मां मैं तेरी ही परछाई – रश्मि पीयूष 

जब मैं बहुत छोटी थी,मां को हमेशा पढ़ते देखा । जब भी उन्हें काम से फुर्सत मिलती, उनके हाथों में कोई पत्रिका, कोई उपन्यास,या कभी और कुछ नहीं तो अख़बार ही होती। कभी कभी उन्हें लिखते हुए भी देखती । एक बार मैंने चुपके से उनकी डायरी पढ़ी। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि मेरी मां इतना अच्छा लिख सकती हैं। मां ने अपनी डायरी में अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात लिखी थी। अपने बचपन से लेकर अभी तक की सारी बातें | बात बिल्कुल साधारण सी, लेकिन पढ़ते हुए लगा कि उसकी एक एक पंक्तियां मन को छू रही है ।मुझे अपनी मां पर गर्व हो आया। मां ने स्कूल कॉलेज की बड़ी बड़ी डिग्रियां हासिल नहीं की थी। लेकिन उनकी लेखनी उन डिग्री वालों को भी मात करती थी। कुछ बड़ी हुई तो मैंने भी लिखने की कोशिश की। कुछ छोटी कविताएं, कुछ छोटे छोटे लेख, कभी किसी खास व्यंजन की रेसिपी । एक बार मां के कहने पर मैंने एक रेसिपी” मनोरमा” नामक पत्रिका में भेजा। कुछ दिन के बाद वह प्रकाशित हुई,साथ में मेरी फोटो भी छपी । मैं तो खुशी से झूम उठी। 40रुपए का पुरस्कार भी मिला। वे चालीस रुपए मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं थे। इसका श्रेय मेरी मां को जाता है। मां हमेशा पत्रिकाओं में कहानी, लेख और अपने जीवन के अनुभव लिखा करतीं। फिर उन्होंने मुझे भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। पहले मैं अपनी छोटे छोटे अनुभव लिखा करती थी।पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी शादी हो गई। पति पत्रकार थे । जब उन्हें पता चला कि मेरी लिखने पढ़ने में रुचि है तो उन्होंने भी मुझे प्रोत्साहित किया। मेरी कहानियां और कविताएं, कुछ लेख उनके अख़बार में प्रकाशित होने लगे। पारिश्रमिक भी मिलता। गृहस्थी के काम के बाद मैं अपनी लेखनी के लिए भी समय निकाल ही लेती।

एक दुर्घटना में पति की मौत ने मुझे तोड़ दिया। किसी भी काम में मेरा मन नहीं लगता। मैं सारी रात रो कर गुजारती।फिर मेरी मां ने मुझे समझाया और फिर से मेरे हाथ में कलम थमाई, कहा, “जो भी तुम्हारे मन में हो वो सब लिख डालो । मन बिल्कुल हल्का हो जाएगा।”मैंने डायरी लिखना शुरू किया । फिर से अपनी कहानियां पत्रिकाओं में भेजने लगी। कुछ प्रकाशित होती, कुछ सधन्यवाद लौटा दी जाती। अस्वीकार होने पर मन में तकलीफ भी होती। फिर

भी मैंने लिखना नहीं छोड़ा | मेरी मां हमेशा मेरी प्रेरणा रही।

 

मै एक स्कूल में शिक्षिका हूं। लॉक डाउन के कारण जब स्कूल जाना बंद हो गया तो मैं फिर उदास रहने लगी। कुछ समय तो घर के काम में कट जाता परन्तु फिर सारा दिन मैं बेचैन रहती । पत्रिका या अख़बार भी बंद हो गया। अब मैं सिर्फ मोबाइल में अपना समय काट रही थी। इसी क्रम में एक दिन फेस्बूक  पर कुछ पढ़ने का मौका मिला। फिर तो हर रोज मैं फेस्बूक में लिखी कहानियों और कविताओं को पढ़ने लगी। मैंने मां को भी ये बात बताया । उनकी स्थिति भी मेरी जैसी ही थी। एक दिन मां ने कहा “, तुम क्यों नहीं लिखती फेस्बूक में।” माँ मुझे हमेशा प्रेरित किया करती ।लॉक डाउन के वक्त मैं अपनी कहानी और कविताएं डायरी में लिखा करती थी और उसे अपनी मां और कुछ खास सहेलियों को भेजा करती। पर जब से फेस्बूक में लिखना शुरू किया, कई लोगों ने मेरी कहानी को पढ़ा और समीक्षाएं भी लिखी । बहुत अच्छा लगता है अपनी रेटिंग देखकर। अब लोग कहते हैं कि मैं अपनी मां की परछाई हूं। हां, मां सच ही तो है, मैं तुम्हारी ही परछाई हूं। तुम्हारे ही साथ साथ चलकर आज मैं ने इस मुकाम को हासिल किया है। धन्यवाद मां, तुमने मुझे अपने सारे गुण दे दिए।

रश्मि पीयूष ( लेखिका उमा वर्मा जी की मृतक बेटी )

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!