जबलपुर के हाई कोर्ट में आज राजेश और सुरेखा की संपत्ति का सेकण्ड अपील की सुनवाई बहस होनी थी । उन दोनों ने ये ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाय हमारा बैंक बेलेंस खाली हो जाय मगर हम अपनी संपत्ति को उस धोखेबाज से हासिल कर के ही रहेंगे।
अदालत के बाहर दोनों पति पत्नी अपनें केश की सुनवाई बहस का इंतजार कर रहे थे । कुछ घंटे के बाद उनके मामले का नंबर आया ….जज साहिबा की नजर अदालत के अंदर जैसे ही राजेश एवं सुरेखा के ऊपर पड़ी , वे सक्ते में आ गए !!! ये मैं क्या देख रही हूँ! ये तो मेरे परम पूज्य माता-पिता हैं।
पांच-सात साल की उम्र के बच्चे में बचपन की बातें याद रखनें की क्षमता आ जाती है। अत: जज मीना कुमार को अपनी बचपन की सारी बातें हू ब हू याद आनें लगी….किस तरह उसकी माँ के लाख समझाने मनाने के बावजूद उसके पिताजी ने उसे यह जानकर अनाथालय में छोड़ दिया कि यह बच्चा अपूर्ण है, यह आगे चलकर किन्नर हो जाएगा । उसे पता था कि इस तरह मुझे अपनें से अलग करके मेंरे माता-पिता दोनों को बेहद तकलीफ हो रही थी मगर समाज में ऐसे बच्चे को यानिकि किन्नर को नहीं रख सकते । माता-पिता की मजबूरी का सम्मान था उसके दिलो दिमाग में तभी तो माता-पिता को पहचानते ही उन्होंने उनके केश फाइल का स्पेशल तरीके से स्टडी किए तथा उनके केश की सुनवाई अगले तारीख तक के लिए आगे बढा दिए ।
पांच-सात साल की उम्र के बच्चे अगर अपनें माता-पिता को बीसो साल बाद भी देखेंगे तब पहचान जाएंगे मगर माता-पिता बचपन के बिछड़े हुए बच्चे को वयस्क होने के बाद अचानक मुलाकात होंने से पहचान पाएं ये अधिकांशत: संभव नहीं होता है ।
कोर्ट की कार्रवाई पूरी होने के बाद सभी अपनें अपनें गंतव्य की ओर रवाना हो रहे थे। राजेश और सुरेखा भी निराश मन से अपनी कार पर बैठने ही वाले थे कि बगल में सनसनाती फार्चून कार आकर रूक गई ; ड्राइविंग सीट पर बैठने वाले ने आवाज़ दी श्रीमान राजेश जी ! अपने नाम का संबोधन सुनकर राजेश आश्चर्यजनक रूप से बगल की ओर देखा। अरे जज साहिबा आप !
वह तुरंत अपनी गाड़ी से उतर गया । जी घबराइए नहीं, प्लीज आप मुझे फाॅलो करिए! इस तरह राजेश की गाडी जज साहिबा मीना कुमार के घर पहुंच गई । गेट पर दरबान खड़ा था उसने तुरंत गेट खोता दोनों गाड़ी अंदर की ओर चली गई। फिर राजेश और सुरेखा को मीना कुमार ने बड़े सत्कार के साथ अपनें ड्राइंग रूम में बैठाया थोड़ी फार्मेलिटि के बाद सहज होते हुए उसने पूछा-क्या आप लोग मुझे पहचान रहे हैं, उसे मालूम था आगन्तुक लोग उसे बिलकुल ही नहीं पहचान रहे हैं फिर भी बात आगे बढाने के लिए ऐसा पूछने लगी ।
नहीं जज साहिबा! आप कोर्ट के जज हैं इससे अतिरिक्त जानकारी हमें नहीं है आपके बारे मैं। ठीक, कोई बात नहीं। वह सस्पेंस बरकरार रखते हुए कहने लगी-क्या मामला लेकर आए हैं आप लोग ? इतना सुनते ही दोनों पति पत्नी एक दुसरे को देखने लगे उन्हें पता नहीं था कि यही उन दोनों की असली संतान है मगर फिर भी उसके घर आनें पर उन्हे अजीब अपनेपन का अहसास हुआ । ऐसा लगा हमें अब हमारी मंजिल मिल गयी। राजेश ने अपनी ब्यथा कहने की शुरूआत की- क्या बताएं बेटी हमने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। ” वो कैसे?
” मीना ने पूछ लिया। हम दोनों पति पत्नी बड़े ही खुशहाल जीवन जी रहे थे हमारा एक बच्चा हुआ, इतना कहकर राजेश की जबान में चुप्पी आ गई , क्या हुआ पूरा बताइए मैं आप लोगों के सभी समस्याओं का समाधान करनें के लिए ही आप लोगो को अपनें घर लाई हूँ। फिर रोते बिलखते उन लोगों ने पूरी बात बताई किस तरह अपने खुद के पैदा किए संतान को किन्नर होने की वज़ह से छोड़ दिया और अपने कजिन के लड़के को उन लोगों ने गोदनामा लेकर अपना सहारा बनाया अपना सारा प्यार, सारा वात्सल्य उसी पर लुटाते रहे लेकिन वह तो पराया था बहलाकर हमारी सारी संपत्ति अपनें नाम करा लिया और हमें छोड़ कर फ़रार हो गया है।
बेटी हमें हमारी संपत्ति दिलाने में मदद करो हम सब कुछ उसी अनाथालय में दे देंगे जहाँ अपनें जिगर के टुकड़े को छोड़ कर आए थे ऐसा कहते-कहते दोनो ही भावविव्हल होकर रोने लगे मीना जो किन्नर थी और उन्ही लोगों की संतान थी जिसे भगवान ने दुबारा मिलाया था रोओ नहीं माँ! इस शब्द संबोधन से दोनों की नज़रें मीना की ओर उठी तो अपलक देखतें रह गए । कहना न होगा कि तीनों एक दुसरे को पहचान गए तब पवित्र अश्रुगंगा ऐसे बहनें लगी मानो संगम स्थली यहीं आ गई हो । मीना किन्नर थी मगर सुशिक्षित , कठोर संयमित ब्यक्तित्व की घनी थी । खुद को संभालिए माँ पिताजी मैं हूँ न सब ठीक हो जाएगा। कानून के हाथ इतनें लंबे होते हैं कि कोई भी सातिर अपराधी बच नहीं सकता । अपनें दोनों कंधों पर बिलखते अपनें माता-पिता को मीना ने कठोरता के साथ संभाला । अपनी संतान ही असली सहारा होता है बेटी हमें माफ कर दो …….। फिर कानून की सहायता से उस धोखे बाज को हवालात में पहुँचाया गया और राजेश और सुरेखा अपनी संतान के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन करनें लगे ।
।।इति।।
-गोमती सिंह
कोरबा,छत्तीसगढ़