शिल्पी सोच रही थी कि जब उसकी शादी सागर से हुई थी, तब वह कितना हंसमुख और खुशदिल इंसान था और वह उसके साथ कितनी ज्यादा खुश थी। आज सागर कितना बदल चुका है। वह बिल्कुल अपने नाम की तरह गंभीर और गहरा हो गया है। उसे कोई मानसिक परेशानी भी नहीं है फिर उसे क्या हो गया है कुछ समझ नहीं आ रहा। उसके दिल के अंदर एक मासूम बच्चा हुआ करता था जो ना जाने कहां खो गया है।
पहले हर बात में खुश होता था और अब हर बात में सीरियस। शिल्पी की कितनी सारी छोटी-छोटी चाहते और खुशियां थी जो अब सागर को शिल्पी का बचपना लगने लगी थी।
शिल्पी चाहती थी कि सागर कभी-कभी उसके हाथों में हाथ डाले, कहीं घूम आए चाहे फिर 10 मिनट ही क्यों ना? बाजार में जाएं चाहे कुछ खरीदना हो या नहीं। उसके साथ कभी कुल्फी कभी गोलगप्पे या फिर कभी बारिश में गरमागरम भुटटा खाने चलें। कभी अपने हाथ से चाय बना कर पिलाए तो कभी दोनों बच्चों की तरह रसोई की स्लैब पर बैठकर ही ब्रेड बटर खा ले।
एक बार बारिश के मौसम में शिल्पी ने सागर से कहा-“चलो, बारिश में भीगते हैं।”
सागर ने शिल्पी को डांटते हुए कहा-“यह क्या बचपना है, बेवकूफ हो क्या, मुझे नहीं भीगना और तुम भी मत जाओ।”शिल्पी मन मसोस कर रह गई।
वह सोच रही थी कि अभी शादी को समय कितना हुआ है, सारी उम्र तो जिम्मेदारियां निभानी ही होती है तो हम छोटी-छोटी खुशियों से दूर क्यों रहे।
कुछ समय और बीता। तब शिल्पी ने सोचा कि शायद संतान हो जाने पर सागर बच्चों के साथ फिर से बच्चा बन जाए और बच्चों के बचपन में खो जाए लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। शिल्पी उसके करीबी दोस्त से बातों बातों में एक दिन यह भी जान चुकी थी कि ऑफिस में भी सब कुछ ठीक है कोई टेंशन नहीं है फिर सागर इतना क्यों बदल गया है।
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अब तो दोनों दो बच्चों के माता-पिता भी बन चुके थे। कभी बच्चे मस्ती करते, जोर से हंसते या शोर मचाते, यह कभी आपस में लड़ पड़ते तो सागर उन्हें बुरी तरह डांट देता। अब तो शिल्पी उसके व्यवहार से बुरी तरह इरिटेट हो चुकी थी।
एक बार बच्चों के साथ डांस का वीडियो बना रही थी। बच्चे भी बहुत मस्ती के मूड में थे। शिल्पी ने सागर को कहा” आप भी आ जाओ बहुत अच्छा लग रहा है ।”सागर नहीं आया और तीनों को खा जाने वाली नजरों से घूर कर चला गया।
कभी शिल्पी अपने या बच्चों के कपड़े खरीद कर लाती और सागर को दिखाती तो वह कहता-“जब तुम लोग पहनोगे, तब देख लूंगा, अभी देख कर क्या करूं?”शिल्पी की सारी खुशी गुब्बारे में से निकली हवा की तरह छू हो जाती।
एक बार लाइट चली जाने के कारण शिल्पी ने सागर से कहा-“चलो आज छत पर बिस्तर लगाते हैं, बच्चों का भी नया अनुभव होगा और वे बहुत खुश हो जाएंगे। साथ में चांद तारे भी देख लेंगे।”
सागर ने चिढ़ कर कहा-“तुम ही जाओ और जाकर देखो तारे, हर समय तुम पर बचपना सवार रहता है ना जाने कब बड़ी होगी, इसमें नए अनुभव वाली कौन सी बात है?”
शिल्पी ने अपनी सास को सागर के व्यवहार के बारे में बताया तो उसने सागर का पक्ष लेते हुए कहा-“पैसे कमाना और घर चलाना आसान नहीं होता, खैर छोड़ो तुम नहीं समझोगी, तुम्हें तो बैठे-बिठाए सब कुछ मिल रहा है ना।”
शिल्पी को बहुत गुस्सा आया। वह सोच रही थी कि हर इंसान घर चलाने के लिए काम करता है तो क्या सब ऐसे ही चिड़चिड़े हो जाते हैं और अपने बच्चों को नजरअंदाज करते हैं। उनकी छोटी-छोटी खुशियों और चाहतों में उनका साथ नहीं देते। ऐसे तो इंसान का जीना मुश्किल हो जाए और फिर बच्चे भी तो चाहते हैं कि उनके पापा उनके साथ घूमे फिरे खेलें और मस्ती करें।
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वह समझ चुकी थी कि सागर का व्यवहार शायद अब नहीं बदलेगा लेकिन फिर भी एक बार कोशिश करके देखती हूं।
दिवाली आई। सागर दिवाली पर बच्चों को पटाखे लाकर देता था। वैसे तो वह किसी भी चीज में कोई कमी नहीं रखता था पर ना जाने उसका व्यवहार ऐसा क्यों था। इस बार शिल्पी ने उससे कहा-“हर बार आप मुझे ही बच्चों के साथ पटाखे जलाने भेज देते हो, इस बार बच्चों के साथ आप जाओ। आपको बहुत अच्छा लगेगा और बच्चे भी खुश हो जाएंगे।”
सागर-“मुझसे यह फालतू के काम नहीं होंगे, तुम ही जाओ और मुझे चैन से टीवी देखने दो।”
शिल्पी-“टीवी तो आप रोज ही देखते हैं, दिवाली रोज थोड़ी ना होती है। आज आप बच्चों की खुशी देखिए।”
सागर-“बच्चे तो कुछ नहीं कह रहे, तुम ही यहां खड़ी रह कर मेरा दिमाग चाट रही हो, जाओ यहां से।”
शिल्पी आंखों में आंसू लिए वहां से चली गई और सागर के व्यवहार को बदलने की उसकी यह कोशिश नाकाम रही।
वह सोच रही थी कि आज की कोशिश मेरी आखिरी कोशिश थी। सागर अगर तुम नीरस जिंदगी जीना चाहते हो तो जिओ, पर यह याद रखना कि तुम्हारे इस व्यवहार के कारण तुम्हारे बच्चे कहीं तुमसे दूर ना हो जाएं। तुम्हारे कारण मैं अपनी और बच्चों की छोटी छोटी खुशियां क्यों खराब करूं। मैं तो बच्चों के साथ हर खुशी और हर छोटी सी चाहत का आनंद लूंगी। बाद में तुम शिकायत मत करना।
स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली