अन्याय – अनामिका मिश्रा 

प्रभा एक साधारण दिखने वाले कम पढ़ी-लिखी लड़की थी, बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं थी,सावला रंग था।उसके गरीब पिता चाहते थे कि,उसकी शादी गांव में,अपनी ही बिरादरी में हो जाए। पर गरीबी और संजोग की भी बात थी कि,वहां गांव में उसे कोई लड़का नहीं मिला, किसी दूसरे गांव में उसके पिता ने उसका विवाह रचा दिया, जो, थोड़े उच्च वर्ग के थे और उन्हें एक ऐसी कामकाजी सीधी-सादी लड़की की आवश्यकता थी। 

देव को प्रभा पसंद नहीं थी,पर माता-पिता के दबाव में उसने प्रभा से विवाह कर लिया था।प्रभा के प्रति देव का व्यवहार बहुत अच्छा नहीं था,पर विवाह की आड़ में संबंध भले उसने बना लिए थे। प्रभा के दो बेटे भी हो गए थे। 

धीरे-धीरे समय बीतता गया। देव काम के सिलसिले में गांव के बाहर गया,पर देव घर नहीं लौटा। घर में सब परेशान थे। खोज खबर ली गई, पर कुछ पता नहीं चला।

धीरे-धीरे छह महीने हो गए। 

प्रभा के पिता उसे लिवाने आए पर प्रभा ने कहा, नहीं पिताजी,मैं नहीं जाऊंगी, मैं और इंतजार करूंगी। 

धीरे-धीरे एक वर्ष भी बीत गया। 

एक दिन देव का कोई पुराना मित्र आया और घर आकर प्रभा से बोला, “भाभी देव आश्रम में रहने लगा है,उसने वहां दीक्षा ले लिया है,और उसने मुझसे कहा था कि, ये संदेश आप तक, और घर वालों को पहुंचा दूं!”

प्रभा ने कुछ नहीं कहा चुपचाप सुनती रही।अगले दिन प्रभा को देखकर उसकी सास चौक गई,कहने लगी, ये क्या तू एक शादीशुदा औरत है,और ये विधवा के कपड़े पहनी हो, चूड़ी बिंदी कूछ नहीं,निर्लज्ज कहीं की, मेरा बेटा तो जिंदा है ना, उसे कुछ हुआ नहीं और, तू इस तरह से…. अरे औरतों को क्या-क्या नहीं सहना पड़ता है, एक तो मेरे बेटे को खुश रख नहीं सकी, एक जरा सी औकात नहीं, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई!”



 प्रभा ने कहा, “मां जी आप बेटे के मोह में है, पर मेरे साथ जो अन्याय हुआ उसका क्या! “

उसकी सास ने कहा, “अगर तुझे इस तरह ही रहना है तो, मेरे घर से निकल जा!”

प्रभा अगले ही दिन अपने बच्चों को लेकर अपने पिता के घर चली गई। उसके पिता भी बहुत बीमार थे और चल बसे। 

गरीबी तो थी,थोड़ी सी जमीन में सब्जी भाजी उगाकर बेचा करते थे उसके पिता।

वही काम प्रभा ने शुरु कर दिया…और एक घर में काम पकड़ ली,उन्हीं पैसों से गुजर बसर हो रहा था …और दोनों बेटों को वो पढ़ा रही थी। 

गांव वाले प्रभा की चर्चा किया करते, “कोई कहता पति ने छोड़ दिया,इसके लक्षण भी सही नहीं होंगे, तो कोई कहता उसके पिता को वहां विवाह नहीं करवाना चाहिए था, अपने से ऊपर हैसियत वालों से विवाह करवा कर लड़की की जिंदगी खराब कर दी! 

बच्चे धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे।

समाज की उपेक्षा वो सहन नहीं कर पाते थे, उनकी मां प्रभा से बहुत लोगों ने दूरी बना लिया था। 



स्कूल में भी उन्हें नीचा दिखाया जाता था। प्रभा एक बार बीमार पड़ गई,”तो बड़े बेटे ने कहा,”अब मैं काम करूंगा तुम कहीं नहीं जाओगी!”

प्रभा ने कहा,”अरे तुझे पढ़ना है अभी, मुझे काम पर जाना ही होगा!”

पर प्रभा का बड़ा बेटा दुकानों में काम करने लगा और उपेक्षित जीवन को सहते हुए,संघर्ष करते हुए,बड़े बेटे को सरकारी नौकरी मिल गई। 

छोटा बेटा भी बड़े भाई की सहायता से ऊंचे पद पर सरकारी कार्यालय में नियुक्त हो गया था। प्रभा के दिन बदल गए थे।

पर वो बोली,”गांव छोड़कर वो कहीं नहीं जाएगी।”

 एक दिन वो घर में बैठी सब्जी की टोकरी तैयार कर रही थी, तभी दरवाजे पर उसने देखा उसका पति देव सफेद वस्त्रों में खड़ा था,और उससे मिलने आया था। 

प्रभा ने पूछा, “क्यों आए हो,मैं तो कब की विधवा हो चुकी हूं!”

देव कहने लगा,मुझे जो सजा देना हो दो, पर इस तरह मत कहो, कुछ दिन तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं, अपने दोनों बेटों को देखना चाहता हूं!”

प्रभा ने कुछ नहीं कहा।वहीं रुक गया था। 

उनका बड़ा बेटा हर सप्ताह शहर से एक बार गांव आता था, अपनी मां को देखने। वो आया और प्रभा से सारी बात जानकर।

उसने कहा,”मैं अपने पिता को नहीं जानता, आपने जो अन्याय हमारी मां के साथ किया है, हम उसे नहीं भूल सकते,बेहतर होगा आप यहां से प्रस्थान करें !”

एक बार प्रभा का मन कचोट गया था,पर वो कुछ कह ना सकी 

देव वापस प्रभा से विदा लेकर वहां से चला गया। 

 

स्वरचित अनामिका मिश्रा 

झारखंड जमशेदपुर

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