जिस सरकारी नौकरी के लिए दीया दिन-रात मेहनत करती थी। जी-जान लगाकर पढ़ाई करती थी, वही सरकारी नौकरी के लिए ज्वाइनिंग लेटर आ चुका है. पर उसका रो-रोकर बुरा हाल है। वह नौकरी करने को तैयार नहीं। सास और ननद दोनों समझा रही हैं, मगर वो समझने को तैयार नहीं। वह बार-बार अधीर हो रही है। हो भी क्यों नहीं? दो महीने पहले तक एक हंसती-खेलती दुनिया पलभर में उजड़ गई, जीवन वीरान हो गया।
कहां ज्यादा दिन हुआ था?
अभी 4 साल पहले ही बैंकिंग परीक्षा के दौरान उसकी मुलाकात शिखर से हुई थी। धीरे-धीरे यह मुलाकात प्यार में बदली और फिर शादी। शादी के बाद दीया और शिखर साथ में परीक्षा की तैयारी करने लगे। दोनों ने साथ में ही बैंकिंग का एग्जाम दिया और प्री क्लियर कर लिया। अब दोनों लिखित परीक्षा की तैयारी करने लगे। तैयारी के दौरान ही पता चला कि दीया मां बनने वाली है,
यह खबर सुनते ही सास तो खुशी से उछल पड़ी, बहू की बलायें लेने लगी। तब दीया ने कहा, “लेकिन मां जी! मैं, अभी बच्चा नहीं लेना चाहती। सोच रही हूं पहले कोई नौकरी लग जाए फिर बच्चे कर लूंगी।” दीया की बातों का शिखर ने भी हां-में-हां मिलाया।
तब दीया की सास ने कहा, “बहू! तुम तो पढ़ने में होशियार हो। बच्चा होने के बाद भी तुम परीक्षा दे सकती हो और नौकरी कर सकती हो। अभी यह बच्चा होने दो। समय से मां बन जाना ही अच्छा रहता है। देख रही हो अपनी ननंद को शुरुआत में बच्चा लिया नहीं अब कितना परेशान हो रही है। अब हो ही नहीं रहा।”
दीया को सास की बात सही लगी और उसने बैंकिंग की पढ़ाई करना छोड़ दी। अब शिखर और मेहनत करके पढ़ाई करने लगा। उसकी मेहनत रंग लाई और वह सरकारी बैंक में मैनेजर के पोस्ट पर नियुक्त हुआ। इधर दीया भी एक सुंदर से बेटे की मां बन गई। बेटा जब 2 साल का हो गया तो वो फिर बैंकिंग की तैयारी करने लगी और कोचिंग जॉइन कर ली। बच्चे की देखभाल सास करने लगी।
अभी कुछ ही महीने हुआ था कोचिंग जॉइन करके कि कोरोना की वजह से लॉकडाउन हो गया और सब कुछ बंद। फिर वह घर पर ही पति की मदद से तैयारी करने लगी। शिखर का बैंक की ड्यूटी लॉकडाउन में भी जारी रही। वह बहुत ही सुरक्षित तरीके से बैंक जाता और आता। फिर भी एक दिन शिखर शाम को बहूत तेज बुखार और सर्दी से कांपते हुए घर आए। डॉक्टर के पास जाने पर पता चला कि उसे कोरोना हो गया है। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया और इन तीनों की भी जांच की गई तो पता चला कि पत्नी और 2 साल के बेटे को भी कोरोना हो गया है। यह खबर सुनते ही शिखर का दम फूलने लगा, पसीने से तर-बतर हो गया। जब तक डॉक्टर आए उससे पहले ही उसकी सांसे थम चुकी थी।
डॉक्टर ने कहा इसकी मृत्यु कोरोना वायरस से नहीं हार्ट अटैक से हुई है। अपनी पत्नी और बच्चे को कोरोना होने वाली बात बर्दाश्त नहीं कर पाया। यह खबर सुनकर तो शिखर की मां और पत्नी दोनों बेसुध हो गईं। दोनों अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए शिखर का। जब दीया हॉस्पिटल से घर आई तब शिखर के कुछ करीबी दोस्तों ने कहा, “दीया! आप हिम्मत से काम लीजिए और सारी सरकारी प्रक्रिया पूरी करें।
आपको शिखर की अनुकंपा पर नौकरी मिल जाएगी। देर करेंगे तो परेशानी ज्यादा होगी।” फिर थोड़ा भाग-दौड़ करने के बाद बैंक में दीया को पति के अनुकंपा पर क्लर्क का पोस्ट दिया गया। उसी का जॉइनिंग लेटर आया हुआ है।
लेटर देखकर दीया रोए जा रही है और सास लगातार उसे समझा रही है। तब दीया ने कहा, “मां! आपको नौकरी की पड़ी है, क्या आपको मेरा मेरा दर्द नहीं दिख रहा? मैं, यह नौकरी नहीं करूंगी। मैं आज ही बेटे को लेकर मायके जा रही हूं और पूरा जिंदगी वही बिता दूंगी।” यह सुनते ही दीया कि सास ने कहा, “बहू! मुझसे ज्यादा तुम्हारा दर्द और कौन समझेगा? तुमने पति खोया है तो क्या मैंने अपना बेटा नहीं खोया? अरे बहू! दुख सहने की तो अब आदत हो गई है। 5 साल का बेटा और 1 साल की बेटी थी तब पति को खो दिया और अब बेटे को। जहां इस उम्र में मेरी मौत आनी चाहिए वहीं मैं अजर-अमर बनी हुई हूं और मेरे सामने बेटे की मृत्यु हो गई।
अब तो मोहल्ले के लोग भी ताना मार रहे हैं कि मैंने जरूर कुछ बुरे कर्म किए हैं जिसका फल मिल रहा है। अब तो सच में लगता है कि मैंने जरूर कुछ बुरे कर्म किए हैं जिसका फल आज भुगत रही हूं। बहू! तुम मायके चली जाओगी पर मैं कहां जाऊंगी, मेरा तो मायका भी खो चुका है। बेटी के यहां भी नहीं जा सकती। जो दामाद अपने मां-बाप की सेवा नहीं कर रहा वो मेरी क्या करेगा? बहू! अब तुम ही मेरी एक और आखिरी आस हो, तुम ही एक सहारा हो। तुम यहीं मेरे साथ रहो और तुमसे जो भी हो, जैसे भी हो मेरे इस जीवन रूपी नैया का भवसागर से पार लगा दो।” इतना बोल वह रोने लगीं।
सास की बात सुनते ही दीया की हिम्मत जगने लगी थी। मन में उत्साह भरने लगा था। मां सही तो कह रही है। मैंने अपना पति खोया है तो उन्होंने भी अपना बेटा खोया है। फिर वो तो सालों से दर्द सह रही है। पहले पति के खोने का दर्द और अब बेटे को खोने का दर्द। उसने सास के आंसू पोंछे और लेटर लेकर अपने कमरे में चली गई। सास भी अपने पोते को लेकर आंगन के बाहर निकल गईं।
दीया अगले दिन सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम निपटा लिया और समय से तैयार हो गई नौकरी जॉइन करने के लिए। तब उसकी सास ने हाथ में टिफिन का डिब्बा थमाते हुए कहा, “बहू! समय से खा लेना।” इतना बोलते ही उसकी आंखें छलक गईं। दीया ने सास की आंखें पोंछते हुए कहा, “नहीं मां! अब मत रोना। जितना रोना था हमने रो लिया। जो खोना था हमने खो दिया पर अब कुछ नहीं खोना है अब तो सिर्फ पाना है। मां! आप मुझे यूं ही हिम्मत देती रहना क्योंकि अब मेरे और मेरे बेटे के लिए अब आप ही एक सहारा हैं।।” बोल उसने सास के पैर छुए, बेटे को प्यार किया और बैग लेकर झट से आंगन से निकल गई। दीया को जाते देख सास को ऐसा लगा मानो उसने कुछ खोया ही नहीं। बिल्कुल पहले वाली दीया है, जिसमें जोश और उत्साह कूट-कूटकर भरा था। उसके जाने के बाद सास अपने पोते को लेकर आंगन में एक गहरी सांस लेकर बैठ गई।
#सहारा
रत्ना साहू