“कलयुगी अन्याय  – कविता भड़ाना

अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए सुरेंद्र जी गहरी सोच में थे, चोटों की वजह से पूरा शरीर भयंकर दर्द कर रहा था पर शरीर की चोटों से अधिक उनका मन आहत था।

पांच भाईयो में सबसे छोटे और सबसे अधिक सेहतमंद  सुरेंद्र ने कभी सपने में भी नही सोचा था की उनके सगे भाई ही उनके साथ इतना नीच काम भी कर सकते है….

सुरेंद्र जी की शादी के कुछ समय बाद ही उनके पिता का देहांत हो गया था, उनकी जमीन जायदाद बहुत अधिक थी ,पर पिता की असमय मृत्यु की वजह से कई जगह की जमीनों का बटवारा नही हो पाया था…

बड़े भाईयो को सुरेंद्रजी बहुत ही सम्मान देते थे और वो जैसे कहते वैसे ही करते थे, हालाकि सुरेंद्र की पत्नी सुजाता जी कई बार कहती की इतना विश्वास करना भी ठीक नहीं होता पर सुरेंद्र जी को अपने भाइयों पर पूरा भरोसा था….

यूपी के मेरठ जिले में कई एकड़ जमीन का आज बटवारा होना था, चारो भाईयो ने सबसे अच्छे जमीन के टुकड़े खुद रख लिए और  बेकार बंजर सी जमीन सुरेंद्रजी को दे दी, सुरेंद्रजी ने थोड़ा विरोध भी किया पर बड़े भाईयो से अधिक बहस न कर पाए और उसी जमीन में संतुष्टि कर ली।

सुजाताजी ने सुरेंद्रजी को खूब सुनाया की अपना हक अगर ऐसे ही छोड़ते रहेंगे तो कल को हमारा और बच्चो का क्या होगा।

सुरेंद्रजी ने कहा कोई नही, दूसरी जगहों की जमीनें, जो हमारे हिस्से में है वो तो खुब उपजाऊ है , बड़े भाईयो ने अच्छा सोचकर ही सब किया होगा, पर मन ही मन उन्हें पता था कि ये सरासर बेइमानी है।….

सब कुछ ठीक ही चल रहा था की यूपी सरकार ने मेरठ से हरियाणा के कई शहरों को जोड़ने के लिए हाइवे बनाने का एलान किया और किसानों से हाइवे के रास्ते में पड़ने वाली जमीनों को ऊंचे दाम देकर खरीदना शुरू कर दिया।



किस्मत देखिए सुरेंद्रजी के हिस्से में आई बंजर जमीन भी हाइवे के रास्ते में आ रही थी तो मोटा मुआवजा मिलना भी तय था…सरकारी अधिकारी जब जमीन का बियौरा लेने सुरेंद्रजी के पास आए और उन्होंने जमीन के पक्के कागजात मांगे, तो सुरेन्द्रजी ने कहा वो तो मेरे सबसे बड़े भैया के पास है,और अगले दिन तक का समय मांगा। 

उसके बाद जब सुरेंद्रजी ने कागजात मांगे तो बड़ा भाई बोला वो तो चौथे नंबर वाले भाई के पास है , तो हम तुम्हे कागजात कल दे देंगे, सुरेंद्रजी ने कहा ठीक है कल जमीन पर ही मिलते है कागज़ मिलते ही में अधिकारियों को बुला कर दिखा दूंगा और अपने घर आ गए…

सुजाताजी भी भगवान को धन्यवाद दे रही थी की चलो भगवान ने सुन तो ली,  अब इस बंजर जमीन से मिले हुए पैसों से बच्चो का भविष्य भी संवर जायेगा और बुढ़ापा भी..

अगले दिन सुरेंद्रजी जब तय समय पर अपनी जमीन पर पहुंचे तो देखा चारो बड़े भाई पहले से ही मौजूद थे… सुरेंद्रजी के कागजात मांगने पर चौथे नंबर वाला भाई बोला, ये जमीन तो कभी तुम्हारी थी ही नहीं तुम्हारी जमीन तो मेरे वाली जमीन के साथ है,और थोड़ी थोड़ी जमीन बड़े भाईयो की जमीन के साथ है….सुरेंद्रजी को बड़ा आश्चर्य हुआ की ये क्या कह रहे है, पैसे के लिए छोटे भाई के साथ ही इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सकते है, पटवारी के साथ मिलकर कागजात भी अपनी तरह से ही बनवा कर ले आए थे… सुरेंद्रजी ने कहा की बड़े भैया होकर आप सब मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते है, टुकड़ों में बांटे गए ये जमीन के टुकड़े मेरे किस काम आयेंगे और कहकर गुस्से में कागजात फाड़ डाले और बोले, ये जमीन मेरी है और मेरी ही रहेगी…

उधर लालच में अंधे भाईयो ने अपने सगे छोटे भाई को साथ लाए डंडों से मारना शुरू कर दिया, हट्टे कट्टे सुरेंद्रजी अपने पिता समान बड़े भाईयो पर हाथ नही उठा पा रहे थे,पर लालची और कपटी ,धन के लालच में एक हुए सारे गिद्ध अपनी दरिंदगी अपने ही छोटे भाई पर निकाल रहे थे,



आस पास काम करने वाले लोगो ने सुरेंद्रजी को बचाया, इधर खून के रिश्तों को कलंकित करके सारे अधर्मी अपने भाई को मरणावस्था में छोड़कर चले गए।… सुरेंद्रजी के मोबाइल से ही वहा काम करने वाले किसी व्यक्ति ने एक नंबर पर फोन किया, जोकि उनके बड़े बेटे का था, समाचार सुनकर सुजाताजी अपने दोनो बेटों के साथ वहा पहुंची और सुरेंद्रजी को अस्पताल में भर्ती कराया…. 

 अधेड़ उम्र के अपने पति की ऐसी हालत देखकर आज चंडी जैसे साक्षात सुजाताजी में समा गई थी,  अपने चारो जेठो को उनके घर जाकर उनके परिवार और बच्चो के सामने ही खूब खरी खोटी सुनाई, खूब बददुआएं भी दी पर लालचियो ने बेईमानी कर ही ली और सारी जमीन हड़प कर मिला हुआ पैसा आपस में बांट लिया।

इधर सुरेंद्रजी अस्पताल से घर तो आ गए पर ये अपमान, छल और अन्याय उनकी आत्मा को घायल कर गया और इतने सदमे में चले गए की साल भर बाद, 55 की उम्र में ही अपने बीवी बच्चों को रोते बिलखते छोड़कर इस दुनिया से विदा ले ली।….

कहते है ऊपरवाला न्याय अवश्य करता है पर सुजाता जी आज भी अपने हक की लड़ाई लड़ रही है…..

पति को खो चुकी है, इसीलिए अपने बेटों की सुरक्षा को लेकर बहुत सचेत रहती है….और बस यही सोच कर संतोष कर लेती है की, ये लालची गिद्ध हाथ से छीन कर तो खा सकते है, किस्मत का नही छीन पाएंगे। 

दोनों बेटों का काम भी अच्छा है और बहुएं भी बहुत सुघड़ आई है… परंतु बेईमानी का कोई पैमाना तो होता नहीं,आज भी चारो भाइयों द्वारा, जब भी जहां भी मौका लगता है बेईमानी कर रहे है, सुजाताजी और उनके बेटों को जानकारी तो मिल ही जाती है, परंतु कागजों में धांधली करके उनके हिस्से का भी सारे बेईमान खुद ही हजम कर जाते है…..

अब तो बस भगवान का ही भरोसा है सुजाताजी को,  उन्हें पूरा यकीन भी है कि इस अन्याय का न्याय बहुत जल्दी होगा।……

 

स्वरचित, सचाई के करीब

# अन्याय

कविता भड़ाना…

 

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