जादू की झप्पी – आरती झा आद्या

मम्मी जल्दी तैयार हो जाइए, आपके फेवरेट हीरो रणवीर कपूर की मूवी टिकट लाई हूं… रितेश घर में घुसते ही जोर से बोलता है।

रम्या मौसी..मम्मी नहीं दिख रही हैं.. घर की सहायिका रम्या से रितेश पूछता है।

बेटा वो सुगंधा बिटिया की तस्वीर गोद में लिए तुम्हारे जाने के बाद से ही रो रही हैं.. रम्या अपने आंसू पोछती हुई कहती है।

ओह हो मम्मी… आप यहां बैठी हैं। देखो सुगंधा तुम्हारे जाते ही मम्मी कितनी बदल गई हैं। आज हमारी शादी की पांचवीं सालगिरह है और मम्मी ने हमारे लिए कुछ स्पेशल नहीं किया है। कोई बात नहीं सुगंधा मैं भी कम नहीं, ये देखो मूवी की टिकट्स। मैं और मम्मी मूवी देखेंगे, बाहर डिनर करेंगे और गिफ्ट भी लूंगा… रितेश अपने आंसू छुपाता अपनी सासू मां शारदा के गले में लिपट गया और दोनों सास दामाद एक दूसरे को अश्रुओं से भिगोने लगे।

मम्मी बहुत हो गया, देखिए हमारे रोने से सुगंधा भी उदास हो गई। सुगंधा को ये रोना धोना बिल्कुल पसंद नहीं। कितनी अदा से कहती था रितेश आई हेट टियर्स, पोंछ दो इनको और हर जगह जादू की झप्पी फैला दो … सुगंधा की तस्वीर दीवार पर लगाता रितेश मुस्कुराता हुआ कहता है।

सुनो ना बेटा..मूवी रहने दे, खाने के लिए कुछ मंगा लेते हैं या रम्या से कह देती हूं, कुछ बना देगी… मेरी बाहर जाने की इच्छा नहीं है… शारदा रितेश से कहती है।

मतलब बेटे की इच्छा कुछ नहीं। ठीक ही है, बनिए आप भी दामाद की इच्छा न समझने वाली सास… मुंह बना आँखें मटका कर रितेश कहता है।

नहीं नहीं मुझे ऐसी सास नहीं बनना… चलो तैयार हुआ जाय… खड़ी होती हुई शारदा कहती है।

मजा आया ना मम्मी..मॉल में ही डिनर किया जाए या बाहर कहीं… रितेश पूछता है।

वो ढाबा है ना, जिसके पराठे तुम्हें पसंद हैं ना बेटा…वही चलें क्या… शारदा कहती है।



सुगंधा को वहां के पराठे कितने पसंद थे… बोलता हुआ रितेश उदास हो गया।

अब तुम सेडिया गए… शारदा रितेश को खुश करने के लिए कहती है।

नहीं नहीं मम्मी..बस यूं ही…आप चलिए मैं पार्किंग से गाड़ी निकालती हूं.. रितेश कहता है।

यम्मी पराठे… रितेश पराठा का पहला निवाला तोड़ शारदा के मुंह में रखता हुआ कहता है।

सच में यहां के पराठे मुंह में जाकर एकदम घुल जाते हैं… पता नहीं क्या मिलाते हैं इसमें… शारदा खाती हुई कहती है।

क्या डालते हो भाई पराठे में…इतने मजेदार होते हैं कि क्या कहे… पेमेंट करते हुए रितेश उसके मालिक से पूछता है।

प्यार डालता हूं साहब.. मालिक भी हंस कर कहता है।

रितेश देखो गाड़ी के पास कोई बूढ़ी बेहोश है… शारदा चीखती हुई कहती है।

रितेश और ढाबे का मालिक दौड़ते हुए आते हैं।

ओह ये बूढ़ी माई… कई दिनों बाद दिखी वो भी इस हालत में… ढाबे का मालिक उसे देख कहता है।

कौन है ये… रितेश पूछता है।

दुखियारी है साहब.. एक दिन एक गाड़ी झाड़ियों में इसे उतार कर चली गई थी… हमने पुलिस को भी सूचित किया , पर ये यहां से जाने के लिए राजी भी नहीं हुई और अपना नाम पता बताने में भी असमर्थ थी..यही खाती रहती थी। एक दिन अचानक कहीं चली गई, आज दिखी है…रितेश के इशारे पर सहारा देकर बूढ़ी को उठा कर गाड़ी में लिटाता हुआ ढाबा मालिक कहता है।

बूढ़ी महिला को हॉस्पिटल में एडमिट कर और डॉक्टर से बात कर सास और दामाद सुबह आने का सोच घर की रवाना हो गए।



कैसी दुनिया होती जा रही है। पता नहीं कौन है वो और कौन छोड़ गया ऐसे… शारदा दुखी मन से कहती है।

हूं…शायद यही घोर कलयुग है… रितेश कहता है।

बेटा क्या तुम भी वही सोच रहे हो, जो मैं सोच रही हूं… गाड़ी की निस्ब्धता तोड़ती हुई हुआ शारदा रितेश से पूछती है।

शायद मम्मी..आप क्या सोच रही हैं, ये तो बताइए… रितेश शारदा की तरफ देख पूछता है।

बेटा इतना बड़ा घर है हमारा, मैं एक ही कमरे में रहती हूं..अगर इन जैसे बेसहारों को थोड़ा भी सहारा दे सकूं, बस यही सोच रही थी… शारदा बताती है।

एग्जेक्टली मम्मी…मैं भी यही सोच रहा था…जिस तरह सुगंधा जादू की झप्पी देकर सबका मूड ठीक कर देती थी, क्यूं ना हम फिर से इसे शुरू करें.. मैंने नाम भी सोच लिया है… सुगंधा की जादू झप्पी होम… रितेश के चेहरे पर सुगंधा के प्रेम की तस्वीर स्पष्ट दिख रही थी।

बेटा ये सब तो ठीक है, तुम्हारे मम्मी पापा को भी तो तुम्हारी जरूरत है…शारदा कहती है।

उसकी चिंता आप ना करें मम्मी…अगर हर दो चार दिन में मैं आपके पास ना आऊं तो मां नाराज हो जाती है। मां अपने एनजीओ के काम में व्यस्त रहती हैं और पापा बिजनेस में…किसी को कोई दिक्कत नहीं है… आप तीनों मेरे और मैं आप तीनों का सहारा बन सकता हूं…रितेश आश्वस्त करता हुआ कहता है।

उनकी परवरिश ही है कि सुगंधा के जाने के बाद भी तुम एक बेटे की तरह मेरे साथ हर पल हो… शारदा कहती है।

सुगंधा जो संबंध बांध गई, वो टूट नहीं सकता है और अब हम इस पर कोई बात नहीं करेंगे। अब जादू झप्पी पर कंसंट्रेट करेंगे.. रितेश गाड़ी चलाता हुआ कहता है।

ठीक है बेटा,लेकिन मैं इसमें चाहती हूं कि जो बेसहारा हैं, उन्हें तो जादू झप्पी के साथ साथ सहारा भी मिलेगा। लेकिन दुनिया में कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास किसी चीज की कमी नहीं है, कमी है तो सिर्फ जादू की झप्पी की, प्यार भरे स्पर्श की, मां के आंचल की, उनकी जिंदगी से ममता मिसिंग होती है। ऐसे लोगों के लिए भी हमारे दरवाजे खुले रहेंगे, हम उन्हें भी भावना का सहारा देंगे…कहती हुई शारदा रितेश की ओर देखने लगती है।

मम्मी सच सुगंधा इतनी सोशल क्यूं थी। किसी के चेहरे पर दुख कैसे पढ़ लेती थी, आज समझ आया… आप दोनों एक दूसरे के प्रतिरूप हैं… रितेश कहता है।

बिल्कुल मम्मी आपकी बात से सहमत हूं मैं… सौ गमों की इस दवा जादू की झप्पी…सुगंधा की जादू झप्पी होम हर इंसान का सहारा बनेगी और उनसे हमें आगे जिंदगी जीने का सहारा मिलेगा…रितेश मुस्कुरा कर कहता है।

 

आरती झा आद्या

दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!