धूप के बाद की ठंडी छांव – रजनी श्रीवास्तव अनंता

“बुआ मैं भी आपके साथ चलूंगी, पड़ोस वाली आंटी के घर!”

छाया ने जिद की तो दोनों बुआ ने उसे अपने साथ ले लिया। गर्मी की छुट्टियों में एक सप्ताह के लिए उसकी दोनों बुआ मायके आयी थीं। दोनों साथ हीं आती थी। सब दोस्तों और रिश्तेदारों से, मोहल्ले वालों से, मिलकर जाती थीं। वे आपस में बात करने लगीं।

 छोटी बुआ ने हल्की हऀसी के साथ कहा-

” वहां मिलेगा क्या? बिस्किट और मीठी सी चाय।” 

“कोई जरूरी है!” 

बड़ी बुआ मुस्कुराते हुए बोलीं। 

“शर्त लगा लो।” बड़ी बुआ ने हंसते हुए छोटी बुआ की फैली हथेली पर पर अपना हाथ रख दिया।

पड़ोस वाली आंटी ने जैसे ही चाय और बिस्किट लाके रखा दोनों बुआ हाथ मिलाकर खिलखिला कर हंस पड़ी, 

और.. छाया का रंग उड़ गया। आज उसे यह राज़ समझ में आ गया था कि मम्मी जैसे ही नाश्ता लेकर आती थी, दोनों बुआ हंसने क्यों लगती थीं। 

“क्या हुआ?”

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आंटी ने अचकचा कर पूछा तो उन्होंने बात को टाल दिया। हऀसी-मजाक का दौर चलने लगा लेकिन छाया के दिमाग में पुराने दृश्य घूम रहे थे। मां हमेशा अपने हाथों से नाश्ता नमकीन-खजूर इत्यादि बना कर रखती थी। बड़े प्यार से बुआ के साथ ले जाने के लिए भी बनाती थी। लेकिन उन लोगों को शायद यह सब पसंद नहीं था।

छाया की दोनों बुआ, बहुत अमीर परिवार से थीं। जबकि उसके पापा की मामूली सी प्राइवेट नौकरी थी। फिर भी, उसके मम्मी-पापा बुआ के आने पर बहुत खुश होते थे। छाया भी अपने फुफेरे भाई-बहनों का बहुत इंतजार करती लेकिन वह लोग नहीं आते। बुआ का कहना था, कि यहां, उन लोगों का मन नहीं लगता। जब भी, छाया उनके घर गई, भाई बहनों से मिलना-जुलना चाहा, सब पढ़ाई का बहाना बनाकर, उससे किनारा करना चाहते थे। उसे अब सारी बातें समझ में आ रही थीं।

“शायद यह लोग हमें अपने स्टेटस का नहीं समझते। शायद यही वजह है कि मेरे कजिन यहां कम आते हैं।” वह सोच में खोई थी।

“छाया बिस्किट खाओ न!” 

बुआ ने कहा तो उसकी तंद्रा टूटी। पढ़ाई का बहाना बनाकर वह वहां से घर चली आई।

          छाया ने तय कर लिया, अब इस तरह के रिश्तों के पीछे अपना समय बर्बाद नहीं करेगी। उसने अपना सारा ध्यान पढ़ने में लगाया। आज जब उसने आईएएस की परीक्षा पास कर ली थी, तो उसके घर में मेहमानों की भीड़ लगी थी। सब उसे बधाइयां दे रहे थे। 

                 छाया आज बहुत खुश थी। उसे किसी से कोई शिकायत नहीं थी, जबकि वह खुश थी कि इसी भेदभाव पूर्ण रवैये ने उसे मेहनत करने की प्रेरणा दी। मेहनत की कड़ी धूप में जलने के बाद हीं, निरंतर चलने के बाद हीं, उसे सफलता की ये ठंडी छांव नसीब हुई है। सबके लिए वह प्रेरणा बन गई थी। 

           सारे रिश्ते, जिनके लिए वह बहुत तरसी थी, आज उसके आगे-पीछे डोल रहे थे। मगर इन सारे रिश्तो का सच, वह अच्छी तरह से जान गई थी। वीडियो कॉल के जरिए सब उससे बात कर रहे थे। पढ़ने के टिप्स मांग रहे थे। छुट्टियों में घर आने के प्लान बनाए जा रहे थे। तभी बुआ ने उसकी माऀ से कहा कि वो आएंगी तो उनके हाथों से बना नाश्ता हीं खाएंगी। यह सुनकर जया के चेहरे पर कड़वी मुस्कान छा गयी।

 

रजनी श्रीवास्तव अनंता

 

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