनी पत्नी को देने में डरता है?

क्यो एक पत्नी अपने भाई, पिता के सम्मान से ज्यादा अपने पति के सम्मान को वरीयता देती है?समर्पण सिर्फ एक औरत का ही भाग्य क्यों बन जाता है पुरूष का क्यों नहीं?”कहते हुए रागिनी की आंखे छलक उठती है।राजीव उसके आंसू पोछते हुए,उसे गले लगाता है,सिसकियों की गति मध्यम पढने पर,उसका सर तकिये पर रखकर, पानी का जग लेने दूसरी टेबल की तरफ मुड़ता है,”रागिनी मुझे माफ कर दो,मैं वादा करता हूं एक बार तुम ठीक हो जाओ मैं पश्चाताप करूंगा ,तुम्हारे प्रति अपने हर उपेक्षित व्यवहार का,तुम जो चाहती हो जैसा चाहती हो वैसा करना।

अगर मुझ पर गुस्सा आये ना ,तो तुम.भी मुझे मारना।”राजीव बड़बड़ाते हुए पानी का ग्लास लिये रागिनी की तरफ बढता है,रागिनी शांत चेहरे के साथ आंखे बंद किये बहुत सुकुन में लग रही थी।”रागिनी पानी….सो गयी क्या?”कहते हुए राजीव ने उसके सर पर हाथ फेरा ,रागिनी सुकुन भरी नींद की छांव में ,एक और जीवन यात्रा के लिए निकल गयी ,जैसे वो फांस ही उसे इस जीवन में रोककर रखी हो,लेकिन आज वो निकल चुकी थी।राजीव को पश्चाताप की आग में झोंककर।

दोस्तों,एक औरत होने के नाते आप रागिनी के सवालों के उत्तर किस प्रकार देना चाहेंगी।क्या आपको लगता है कि रागिनी जैसे ही कई औरतें अपने जीवन में कोई ना कोई फांस लिए इस दुनियां से विदा होकर चली जाती है,कुछ अनकहे सवालों के साथ।

#सहारा 

आपकी दोस्त,

स्मिता सिंह चौहान,

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

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