फिर कहीं कोई फूल खिला – नीरजा कृष्णा

आज वे दोनों माली के साथ अपनी बालकनी के गमलों की देखरेख कर रहे थे। अचानक सुरेश बाबू की निगाहें  कोने में रखे गमले पर पड़ी और उसमें अनायास उग आए एक छोटे से गुलाबी रंग के फूल पर रीझ कर पूछ बैठे,

“दीनू काका, ये कौन सा फूल है…ये तुमने कब लगाया?”

माली भी ताज्जुब में था। बोला,

“सर, यह फूल तो हमने नहीं लगाया है। ये अपने आप ही उग आया है। लगता है कोई जंगली प्रजाति का फूल है।”

इस बार उर्मिला जी चिढ़ कर बोलीं,

“क्या दीनू काका, आप भी हद ही कर रहे हो। अनायास खिल आए फूल को जंगली बोल रहे हो। इसने तो आज हमारी बालकनी को रंगीन कर दिया है। “

तभी उनकी पोती  रेवा एक डायरी उछालती हुई वहाॅं पहुॅंची और फूल देखने लगी। वो डायरी उर्मिला जी  उठा कर उलटने पलटने लगीं। एकाएक चौंक कर बोलीं,

“अरे ये तो अपनी बहू सुगंधा की डायरी है। देखिए, कितनी प्यारी प्यारी क्षणिकाएं और दोहे लिखे रखें हैं।”

सुरेश बाबू ने लपक कर उनके हाथ से वो डायरी छीन ली और हतप्रभ हो गए‌। वो एक आह भर कर बोले, “हमारी सुगंधा इतनी गुणी है, हमें पता ही नहीं था।”

वो दुखी होकर बोलीं,”हम महिलाओं की सारी प्रतिभा रोज़ झाड़ू के बुहारन में और सब्जियों के छोंकने में ही छुक जाती हैं पर हम अपनी सुगंधा के साथ ऐसा नहीं होने देंगे।”

वे पोती को गोद में बैठाते हुए बहू को पुकार बैठे।

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“बेटी, ये सब क्या है?”

वो झेंप कर बोली,”अरे कुछ नहीं पापा जी! ऐसे ही खाली समय की बेगारी है।”

“ये क्या कह रही हो… इस कला को बेगारी कह रही हो। इसे किताब का रूप देंगें भई। आज तो हमारे घर में दो प्यारे फूल अनायास ही खिल गए हैं।”



उर्मिला जी ने बहू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,

” गमले के फूल में तो सुगंध नहीं है पर ये फूल तो हमारे परिवार को ही सुगन्धित कर रहा है।”

रेवा जोर से तालियां बजाकर बोली,”मेरी मम्मी का नाम भी तो सुगंधा ही है।”

समाप्त 

 

इस्तीफा

बाज़ार से कुछ खरीदारी करके लौटी ही थीं। थैले एक तरफ़ पटक कर चाय के लिए कहने ही वाली थीं…तभी एक तरफ़ मुॅंह लटकाए बैठी दिव्या पर निगाह पड़ी। वो चिंतित होकर पूछ बैठीं,

“क्या बात है? बहुत चिंता में लग रही हो।”

वो बहुत दुखी होकर बोलीं, देखिए ना! अमित ने इतनी बढ़िया नौकरी से इस्तीफा दे दिया है।”

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“मगर क्यों?”

उन्होंने बहुत हड़बड़ा कर पूछा था।

“इन्हीं से पूछिए। ये ही आपको समझा पाएंगे।”

तभी बीच में आकर अमित बोल पड़ा,

“ये लोग मुझे दो सालों के लिए कनाडा भेज रहे थे।”

वो उछल कर बोलीं,

“अरे ये तो बहुत बढ़िया बात है। मेरी सभी सहेलियों के बच्चे विदेशों में ऊॅंची नौकरियों में हैं।”

“पर मैं अपना देश छोड़ कर नहीं जाना चाहता। उससे भी बड़ी बात ये है कि मैं  आप सबको छोड़ कर नहीं जा सकता।”

“अरे बेटा, दो साल की ही तो बात थी, यूं ही फुर्र से उड़ जाते।”

“पर उन दो सालों में बहुत कुछ मिस हो जाता। मैं अपने बच्चों का बचपन मिस कर जाता, अपनी प्यारी माॅं का बुढ़ापा मिस कर जाता।”

सब हॅंसने लगे थे। वो मन ही मन बहुत इतराने लगी थीं पर ऊपर से गुस्से में बोलीं,

“तुमसे तो मेरा सुख देखा ही नहीं जाता है।मैं भी तो पार्क में अपनी सहेलियों के बीच शान बखारती कि मेरा भी बेटा कनाडा में है। हाय री किस्मत, मेरे बेटे को मेरे बुढ़ापे की ज्यादा चिंता है।”

अमित लाड़ से उनसे चिपट गया। दिव्या दौड़ कर सबके लिए चाय बनाने चल दी।

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समाप्त 

 

मालपुए

अभी अभी रांची से फोन आया है, और वो हक्की बक्की फोन पकड़े बैठी हैं,सामने बैठे अविनाश बाबू पूछ बैठे,”ऐसे क्यों  देख रही हो, किसका फोन था?”

वो बोल नहीं पाईं…बस बिलख बिलख कर रोने लगी। सब हड़बड़ा गए। बस अम्माजी ही धैर्य से पूछने लगी,”क्या मुनिया की कोई खबर थी, इधर उसकी तबियत ठीक नहीं रह रही थी।”

वो तड़प गईं,”अम्मा! दीदी नहीं रहीं,हार्टफेल हो गया।”

इस अप्रत्याशित समाचार से सब जहाँ के तहाँ रुके रह गए।

तभी वो बोल पड़ी,”अम्मा! अभी कल ही तो उनसे कितनी देर बात हुई थी,वो हम सबको बहुत याद कर रही थीं।”

अम्माजी आँखें पोंछते हुए पूछने लगी,”और क्या कह रही थी?”

“वो आपके हाथ के मालपुओं को याद कर रही थीं”

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अम्मा उतावली होकर बोली,”सच्ची? उसे मालपुए बहुत पसंद थे…बराबर बनवाती थी।”

वो भी रोते हुए बीच में बोल ही पड़ी,”हाँ अम्माजी! कल भी कह रही थीं कि अम्मा के हाथ के वो रसीले मुलायम मालपुए बहुत याद आ रहे हैं।”

अम्मा तो व्याकुल होकर रोने लगी थी,बाकी सब भी बहुत दुखी होकर गुमसुम से हो गए थे।शाम को वो चौके में जाकर कुछ खटरपटर कर ही रही थीं कि अम्मा पूछ उठी,”बहू, अभी से चौके में क्या कर रही हो,अभी तो कामवाली भी नहीं आई है।”

वो हौले से बोलीं,”दीदी केसरिया मालपुए बहुत पसंद करती थीं। कल भी यही सब कह रही थीं, सो मैं थोड़े मालपुए बना कर माली काका की बेटियों को खिलाना चाह रही हूँ।”

अम्मा बुरी तरह चौंक कर बोली,”अभी तो उसकी चिता की लपटें शांत भी नहीं हुई होगी, यहाँ लोग तरह तरह की बातें बनाएंगे।”

“क्यों बात बनाएंगे?”

“तुमको ही कहेंगे…जरा भी दुख नहीं है..बल्कि मालपुए बनाए जा रहे हैं।”

पर वो नहीं मानी और एक प्लेट में सजा कर बाहर माली के घर दे आईं और अम्मा के गले लग कर रो पड़ी। उस समय उन्हें कुछ आभास सा हुआ…मानो दीदी कह रही हो..वाह भाभी,आपने तो मुझे तृप्त कर दिया… अम्मा से भी ज्यादा बढ़िया मालपुए बना कर खिला दिए।”

नीरजा कृष्णा

पटना

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