इकलौते भाई और तीन बहनों में बीच की बेटी थी वह।बड़ी बहन पहली संतान होने से पिता की लाड़ली और माँ की चहेती थी,फिर भाई था जो बचपन से ही दुबला, पतला होने के साथ इकलौता बेटा भी था और माँ,पापा का लाड़ला था।उसके बाद वह और उससे छोटी बहन जो सबसे छोटी होने से माँ,पापा की अधिक लाड़ली थी।उसका नाम पापा ने रखा था सुनैना पर बड़ी बहन का नाम था नीति और छोटी का प्रीति,सो उसी तर्ज पर सब उसे नैनी कहने लगे थे।जब तक बचपन में उसे नैनी शब्द का अर्थ पता नहीं रहा तब तक तो ठीक था पर जब उसे नैनी का अर्थ मालूम हुआ और पड़ोस के तथा स्कूल के बच्चे भी उसे चिढ़ाने लगे तो उसे अपने नाम से चिढ़ होने लगी पर अब तक तो उसका नाम नैनी ही पड़ चुका था सो मजबूरी में उसे स्वीकारने के सिवाय कोई चारा न था।
बचपन से माँ,बाप के प्यार को तरसती नैनी अब चौदह साल की किशोरी थी और पढ़ाई के अतिरिक्त सिलाई, बुनाई,कढ़ाई के साथ रसोई भी बखूबी सँभालना सीख गई थी।उसके काम की तारीफ अब पापा भी करने लगे थे पर जब वह माँ का लाड़ छोटी बहन पर अधिक देखती तो उसका मन रोने लगता था।वह हर संभव कोशिश से माँ को खुश करने का प्रयास करती थी।अब तक बड़ी बहन नीति की शादी हो चुकी थी और अब उसके लिये लड़के की तलाश जारी थी। आखिर माँ,बाप की खोज खत्म हुई और सुनैना की भी विदाई हो गई पर हाय री किस्मत यहाँ भी वह मँझले बेटे की ही बहू बनकर आई।वही रवैया यहाँ भी।बड़े बेटा,बहू और उनके बच्चों पर बाप का अतिशय लाड़ और छोटे बेटा,बहू माँ के लाड़ले।उसके पति सौरभ अपनी ही दुनियाँ में रमे रहते बस दोस्तों का साथ और अपने जिम्मे दिये गये बिजनेस के काम को ही पूरा करना।उनको तो अपनी पत्नि से भी कभी बातचीत करते घर में शायद ही किसी ने देखा हो।गृहस्थी के कामों से निबट रात में जब थककर सुनैना चूर हो जाती तब बिस्तर पर पति के हाथों की छुअन भी उसके तन,मन दोनों को ही बहुत दर्द देती थी।पति तो अपनी इच्छा पूर्ति के बाद खर्राटे भरने लगता पर बेचारी सुनैना की आँखेें रात में रिसते हुए जाने कब बंद होतीं जो सुबह पाँच बजे के अलार्म पर फिर मुस्तैदी से फौरन खुल जाती थीं।
यूँ ही दिन गुजरे और पाँच साल बीतते सुनैना दो बच्चों की माँ बन चुकी थी पर जब तब दिल में दबी चाहत फिर से याद आ जाती कि काश जीवन में कोई तो होता जो उससे उसकी चाहत के बारे में पूँछता।सपने में अक्सर देखती वह किसी का हाथ पकड़े आसमान पर उड़ी जा रही है,पर हाथ किसका है यह नहीं देख पाती थी।
वह अक्सर सोचती यदि मेरे तीन बच्चे होते तो मैं बीच वाले को बहुत प्यार करती।दोनों बच्चे हॉस्टल में रहकर पढ़ रहे थे और पापा को ही अधिक चाहते थे,यहाँ भी वह मात खा गई थी।
जिन्दगी तो चलती ही जाती है सो चल रही थी कि एक दिन अचानक सुनैना बाथरूम में कपड़े धोते वक्त फिसल गई और उसकी कूल्हे की हड्डी टूट गई। उस समय घर पर भी कोई नहीं था।पति काम पर और बच्चे बाहर।सास ,ससुर की मृत्यु हो चुकी थी,जेठ ,देवर सब अपना अपना हिस्सा लेकर दूसरे शहर में बस गये थे।सुनैना जैसे तैसे उठकर बेड पर लेट तो गई पर दर्द बढ़ता ही जा रहा था,मन में डर भी रही थी पता नहीं पतिदेव का क्या रिएक्शन होगा?खैर जब सौरभ घर आये तो पहले तो झुँझलाये पर फिर बाजार से आयोडॉक्स और बाम लाकर बोले..” इसकी मालिश कर लेना ठीक हो जायेगी” शायद सोचा हो कि यदि कल तक यह न ठीक हुई तो घर का काम कैसे चलेगा? सुबह तक तो सुनैना का पैर उठाना जब मुश्किल हो गया तब डॉक्टर को बुलाकर दिखाने पर पता चला कि कूल्हे का फैक्चर है तो पतिदेव बहुत परेशान हुए और बच्चों को भी बुला लिया छुट्टी दिलाकर।
अब दोनों बच्चे माँ के ही पास बैठकर कभी ताश तो कभी अंताक्षरी का खेल खेलते रहते और माँ को भी वे दोनों जबर्दस्ती खेल में शामिल कर लेते।घर के काम के लिये बाई और खाना बनाने के लिये भी महाराज लग गया था।सुनैना की एक आवाज पर उसके पति भी दौड़ते थे अब।यह सब देख सुनैना को बहुत हैरत होती।एक दिन उसने दोनों बच्चों और पति को अपने पास बिठाकर पूँछा ..”क्या मेरा पैर टूटने की वजह से तुम सब मेरी इतनी केयर कर रहे हो?मैं जब ठीक हो जाउँगी तो फिर सब पहले जैसे ही हो जाओगे इसलिये रहने दो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो मेरे मन में बेकार उम्मीदें मत जगाओ।मैं अब जैसा है उसी में ठीक हूँ।”यह सुन दोनों बच्चे तो रोने लगे पर सौरभ बोला..”मुझे माफ करना सुनैना जो मैंने इतनी देर कर दी यह समझने में कि असली सुख तो परिवार के हर सदस्य की खुशी में ही है।मुझे बचपन से किसी का प्यार नहीं मिला बस यूँ ही बड़ा होता रहा यह सोचकर कि शायद मुझमें ही कमी है। इसी से मेरा स्वभाव भी रूखा हो गया था और तुम्हारे प्रति भी मैंने यही रवैया रखा।पर अब तुम्हारे बेड पर पड़ जाने से मुझे समझ आया कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया,रही बच्चों की बात वे तो खुद शर्मिंदा हैं।अब तुम जल्दी से ठीक हो जाओ। कल तुम्हारा ऑपरेशन हो जायेगा और बस फिर हम चारों..”यह कहकर सुनैना के सिर पर हल्के से हाथ फेर कर वह हँस दिया।यह देख सुनैना रोकर बोली “मुझे क्या पता था मेरी टाँग टूटने पर तुम सब मुझे चाहने लगोगे तो मैं बहुत पहले ही गिर पड़ती”।यह सुन दोनों बच्चों ने सुनैना के मुँह पर हाथ रख दिया और बोले…”मम्मी प्लीज नो…”।
……………………..कुमुद चतुर्वेदी .
……..सोनीपत (हरियाण)