रखवाली – कमलेश राणा

पहाड़ों पर बर्फबारी हो रही थी जिससे मैदानी इलाकों में भी ठंड का कहर बढ़ गया था। हाड़ कंपा देने वाली सर्दी पड़ रही थी। लोग रजाई कंबल में दुबके हुए थे बाहर निकलने का मन ही नहीं करता।

ऐसी ही एक सुबह खिड़की से लोगों की आवा जाही की भनक मिली, खोलकर देखा तो लोगों का हुजूम पटेल साहब के खेतों की ओर भागा चला जा रहा था।

ऐसी क्या बात हो गई जानने के लिए मैं भी जल्दी से शॉल लपेट कर बाहर निकल आया तो पता चला कि पटेल साहब के खेतों की रखवाली करने वाला कल्लू रात में ठंड से अकड़ गया था और उसकी मौत हो गई थी।

सुबह जब उसकी पत्नी चाय लेकर पहुंची तो पता चला कि खेतों की रखवाली करने वाला कल्लू अपने प्राणों की सर्दी से रखवाली नहीं कर पाया और दुनियां को सदा के लिए अलविदा कह गया। उसके छोटे छोटे बच्चों और पत्नी का करुण क्रंदन मन को बेध रहा था और साथ ही मन में अनेक सवाल सर उठा रहे थे आखिर इस सबका जिम्मेदार कौन है?

एक जमाना था जब किसान निश्चिंत हो कर घर में सोता था यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है करीब 20 साल पहले की ही बात है फिर भी अच्छी फ़सल ले लेता था पर आज उसकी नींद हराम है या तो वह खुद रात भर जागता है या समर्थ होता है तो रखवाला नियुक्त कर देता है तब कहीं जाकर वह अन्न्दाता अपना और लोगों का पेट भरने के लिए अन्न उगा पाता है पर कष्ट तो है ही। इसके बावजूद भी निश्चिंत नहीं हो पाता कि कितनी फसल घर ला पायेगा।




इसके लिए लोगों का आलस्य जिम्मेदार है या भ्रष्टाचार को दोष दिया जाये, एक बड़ा प्रश्न है!!

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यह वही देश है जहाँ गाय को माँ कहा जाता है, पूजा जाता है लेकिन आज वही माँ अपना पेट भरने के लिए खेतों को रौंद रही है क्यों कि गौ पालन अब लोगों ने छोड़ दिया है। दूध सबको चाहिये पर थैली का क्योंकि उसमें कुछ करना नहीं पड़ता पैसा दो और ले आओ। यह अलग बात है कि वह कितना शुद्ध है इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है। चलिए एक तर्क यह भी हो सकता है कि शहरों में जगह की कमी है पर गांव में तो भरपूर जगह होती है लोगों के पास पर वहाँ भी कमोवेश यही स्थिति है। पहले एक एक घर में चार चार गायें होती थी पर अब वही गायें सड़क पर या खेतों में दिखाई देती हैं और साल दर साल इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है।

सरकार के द्वारा गौ रक्षा केंद्र बनवाये गए हैं और करोड़ों रुपये उनके चारे के लिए दिये जाते हैं। बहुत सारे धार्मिक स्वभाव वाले लोग गौ शाला के नाम पर अच्छा खासा चंदा भी देते हैं पर वहाँ उनकी हालत और भी अधिक खराब है सारा पैसा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता है और वे फिर खेतों का रुख कर लेती हैं और एक बार फिर किसान की जान मुट्ठी में आ जाती है।

इसके लिए किसान खेतों के आसपास तारबंदी भी करवाते हैं जिसमें बहुत पैसा खर्च होता है लेकिन पेट की भूख बहुत कष्ट दायक होती है और गायें उन्हें भी फलांग कर घुस जाती हैं और फ़सल चौपट कर जाती हैं।

आज के समय में यह एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है इससे निपटने के लिए लोगों और सरकार को एकजुट प्रयास करना होगा वरना न जाने कितने कल्लू इसकी बलि चढते रहेंगे।

कमलेश राणा

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