चाहत माँ बनने की –  सुभद्रा प्रसाद

 “मैं पूछती हूँ, तुम्हारे भैया, भाभी और कितने दिन यहाँ रहेंगें  ? ” सुमन अपने पति उमेश से पूछी |

           “अरे आठ दिन की छुट्टी लेकर आये हैं, अभी छ: दिन हुए हैं, तो दो दिन और रहेंगे |पर तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो  ? ” उमेश ने पूछा |

          “क्योंकि मैं परेशान हो जाती हूँ तुम्हारी भाभी की टोका टोकी से |हर समय हर बात में टोकती रहती हैं |खाने में कम तेल मसाला डालो |बच्चों को  समय  से गर्म, ताजा  और पौष्टिक भोजन दो |खाना  और पानी 

बर्बाद मत करो |बच्चों को ज्यादा टीवी और मोबाइल मत देखने दो | उनकी 

पढाई पर ध्यान दो |” 

         “पर ये सब तो अच्छी बातें हैं |

इसमें परेशान होने वाली क्या बात है? “

उमेश बीच में ही उसकी बात काट कर बोला |

       “अरे तो क्या हर समय की टोका टोकी अच्छी बात है |बच्चे तो बच्चे , मैं भी परेशान हो जाती हूँ उनकी बातों से | अपने बच्चे तो हैं नहीं और मुझे  सिखाती रहती हैं कि बच्चों को कैसे पालना चाहिए |क्या मुझे कुछ नहीं पता है कि बच्चों को कैसे रखना चाहिए? हर समय ऐसा व्यवहार करती हैं, जैसे ये उन्हीं के बच्चे हो |उनकी इसी बात से

बच्चे भी बार-बार यही पूछते हैं कि ये लोग कब जायेंगे  ? ” सुमन चिढ़ कर बोली |          

         “पर प्यार भी तो बहुत करते हैं 

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हमारे बच्चों से |उनके अपने बच्चे तो हैं नहीं |हमारे बच्चों को ही अपने बच्चे मानते हैं |गांव की सारी जमीन-जायदाद, शहर का मकान, अपने सारे पैसे सब तो हमारे ही बच्चों को देनेवाले हैं |फिर इतनी बात तो उनकी माननी ही पड़ेगी | उनके सामने तो अच्छा बनना ही पडेगा |”उमेश समझाते हुए बोला |

          “बस यही एक बात तो है, जो मैं उनको सहन करती हूँ |नहीं तो मैं उस बांझ औरत की छाया भी न पडने दूं, अपने बच्चों पर |’सुमन झट से बोली |

           ” अरे जरा धीरे बोलो |कहीं सुन न लें |मैं भी तो बस इसी कारण उनका

 मान – सम्मान करता हूँ |”उमेश उसके मुंह पर हाथ रखते हुए बोला |

              दरवाजे के बाहर खड़े उमेश के बड़े भाई रमेश ने उनकी सारी बातें सुन ली और उनका सिर चकरा गया |वे बाथरुम जा रहे थे तो उनकी सारी बातें सुन लिये  |हमारे लिए इनके मन में ऐसे विचार हैं | वेआगे खड़े न  ,रह पाये और नहीं कुछ सुन पाये | वे धीरे-धीरे अपने कमरे में आये और दरवाजा बंद कर पलंग पर बैठ गये |रात के ग्यारह बजे रहे थे और 

उनकी पत्नी पूनम पलंग पर आराम से सो रही थी |उन्होंने उसे चादर उढाया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगे | उनका मन अतीत की गलियों में दौड़ने लगा |

              उमेश उनका छोटा भाई  उनसे पांच साल छोटा था |बचपन से ही बहुत प्यार करते थे उससे | बहुत ध्यान रखते थे उसका | वह पढ़ने में कुछ कमज़ोर था तो पढाई में भी उसकी मदद करते थे | उन्हीं के सहयोग से उसने अपनी पढाई पूरी की थी और एक कंपनी में नौकरी भी पाई थी |              आज से अठारह साल पहले

जब पूनम की शादी उनसे हुई थी, वे सताईस वर्ष के थे और पूनम बाईस वर्ष  की थी | उन्होंने एक बैंक में नौकरी पाई थी | वे दोनों खुश थे और घर में भी खुशी का माहौल था | चार साल बाद उमेश की भी शादी हो गई | परेशानी तब शुरू हुई जब पूनम को शादी के पांच साल बाद भी कोई संतान न हुई और सुमन को शादी के एक साल बाद   ही एक पुत्र और तीन साल बाद दूसरे पुत्र की प्राप्ति हो गई | पूनम उदास रहने लगी |उन्होंने हर संभव प्रयास किया |डाक्टर से दिखाने से लेकर पूजा पाठ सब किया, पर पूनम माँ न बन पाई |माता पिता की तरफ से दूसरी शादी का दबाव होने लगा, तो पूनम की तरफ से 

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अनाथालय से बच्चा गोद लेने का | उन्होंने किसी की बात नहीं मानी | सबको समझा दिया कि जब घर में दो- दो बच्चे हैं ही तो फिर दूसरी शादी करने या बच्चा गोद लेने की जरुरत ही क्या है?  मैं इन्हें ही अपना बच्चा मानता हूँ और मानता रहूंगा | पूनम के दिल में एक बच्चे को गोद लेने की, एक बच्चे की माँ बनने की बहुत चाहत थी, पर रमेश के बार-बार समझाने पर वह भी चुप हो गई |आज से चार साल पहले पिता और दो साल पहले माँ भी रमेश को समझाते-समझाते उपर चले गये |उमेश का बड़ा बेटा तेरह साल और छोटा ग्यारह साल का हो गया | वे बहुत प्यार करते थे और दोनों बच्चों की सारी जरूरतें पूरी करते थे  | उनकी पढाई का सारा खर्च भी वही उठाते थे |इस घर में उमेश परिवार सहित रहता था | वे बैंक में मैनेजर हो गये थे और पास के शहर में अपना एक अच्छा सा घर भी बना लिया था |जब भी फुर्सत मिलती, बच्चों से मिलने आ जाते |वे पूरे दिल से रमेश के परिवार को अपना परिवार और उसके बच्चों को अपने बच्चे समझते थे  | हरदम उसकी मदद करते थे  | पूनम ने भी इनसब बातों के लिए उन्हें कभी नहीं रोका  | आज उनकी ये   सब बातें सुनकर 

उनका दिल एकदम टूट गया |उन्होंने सोई हुई पूनम की ओर प्यार से देखा और उनका मन करूणा से भर गया |अच्छा हुआ, पूनम ने ये सब नहीं सुना |

आज उन्हें अहसास हुआ कि पूनम की बच्चा गोद लेने वाली बात सही थी |तब उसकी माँ बनने की चाहत भी पूरी हो जाती और फिर उसे बांझ भी नहीं  कहा जाता | यही सब सोचते- सोचते न जाने कब उन्हें भी नींद आ गई |

             सुबह के सात बजे थे |सब चाय पी रहे थे |एकाएक किसी के रोने की आवाज सुन कर सब चौंक पडे और बाहर निकले |रोने की आवाज पडोस से आ रही थी |”क्या हुआ  ? “सोचते हुए सब वहां गये तो देखा कि मोहन काका के घर में भीड़ लगी है |पूछने पर पता चला कि मोहन की बहू की मृत्यु हो गई है |घर में सिर्फ मोहन की पत्नी थी |मोहन की मृत्यु तो सात साल पहले ही हो गई थी और उसके बेटे सोहन की मृत्यु भी चार महीने पहले एक सड़क दुर्घटना में हो गई |घर में सिर्फ मोहन की पत्नी और बहू ही बचे थे | मोहन की पत्नी बूढ़ी थी और बहू गर्भवती |घर में कमाने वाला कोई नहीं | अगल बगल के घर में कुछ काम करके  किसी तरह गुजारा हो रहा था | कल  बहू ने एक बच्ची को जन्म दिया, पर वह इतनी कमज़ोर थी कि डाक्टर उसे न बचा पाये  , सिर्फ बच्ची को बचाया जा सका   |वो तो पडोस  के लोगों ने मदद की और अस्पताल ले गए, नहीं तो बच्ची भी नहीं बचती |अब सब आगे के कार्यकर्म के लिए विचार कर रहे थे |

           “अरे, सब चले गये |मैं अभागन  क्यों बची हूँ |यही दिन देखने के लिए 

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रह गई मैं |इससे तो अच्छा था, मैं ही चली जाती, बहू रह जाती  |अब इस नन्ही सी जान को कैसे पालूंगी मैं | ” मोहन की  पत्नी सिर पटक पटक कर रो रही थीं |आंगन में बहू का शव पडा था और चारपाई पर बच्ची |  बडा ही  हृदय विदारक  दृश्य था |सब  की आंखें नम थी  | सब यही बात कर रहे थे  कि अब इस   बच्ची का क्या होगा?   रमेश ने आकाश की ओर देखा |”हे ईश्वर यह कैसा संयोग है|”उसने सोचा |                “मैं इस बच्ची को गोद लूंगा | आज से यह मेरी बेटी है |” रमेश ने बच्ची को गोद में उठा लिया |”किसी को कोई आपत्ति तो नहीं  ? साथ ही यहाँ के कार्यकर्म का सारा खर्च भी मै दूंगा”उन्होंने सभी की ओर देखा |                                              ” अरे, नहीं बेटा, हमें क्या आपत्ति होगी  ? ये तो बहुत पुण्य का काम है |बच्ची की जान बच जायेगी और उसका भाग्य भी बदल  जायेगा |”  गाँव के मुखिया जी ने कहा |

          “हाँ, हाँ, यह ठीक है | हमें कोई आपत्ति नहीं है  |” सभी ने समर्थन    किया |                                            “पर भैया, आप एकबार सोच लेते|” उमेश और भी बहुत कुछ कहना चाह रहा था, पर रमेश ने उसकी बात काटते हुए कहा- “इसकी जरूरत ही नहीं है|मैंने सोच समझ कर ही यह फैसला किया है |”

 

         “परन्तु, इसकी दादी ? ” एक व्यक्ति बोला |

         “ये भी हमारे साथ रहें और इसकी देखभाल में हमारी मदद करें |” रमेश ने काकी की ओर देखा -” ठीक है ना काकी |”                                               काकी कुछ बोल न पाई,सिर्फ हां में सिर हिला दी |                                           “लो पूनम, पकडो़, अपनी बेटी को ” रमेश बच्ची पूनम को देते हुए बोला |वह चुपचाप सब सुन रही थीं |   झट से आगे बढकर बच्ची को ले लिया और कलेजे से लगा लिया | उसकी माँ बनने की चाहत आज पूरी हो गई |उसकी आँखों से आंसू बहने लगे,पर ये खुशी के आंसू थे  |                                              सारे उपस्थित लोगों ने भी चैन की सांस ली |

#चाहत 

सुभद्रा प्रसाद 

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