“अरे अंजू !! यह तुम क्या कर रही हो…?माना कि घर में मेहमान आने वाले हैं पर इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम थोड़ा बहुत खाना बनाओगी और बाकी सब बाहर से मंगाओगी…मेरे बेटे पर थोड़ा तो रहम करो…कितनी मेहनत से वह चार पैसे कमाकर घर में लाता है..”रत्ना जी ने अपनी बड़ी बहू से व्यंगात्मक लहजे में कहा
अंजू चुपचाप उनकी बात सुनकर रह गई! गुस्सा तो उसे बहुत आया लेकिन बड़ों को जवाब देना उसके संस्कारों में नहीं था!
रत्ना जी के दो बेटे थे, अमन और शेखर….!
अमन और अंजू की शादी को छह वर्ष बीत चुके थे और उनका 5 साल के बेटा आदि भी था….जिसका कि आज जन्मदिन था!
अंजू ऑनलाइन ट्यूशन क्लासेज लेती थी! ताकि बेटे की देखभाल के साथ घर में कुछ पैसे भी आ जाए!
दूसरी ओर, छोटी बहू स्नेहा स्कूल टीचर थी! रत्ना जी अपने छोटे बेटे- बहू के पास रहकर उनकी 4 वर्षीय बेटी दीया को संभालती थी! लेकिन बीच-बीच में बड़ी बहू अंजू के पास भी कुछ दिनों के लिए रहने आ जाती थी!
लेकिन ना जाने क्यों रत्ना जी , बड़ी बहु अंजु को ज्यादा पसंद नहीं करती थी ! क्योंकि अंजू सिर्फ अपने काम से काम रखती थी!उसे अपनी देवरानी स्नेहा की तरह मीठी मीठी बातें करके अपनी सास से अपना काम निकलवाना नहीं आता था! लेकिन वह दिल से अपनी सासू मां की इज्जत करती थी! फिर भी रत्ना जी की नजर में सिर्फ स्नेहा ही एक अच्छी बहू थी!
पर आज अंजू की तबीयत ठीक नहीं थी! ऑनलाइन क्लासेज के चक्कर में आधा दिन तो वैसे ही निकल चुका था ! इसलिए उसने सोचा कि थोड़ा बहुत खाना वो घर पर बना लेगी और कुछ बाहर से मंगवा लेंगे !
लेकिन रत्नाजी को हमेशा ही यह अपेक्षा रहती थी कि अंजू खुद ही सारा काम करें क्योंकि चाहे उसकी कितनी भी तबीयत खराब हो….वह घर के किसी भी काम में किसी की मदद नहीं लेती थी! इससे सबकी अपेक्षा बढ़ती गई!
शाम को अंजू के पति अमन जैसे ही घर आए तो अंजू रसोई में खाना बनाने में जुटी थी l उधर दूसरी तरफ उनके बेटे आदित्य ने सामान इधर-उधर फैला दिया l
यह देखकर अमन आते ही गुस्से में चिल्ला पड़े, “अंजू!!यह घर की क्या हालत में बनाई हुई है….पूरा दिन करती हो…? क्या इतनी भी सफाई नहीं रखी जा सकती ….घर पर कोई मेहमान आयेगा,तो क्या सोचेगा…”
यह देखकर अंजू चुपचाप सब सामान समेटने लग गई l जब भी अमन ऑफिस से आते तो….उसे पूरा घर साफ सुथरा ही मिलता और उनकी भी अंजू से यही अपेक्षा रहती कि घर पूरी तरह करीने से सजा हुआ हो….भले ही अंजू किसी भी हालत मे हो…!
उधर आदि बार-बार कह रहा था, “मम्मा!! मेरे साथ थोड़ी देर खेलो ना…..आप बस अपना ही काम करते रहते हो…..””
“बेटा !! तुम थोड़ी देर दादी के साथ खेलो ना…..मैं बस थोड़ा सा काम निपटा दूँ फिर तुम्हारे साथ खेलती हूं…””
लेकिन दादी का तो पूरा ध्यान टीवी सीरियल पर ही लगा हुआ थाl
कुछ देर बाद, शेखर और स्नेहा भी आ गए! उनके आते ही रत्ना जी जो कि सुबह से सिर्फ टीवी देख रही थी…..उठकर रसोईघर में गई और उनके लिए चाय बनाकर ले आईं!
यह देखकर अंजू एकदम से चौक गई!
उसे याद आता है कि चाहे वह कितनी ही बीमार हो जाए लेकिन उसकी सासुमाँ ने उसे कभी भी एक गिलास पानी तक नहीं पूछा और यहां देवरानी के आने पर उसके आगे पीछे घूम रही हैं !
खैर,इन सब बातों को नजरअंदाज करके उसने, मेहमानों के आने से पहले सब तैयारियां कर ली लेकिन उसकी सास और देवरानी किसी ने भी उसकी जरा सी भी मदद नहीं की!
सब करते करते वह बुरी तरह से थक गई! मेहमानों की आवभगत में भी वह अकेली ही लगी रही घर के सब लोगों ने मेहमानों के साथ ही खाना लिया! लेकिन एक बात जो अंजू को बहुत चुभ रही थी वो ये कि स्नेहा सब मेहमानों के सामने अंजू की बुराई किये जा रही थी! उसका मन तो हुआ कि अभी उसे जवाब दे दे…लेकिन मेहमानों के सामने वो कोई तमाशा नहीं करना चाहती थी….!
फिर कार्यक्रम खत्म होने के बाद मेहमान चले गए और उसकी सास, पति और देवर देवरानी कमरे में जाकर सो गए !
और अंजू अकेले बैठकर खाना खाने लगी! लेकिन आज उसके मन में कई विचार चल रहे थे!
जब वह शादी करके आयी तब रत्ना जी ने कहा, “देखो बहू!! अब ये तुम्हारा घर है….मैंने अब तक बहुत काम किया…..अब सारी जिम्मेदारी तुम्हारी है ….”
तब से लेकर आज तक अंजू ने अपनी हर जिम्मेदारी बखूबी निभाई !लेकिन कभी उसके लिए तारीफ के दो शब्द किसी के मुंह से नहीं निकले! अगर थोड़ी सी गलती हो जाए ….वहां अमन भी उसे जताए बिना नहीं रहते….
जब देवरानी स्नेहा घर आई….तो उसने शुरू से ही अपने काम से मतलब रखा! बल्कि वह खुद के भी ज्यादातर काम रत्ना जी को सौंप देती थी ….इसलिए सासु माँ उससे ज्यादा अपेक्षा नहीं रखती थी …और खुशी खुशी उसका काम भी कर देती….
सब सोचते सोचते ना जाने कब अंजू की आंख लग गईl दूधवाले ने घंटी बजाई तब उसकी आंख खुली !
सबके लिए चाय बनाने लगी कि तभी रत्ना जी की आवाज आई,
“बड़ी बहू!! शेखर और स्नेहा को जल्दी नाश्ता करने की आदत है और आज तो वैसे भी रविवार है…..थोड़ा लेट उठेंगे…. तब तक तुम अपने बाकी काम निपटा लो और फिर गरमा गरम नाश्ता बना लेना …”
ये सुनकर अंजू ने कहा, “मांजी!!जब मैं ससुराल आती हुँ…तब मुझे यह याद दिलाया जाता है कि यह तो तुम्हारा घर है और घर के कामों की जिम्मेवारी भी मेरे ऊपर डाल दी जाती है…..मेरे वहाँ जाने पर स्नेहा किसी काम को हाथ तक नहीं लगाती और यहां आने पर भी वह किसी काम में मेरी हेल्प नहीं करती ….बल्कि सब लोग मेरे ऊपर हुकुम चलाते है…..हर चीज की अपेक्षा मुझसे ही क्यों की जाती है….? जब जिसके जो मन में आए वह मुझे कुछ भी बोल जाता है …जैसे मेरा घर में कोई अस्तित्व ही नहीं है….वहां जाती हूँ तो आप उल्टा सीधा बोलती हैं लेकिन मैं चुपचाप आपकी हर बात सिर झुका कर सुन लेती हूँ! पर इसका मतलब यह तो नहीं कि स्नेहा भी मुझसे बदतमीजी से बात करें और मैं उसके बातें क्यों सहन करूं….आपको देखकर उसने भी मेरी इज्जत कभी नहीं की….ठीक है….अगर आपको लगता है कि यह मेरा घर है ….तो मैं मेहमानों की तरह आप सबका स्वागत सत्कार करूँगी….लेकिन मेरे ससुराल जाने पर मेरा भी उसी तरह की मानसमान होना चाहिए….जैसे आप अपना और स्नेहा का मुझे चाहते हैं….मैं सारी अपेक्षाओं से मुक्त होना चाहती हूं…..मैं सिर्फ उतना ही करूंगी जितना मुझसे बन पाएगा…..”
आज अंजू खुद को अपेक्षाओं के बोझ से आजाद करके बहुत हल्का महसूस कर रही थी!
रत्ना जी भी बड़ी बहू का यह रूप देख कर सकते में आ गयीं!
दोस्तों !! कई बार हम यह सोच कर कि
” कोई नहीं मैं कर लूंगी”
” ठीक है कुछ दिन की तो बात है”
” मैं नहीं बोलूंगी “
ये सोचकर हम सबके लिए कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं…बिना अपनी सेहत की परवाह किए….. लेकिन हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि क्या सामने वाला भी उन चीजों के लायक है कि नहीं….कई बार लोग हमारी चुप्पी को हमारी कमजोरी समझ लेते हैं…..!
सबकी हमसे इतनी अपेक्षाएं बढ़ जाती है कि एक समय के बाद वो हमें बोझ लगने लग जाती हैं! इसलिए जरूरी है कुछ समय अपने लिए निकाल कर जिंदगी के भरपूर मजे ले लिए जाए ….!!
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धन्यवाद !!
स्वरचित एवम् मौलिक ©®
प्रियंका मुदगिल