बड़ा हुआ तो क्या हुआ…? – पायल माहेश्वरी

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

खजूर के पेड़ की भाँति बड़े होने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि इससे न तो यात्रियों को छाया मिलती है, न इसके फल आसानी से तोड़े जा सकते हैं। अर्थात् बड़प्पन के प्रदर्शन मात्र से किसी का लाभ नहीं होता।

“मम्मी मैंने हिन्दी की कक्षा में यह दोहा पढ़ा हैं खजूर तो हम हर साल सर्दियों में खाते हैं फिर इसमें फल लागे अति दूर क्यों लिखा गया हैं “आदित्य ने अपनी माँ सोनाली से बड़ी उत्सुकता से पूछा।

” बेटे इसका मतलब यह हैं की खजूर का पेड़ बहुत उँचा होता हैं और घना भी नहीं होता हैं जिससे ना तो कोई पक्षी उसपर बैठ सकता हैं और उसके फल बड़ी कठिनाई से मिलते हैं, ना उसकी छाया किसी को मिलती हैं ” सोनाली ने कहा।

” उसी प्रकार आपके धनवान होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता हैं अगर आप किसी जरूरतमंद की सहायता ना कर पाओ,संकट के समय किसी का सहारा नहीं बन पाओ ” सोनाली ने अर्थ और विस्तार से समझाया।

आदित्य सोनाली के जवाब से सन्तुष्ट नहीं था और उसका बालमन अपने तरीके से इस दोहे का अर्थ निकालने लगा था।

कुछ दिन बाद सोनाली के पड़ोस में शर्मीला के बेटे का जन्मदिन था शर्मीला का बेटा अनमोल आदित्य की कक्षा में पढ़ता था और दोनों परिवारों के बीच अच्छी जान-पहचान थी।

शर्मीला के पति शहर के जाने-माने व्यवसायी थे उनका रूतबा व समृद्धि दूर-दूर तक फैला हुआ था।

जन्मदिन समारोह का आयोजन भव्य रूप से किया गया था, सोनाली ने शर्मीला की सहायता करने के लिए थोड़ा पहले जाना उचित समझा और वह आदित्य को लेकर शर्मीला के घर की और बढ़ चली थी और वहां जाने पर उसने पाया की शर्मीला चिल्ला रही थी। 

” पाँच हजार रुपये!! मैं तुम्हें पाँच रूपये भी नहीं देने वाली हूँ ” यह आवाज शर्मीला की थी वो अपनी गृह सहायिका शान्ति से बात कर रही थी।



” मैडमजी!! मेरा इकलौता बेटा अस्पताल में भर्ती हैं उसे तपेदिक बुखार हुआ हैं अगर समय पर इलाज नहीं मिला तो वो मर जाएगा, आप अभी रूपये दे दो बाद में पगार से काट लेना मैंने इतने साल यहाँ काम किया हैं मुझ पर थोड़ा तो विश्वास करों ” शान्ति गिडगिडा रही थी।

” एक बार मना कर दिया तुम्हें समझ नहीं आता ,तुम किसी ना किसी बहाने से एडवांस मांगती हो और दूसरा काम मिलने पर पहला काम छोड़ देती हो, तुमपर विश्वास करना सबसे बड़ी भूल हैं ” उसे झिड़क कर शर्मीला ने  सजावट करने वाले को सात हजार का भुगतान किया।

शान्ति कातर निगाहों से उन रूपयो को देख रही थी और वह चुपचाप उठकर वहां से जाने लगी थी।

” मैडम मैं अब आपके यहाँ काम नहीं करना चाहती हूँ ” शान्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी।

शर्मीला को उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ उसने बेपरवाही वाला मुँह बनाया।

पाँच हजार रुपये इतनी बड़ी राशि तो नहीं हैं, और शांति गरीब जरूर हैं पर बेईमान नहीं हैं, आज शर्मीला का असली स्वरूप सोनाली के सामने आ गया, आदित्य भी अपने बालमन में शर्मीला के स्वभाव का विश्लेषण करने लग गया।

कुछ सोचते हुए सोनाली शर्मीला के घर में ना जाकर शान्ति के पीछे-पीछे भागी साथ में आदित्य भी था।

सोनाली रूपये देकर शान्ति की सहायता करना चाहती थी पर बाहर सड़क का दृश्य देखकर वह चौंककर रूक गयी।

शान्ति और सजावट करने वाला लड़का आपस में वार्तालाप कर रहें थे। 

” दीदी !! यह पाँच हजार रुपये रखो और अपने बेटे का इलाज करवाओ ” सजावट करने वाला लड़का शान्ति को पाँच हजार रुपये दे रहा था।

“भाई!! मैं आपको जानती भी नहीं हूँ और आपने मुझ पर विश्वास कर लिया?” शान्ति ने कहा।



” दीदी !! एक रिश्ता इंसानियत का ईश्वर ने हम सब के बीच बनाया हैं और उसी के नाते मैं आपको यह रूपये दे रहा हूँ और आप  झूठ नहीं बोल रही हैं यह आपके चेहरे पर लिखा हैं ” वह लड़का बोला।

जैसे डूबते हुए को तिनके का सहारा मिला, शान्ति की आखों में आँसू थे और एक माँ के ह्रदय से ढेरों आशीर्वाद निकल रहे थे। 

” शान्ति !! मैंने सब सुन लिया हैं मेरे ड्राईवर को लेकर जाओ और अपने बेटे की जान बचाओ,ज्यादा रूपये लगे तो चिंता मत करना मुझे सूचित कर देना ” सोनाली ने कहा।

शान्ति कृतज्ञता भरी आखों से सोनाली को देखने लगी और अस्पताल की और चल पड़ी। 

” भाई !! तुम्हारा तो बड़ा नुकसान हो गया हैं ” सोनाली अब सजावट वाले लड़के से बोली।

” मैडमजी !! मेरी सजावट का बिल तो सिर्फ दो हजार ही था पर मुझे पता था की यह बड़े लोग दिखावे के नाम पर मोलभाव नहीं करते हैं और मेरी धोखाधड़ी से एक बच्चे की जान बच रही हैं तो ईश्वर भी मुझे माफ करेंगे ” सजावट वाला लड़का शरारत भरी आवाज में बोला।

सोनाली सब जानकर हंसने लगी उसने आदित्य को यह बात यहाँ तक ही सीमित रखने के लिए सोचा पर यहाँ तो आदित्य किसी गहन सोच में डूबा था।

” क्या सोच रहे हो आदित्य, यह बात अपने मित्र अनमोल को मत बताना बेटा नहीं तो गरीब शांति पर दोषारोपण होगा?” सोनाली ने आदित्य को समझाया।

” मम्मी !! शर्मीला आन्टी खजूर का पेड़ हैं जो धनवान होने के बाद भी किसी की मदद नहीं करती हैं ” आदित्य आज दोहे का सही अर्थ समझ गया था।

कितनी सहजता से आदित्य ने अपने मन के भाव दर्शा दिए थे आज वो सही अर्थों में सहारे का मतलब समझ गया था।

सोनाली ने सोचा वह कभी भी अपने बच्चे के सामने गलत उदाहरण पेश नहीं करेगी।

सखियों कहानी के मर्म को समझाने के लिए कबीरदासजी के उपरोक्त दोहे का उपयोग किया हैं।

दोहा व अर्थ स्वरचित नहीं हैं पर सिर्फ कहानी का उद्देश्य समझाने हेतु प्रयोग किया हैं किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

#सहारा

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं

धन्यवाद।

 

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